राजस्थान के नए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के मंत्रीमंडल ने सोमवार को मंत्रीपद की शपथ ग्रहण कर ली है। 23 विधायक-मंत्रीयों ने पद की शपथ ली जिसमें 13 कैबिनेट और 10 राज्य मंत्री शामिल हैं। इससे पहले गहलोत सरकार में मंत्री बनाए जाने वाले सभी विधायक एकजुटता का संदेश देने के लिए प्रदेश कांग्रेस कमेटी कार्यालय से एक साथ बस में बैठकर राजभवन पहुंचे। एक ही बस में बैठकर राजभवन पहुंचे, वह भी एकजुटता का संदेश देने के लिए….! यह बात कांग्रेस के लिए तो हजम होती नहीं दिख रही।
वजह है कि राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पहले इसी कांग्रेस पार्टी में एकजुटता का अभाव देखा गया था। तभी तो पार्टी के कदावर नेता रामेश्वर डूडी ने अपने कुछ चाहने वालों को टिकट न दिए जाने पर चुनाव न लड़ने का फैसला सुना दिया था। यह कांग्रेस की एकजुटता ही थी जो मुख्यमंत्री के लिए 6 चेहरों को सामने लाया गया और यह कांग्रेस पार्टी की एकजुटता ही थी जब चुनाव जीतने के बाद 3 दिन बाद भी मुख्यमंत्री के नाम पर सहमति नहीं बन पायी थी। बाद में दिल्ली आलाकमान ने बीच—बचाव करते हुए सचिन पायलट को समझा बुझाकर अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री बनने पर मुहर लगाई।
अब जब कांग्रेस की एकजुटता की बात हो रही है तो यह भी बता दें कि मंत्रियों के शपथ ग्रहण को आज 3 दिन हो चुके हैं लेकिन इसी एकजुटता की वजह से मंत्रियों के विभागों का बंटवारा नहीं हो पा रहा है। इसके लिए कभी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कभी नए नवेले उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट दिल्ली दौड़े पांव जा रहे हैं और आलाकमाल के समक्ष अपना-अपना पक्ष रख रहे हैं। गहलोत-पायलट के बीच एकमत फैसला तक राजस्थान में नहीं हो रहा है। जब मुख्यमंत्री-उप मुख्यमंत्री के नजरियों में ही एकजुटता नहीं दिख रही तो पार्टी में कहां से नजर आएंगी।
अब अगर राजस्थान कांग्रेस और अशोक गहलोत अपने मंत्रियों को एक साथ एक ही सफर पर लाने के लिए तैयार कर पा रहे हैं, इसी बात को पार्टी की एकजुटता मान रहे हैं तो अच्छी बात है। लेकिन पार्टी जितनी जल्दी इस भवसागर से पार पा जाए तो उनके लिए अच्छा होगा। वरना लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को इसी आत्मविश्वास से मुंह की खानी पड़ सकती है।
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