पंचायतीराज और स्थानीय निकायों के चुनाव लड़ने के लिए शैक्षणिक योग्यता की अनिवार्यता खत्म
कांग्रेस सरकार के आते ही राजस्थान में अहम फैसलों पर मुहर लगना शुरू हो गई है और डर्रा वहीं घिसा-पिटा और पुराना है। आज गहलोत सरकार ने पंचायतीराज संशोधन विधेयक और नगरपालिका संशोधन विधेयक पारित किया है। इसके अनुसार अब से पंचायतीराज और स्थानीय निकायों के चुनाव लड़ने के लिए शैक्षणिक योग्यता की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया गया है। इन चुनावों को लड़ने के लिए पढ़ा-लिखा होना जरूरी नहीं है। अब अनपढ़ भी सरपंच से लेकर प्रधान प्रमुख और पार्षद से लेकर मेयर तक का चुनाव लड़ सकेंगे। नगरपालिका संशोधन विधेयक में पार्षद, सभापति, मेयर का चुनाव लड़ने के लिए शैक्षणिक योग्यता का प्रावधान हटाया गया है। लोकसभा चुनावों से ठीक पहले पिछली भाजपा सरकार के फैसले को बदल गहलोत सरकार ग्रामीण इलाकों में अपनी पैठ मजबूत करना चाह रही है। अपने चुनावी घोषणा पत्र में कांग्रेस ने इसे शामिल किया था।
इससे पहले पिछली भाजपा सरकार ने सरपंच और नगरपालिका के पदों पर चुनाव लड़ने के लिए शैक्षणिक योग्यता लागू की थी। ऐसे में कई अशिक्षित नेताओं की चुनाव लड़ने की मंशा धरी की धरी रह गई थी। हालांकि उस समय भी कांग्रेस ने पिछली सरकार के इस फैसले का विरोध किया था।
इस फैसले के बाद मेयर, सभापति और पालिकाध्यक्ष का निर्वाचन सीधी पद्धति से कराने और पूर्व में बंद हुए डॉ.आंबेडकर विधि विश्वविद्यालय एवं हरिदेव जोशी पत्रकारिता विश्वविद्यालय को फिर से खोलने पर भी विचार किया जा रहा है।