राजस्थान देश का वो हिस्सा है जहां सबसे ज्यादा बेटियों को बाल विवाह का दंश झेलना पड़ता है। हालांकि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने इस कुप्रथा पर कहीं ज्यादा रोक लगाकर इसे राजस्थान का बुरा भविष्य बनने से रोक दिया है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने संवेदनशील निर्णय के कारण आज राजस्थान की बेटी रूपा यादव का डॉक्टर बनने का सपने पूरा हो रहा है। रूपा के सपनों के आड़े अब उसकी माली हालत नही आएगी।
8 साल में हुई थी शादी, 10वीं पास करने से पहले गई ससुराल
एक 8 साल की बालिका जिसकी शादी कर दी गई, जब ससुराल पहुंची तो वह 10 वीं भी पास नही कर पाई। उम्र तो बढ़ने की थी मगर पांव में बेड़िया डाल दी गई। मन में पढ़ने की तमन्ना लिए वह एक नया घर बसाने के लिए चली तो गई थी लेकिन वह पढ़ाई के लिए मन मसोस कर रह गई। बचपन से जवानी की दहलीज पर कदम ही रखा था कि चाचा की हार्ट अटैक से मौत हो गई और यहीं से शुरू होती है राजस्थान के जयपुर के करेरी गांव की इस बालिका वधू रूपा की दिलचस्प और प्रेरणादायक कहानी। रूपा की मेहतन और लगन देखिए कि 8 बरस से 21 साल पूरे होने के बाद वह राजस्थान के ही सरकारी मेडिकल कॉलेज से डॉक्टरी की पढ़ाई करने जा रही है।
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यह है रूपा के सफर की कहानी, गांव वालों ने किया था विरोध
रुपा के सफ़र की कहानी आपकी रूह को छू जाएगी। रुपा का स्कूल जाना गांव के लोगों को बर्दाश्त नही था। रूपा और उसके परिवार को लोगों के ताने सहने पड़ते थे लेकिन इस बालिका ने हिम्मत नही हारी। गांव वालों और ससुराल वालों से अलग रूपा के पति ने ही उसकी होंसलाफजाई की। रूपा की मेहनत और लगन पर रूपा के पति को पूरा भरोसा जो था। 12वीं की परीक्षा परिणाम के बाद रूपा को कोटा में कोचिंग करने के लिए भेज दिया गया। कोटा जाने के लिए लिए रूपा के पास पर्याप्त आर्थिक बंदोबस्त नही था लेकिन इस बालिका वधू की कहानी सुन कोटा के कोचिंग संस्थान ने उसकी 75 फीसदी फीस माफ कर दी। यहां भी गांव के लोगों के ताने बदस्तूर जारी थे क्योंकि गांव की लड़की अकेली किसी दूसरे शहर पर पढ़ाई करने गई थी।
10वीं में 84 फीसदी अंक हासिल कर बन गई थी हीरो
रुपा की शादी और गौने के बाद भी उसने अपनी पढ़ाई का सिलसिला जारी रखा और दसवीं की परीक्षा में ससुराल की नई जिम्मेदारियों के साथ उसने 84 फीसदी अंक हासिल किए। ससुराल यानी पति शंकर लाल के गांव में स्कूल ना होने के कारण रूपा को गांव से 6 किमी दूर जाना पड़ता था जिसके लिए गांव वाले अपने शब्दों के कर्ण भेदी बाण लिए रास्ते में तैयार बैठे होते थे। लेकिन ससुराल वालों ने बिना गांव-समाज की परवाह किए रूपा को पढ़ने के लिए भेजा।
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पति और भाई ने दिया पूरा साथ, ऑटो तक चलाया
12वीं पास करने के बाद रूपा ने बीएससी में दाखिला ले लिया और मेडिकल का एंट्रेंस एग्जाम देने की तैयारी करने लगी लेकिन पहले प्रयास में उसे सफलता नहीं मिली। किसी ने रूपा को कोचिंग के लिए कोटा जाने के लिए कहा लेकिन आर्थिक स्थितियों के कारण यह संभव नही होता ऐसे में रूपा ने अपने मन की बात अपने पति और भाई से कही। पति और भाई ने रुपा के सपने पूरे करने के लिए उसे कोटा भेजा और खुद ऑटो चलाने लगे। कोटा में कोचिंग के दौरान एक कोचिंग संस्था ने रूपा की 75 फीसदी फीस माफ कर रूपा को पढ़ाय़ा। रूपा ने कोचिंग की मदद से जमकर मेहनत की और 2017 के नीट एग्जाम में 720 में से 603 नंबर लाकर ऑल इंडिया लेवल पर 2,283वीं रैंक हासिल की।
मुख्यमंत्री राजे के सहयोग से बनेगी रूपा डॉक्टर
रुपा का दाखिला बीकानेर के सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज में हो गया है। इस कॉलेज में होने वाला खर्च रूपा का परिवार वहन करने में असमर्थ है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को जब स्थितियों की जानकारी हुई तो उन्होने त्वरित गति से रूपा की सहायता करने का निर्णय लिया। मुख्यमंत्री राजे ने जिला कलक्टर अनिल गुप्ता के साथ मिलकर गुरूवार को कॉलेज में ही रूपा से मुलाकात की। मुख्यमंत्री राजे ने मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य को रुपा का एक बैंक खाता खुलवाने के लिए कहा जिसमें रूपा की एमबीबीएस की संपुर्ण फीस, पुस्तक एवं हॉस्टल का खर्च दिया जाएगा। रूपा ने कहा कि ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ की संकल्पना के साथ मुख्यमंत्री श्रीमती राजे के इस निर्णय की बदौलत अब वह डॉक्टर बन सकेगी। वह अपनी पढ़ाई के लिए मुख्यमंत्री के प्रति आभारी है। वह मानती है कि उसका उदाहरण समाज में बेटियों को बोझ समझने वाले लोगों की सोच में बदलाव आएगा।