आगामी राजस्थान विधानसभा चुनावों में अब दो महीने भी शेष नहीं बचे हैं। ऐसे में प्रमुख पार्टियां अपने दांव-पेच लड़ाने में जुट गई हैं। लेकिन इन सबमें एक पार्टी ऐसी भी है जिसमें चुनाव से पहले ही सब कुछ बिगड़ते हुए दिख रहा है। बात हो रही है कांग्रेस की जिस पर मुख्यमंत्री प्रत्याशी चेहरे को सामने न लाने के आरोप बार-बार लग रहे हैं और लगे भी क्यूं ना। आखिर राजस्थान कांग्रेस के दो दिग्गज नेता जो अपनी दावेदारी सीएम पद के लिए जता रहे हैं। इनमें से एक है प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके अशोक गहलोत और दूसरी ओर हैं पार्टी प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट। दोनों खुले स्वरों में एक-दूसरे पर तलवारें कईं बार खींच चुके हैं। पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के सामने एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई है। ऐसे में उन्होंने खुद के चेहरे पर ही राजस्थान विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया।
अब राहुल गांधी ने अपने हिसाब से अच्छा ही काम किया होगा। फिलहाल सीएम प्रत्याशी की यह लड़ाई समाप्त हो गई है और दोनों नेता साथ-साथ चुनाव प्रचार में भाग ले रहे हैं। लेकिन असली मुसीबत तो अब आने वाली है। राजस्थान में दो दशकों से अधिक समय तक अशोक गहलोत ही यहां कांग्रेस के चेहरा रहे हैं। ऐसे में वरिष्ठ नेता व कार्यकर्ता चाहते हैं कि इस चुनाव में पार्टी अशोक गहलोत को सीएम चेहरे के रूप में पेश करे, तो युवा नेता व कार्यकर्ता चाहते हैं कि जब चुनाव की कमान सचिन पायलट के हाथों में है इसलिए कांग्रेस सचिन को ही सीएम चेहरा घोषित करे। अब आलाकमान किसी एक को चेहरा बनाकर दूसरे गुट से नाराजगी नहीं लेना चाहती।
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अब कांग्रेस की सुई पूरी तरह से राहुल गांधी की ओर घूम गई है। उनके सामने क्या करें क्या न करें जैसी स्थिति बार-बार आ रही है। पार्टी में आला नेताओं के बीच खींचतान के चलते राहुल ने गहलोत को प्रदेश राजनीति से दूर करने का प्रयास भी किया। उन्हें पहले गुजरात और बार में कर्नाटक चुनावों में उलझा दिया लेकिन वहां से अब गहलोत फिर से प्रदेश चुनावों में टांग अड़ाने आ पहुंचे। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव बनने के बाद इसी साल जुलाई के अंत में अशोक गहलोत ने खुद की ओर इशारा करते हुए बयान दिया कि सीएम का चेहरा सालों से आपके सामने है। वह 10 साल राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे हैं तो ऐसे में सीएम के चेहरे की आवश्यकता कहां है। इससे गुस्सा होकर पायलट गहलोत की टी-पार्टी तक में नहीं पहुंचे थे।
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दोनों नेताओं के बीच बढ़ती तकरार और हालात सुधारने के खुद कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष को उतरना पड़ा। उन्होंने जयपुर में हुई सभा में सभी कांग्रेस नेताओं की उपस्थिति में पायलट और अशोक गहलोत को गले भी लगवा दिया लेकिन मन में भरे मैल और अविश्वास को दूर नहीं करा सके।
अब चुनाव नामांकन में कम ही समय बचा है तो प्रत्याशियों के नामों पर भी दोनों में टकराव होने स्वाभाविक है। प्रदेशाध्यक्ष होने के कारण सचिन पायलट का टिकटों के बंटवारे में शामिल होना जायज है। ऐसे में दोनों ही दिग्गज अपने-अपने शार्गिदों को टिकट देने पर आवाज तेज करेंगे। राहुल गांधी शायद इस पचड़े में भी खुद को ही झोंकने वाले हैं। लेकिन ‘कुएं में गिरू या खाईं में’ वाले दोराहे पर खड़े राहुल क्या करेंगे, यह देखना वाकईं में मजेदार रहेगा।
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