जयपुर। राजस्थान में विधानसभा चुनाव की रणभेरी बजने के साथ ही भाजपा मिशन मोड में आ चुकी है। अब तक उसने 124 उम्मीदवारों का ऐलान भी कर दिया है। वहीं कांग्रेस भी अब तक 76 उम्मीदवारों का ऐलान कर चुकी है। इस बीच भाजपा में अचानक से वसुंधरा राजे की अहमियत बढ़ गई है। भाजपा ने पहली सूची में उनकी राय को इतनी तवज्जो नहीं दी जितनी की दूसरी लिस्ट में दी है। पार्टी ने दूसरी लिस्ट में न केवल उन्हें उनकी परंपरागत सीट झालरापाटन से चुनावी मैदान में उतारा है बल्कि उनके कई समर्थकों को टिकट भी दिया है। भाजपा ने राजस्थान में उम्मीदवार तय करने के मामले पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को काफी अहमियत दी है। वह खुद तो चुनाव लड़ रही हैं, साथ ही उनके समर्थकों को भी काफी टिकट मिले हैं। भाजपा नेतृत्व ने पिछले कुछ चुनावों से सबक लेते हुए यहां पर कोई जोखिम नहीं उठाया है। वह राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस के खिलाफ सत्ता विरोधी माहौल का लाभ उठाने की पूरी कोशिश कर रही है।

 

चुनाव से ठीक पहले बीजेपी ने सेट किए सारे समीकरण
जैसे ही झालरापाटन से वसुंधरा राजे के टिकट का ऐलान हुआ, उन्हें बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार के तौर पर गिना जाने लगा। राजस्थान की सियासत में वसुंधरा का कद ही ऐसा है। वह दो बार राज्य की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। काफी समय से उन्हें साइडलाइन माना जा रहा था लेकिन बीजेपी को अपनी रणनीति पर फिर से विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसकी बड़ी वजह यह है कि पार्टी को उनका वोटर कनेक्ट चाहिए था। यह उनका मतदाताओं से घनिष्ठ नाता है।

वसुंधरा राजे को क्यों नाराज नहीं करना चाहती भाजपा
भाजपा ने प्रदेश की 200 सदस्यीय विधानसभा में 124 सीटों के लिए उम्मीदवार तय कर दिए हैं। अब उसे बाकी 76 सीटों के लिए नाम तय करना बाकी है। खास बात यह है कि शुरुआत में वसुंधरा राजे को ज्यादा अहमियत देने से बच रही पार्टी अब रणनीति में बदलाव करती दिख रही है। उनकी राय के अनुसार कई टिकट भी तय किए गए हैं। 41 उम्मीदवारों की पहली सूची में पार्टी में सात सांसदों को उतारने के साथ वसुंधरा राजे के समर्थकों पर भी कैंची चलाई थी, लेकिन दूसरी 83 सीटों की सूची में इसे ठीक करने के साथ ही वसुंधरा राजे को अहमियत दी गई है। इस सूची में लगभग 30 नाम वसुंधरा राजे के करीबियों के हैं।

कर्नाटक में फेल रहा सीएम बदलने का फाॅर्मूला
पिछले कुछ सालों में पार्टी चुनावी राज्यों में चुनाव से पहले सीएम बदलती रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह जनता की नाराजगी है। लेकिन भाजपा का यह प्रयोग कर्नाटक में विफल रहा। इसलिए पार्टी को कर्नाटक चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। पार्टी में उनके कद का कोई नेता राज्य में नहीं था। कुछ ऐसे ही हालात वसुंधरा को लेकर प्रदेश मेें हैं। वसुंधरा की नाराजगी से पार्टी को प्रदेश में हार का सामना करना पड़ सकता है। वसुंधरा खेमा भी पार्टी हाईकमान से नाराज रहता है।

पोस्टरों से गायब रहीं वसुंधरा
पूर्व सीएम वसुंधरा खुद ​झालरापाटन से चुनाव लड़ेंगी। वही सीट, जहां से वह 2003 से जीतती आ रही हैं। देर से ही सही, भाजपा को यह स्वीकार करने के लिए मजबूर होना पड़ा कि राजस्थान में कांटे के मुकाबले में वसुंधरा को अलग-थलग करना पार्टी के लिए बहुत महंगा साबित हो सकता है। साफ है कि वसुंधरा का राजनीतिक प्रभाव और महत्वाकांक्षाएं उनकी पार्टी को चौकन्ना करती हैं। उन्हें सोच-समझकर दरकिनार किया गया। जब भाजपा ने पूरे राजस्थान में ‘परिवर्तन संकल्प यात्रा’ के साथ अपना चुनाव प्रचार शुरू किया तो वसुंधरा बड़े इलाकों में नदारद थीं। भले ही वह दो दशकों से पार्टी का प्रमुख चेहरा रही हों, पर भाजपा के चुनावी पोस्टरों में वसुंधरा नहीं दिखाई दीं।

प्रभावी नेता हैं वसुंधरा
दरअसल, कर्नाटक में भाजपा की हार में एक बड़ी वजह बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाना भी रहा था, क्योंकि पार्टी में उनके कद और प्रभाव वाला दूसरा नेता नहीं था। लगभग यही स्थिति राजस्थान में वसुंधरा राजे को लेकर मानी जा रही है कि वह पार्टी के भीतर व बाहर सबसे प्रभावी नेता हैं। ऐसे में उनकी नाराजगी पार्टी के समीकरण बिगाड़ सकती है। वैसे भी वसुंधरा खेमा उनको मुख्यमंत्री का चेहरा न बनाने पर अपनी नाराजगी जाहिर करता रहा था। चूंकि पार्टी ने किसी भी राज्य में भावी मुख्यमंत्री का चेहरा तय नहीं किया है, इसलिए राजस्थान में भी वही फार्मूला रहा है।