राजस्थान में जब से आगामी विधानसभा चुनावों की तिथि की घोषणा हुई है, तभी से कांग्रेस ने अपने प्रचार तेज कर दिए हैं। पार्टी के थिंक टैंक अशोक गहलोत और प्रदेश के सर्वेसर्वा सचिन पायलट अपनी सभी रैलियों में यह भी कहने से नहीं चूक रहे हैं कि राज्य में चुनावी माहौल कांग्रेस के पक्ष में है और जीत हमारी ही होगी। लेकिन इसके उलट नेशनल कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी इससे इत्तेफाक नहीं रखते। शायद यही वजह रही कि चुनाव हुए भी नहीं और राहुल गठबंधन और जोड़-तोड़ में अभी से लग गए हैं। राजस्थान की 15वीं विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी अब प्रदेश में अकेले नहीं बल्कि गठबंधन के साथ चुनाव लड़ेगी। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हुई कांग्रेस चुनाव समिति की बैठक में इस ओर एक इशारा हुआ है। चुनावी रण में कांग्रेस अब एनसीपी और शरद यादव के लोकतांत्रिक जनता दल के गठबंधन साथ राजस्थान की जंग लड़ सकती है।
राहुल गांधी पार्टी के कर्ताधर्ता हैं और आगामी विधानसभा के साथ लोकसभा चुनावों में भी पार्टी का चुनावी चेहरा बनेंगे। अब शायद उन्हें अपने आलाधिकारियों पर या फिर यूं कहें, खुद पर इतना भरोसा नहीं रहा कि वह अपने दम पर चुनाव जीत पाएंगे। यही वजह रही होगी कि राजनीति गठबंधन अभी से होने लगा है। इससे पूर्व पायलट व गहलोत सहित राजस्थान कांग्रेस के नेताओं ने आत्मविश्वास के साथ यह कहते हुए कई बार दिखाई दिए हैं कि प्रदेश में जनता में कांग्रेस को लेकर अति उत्साह है और पार्टी को किसी गठबंधन की जरूरत नहीं है। लेकिन राजस्थान में पार्टी की डावाडोल स्थिति और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों को देखते हुए राहुल गांधी ने अभी से भविष्य की योजना बनाने का फैसला किया हो, यह होना मुनासिब है।
जानकारी यह भी मिली है कि राहुल के निर्देश के बाद सचिन पायलट ने शरद यादव से मुलाकात भी की है। दोनों के बीच दक्षिण राजस्थान की कुछ सीटों को लेकर चर्चा हुई है। अगर सचमुच यह प्लानिंग चल रही है तो भी कांग्रेसियों को यह बात समझ क्यूं नहीं आ रही कि विधानसभा चुनाव 200 सीटों पर होने हैं। अगर एक या दो सीटें लोकतांत्रिक जनता दल के खाते में जुड़ भी जाती हैं तो 199 सीटों का हिसाब कौन देंगा। खैर, राहुल बाबा ने जो भी किया होगा, अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने के लिए ही किया होगा।
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