एनकाउंटर में ढेर पुलवामा अटैक मास्टर माइंड अब्दुल रशीद गाजी
एनकाउंटर में ढेर पुलवामा अटैक मास्टर माइंड अब्दुल रशीद गाजी

पुलवामा आतंकी हमला बहुत ही घिनौनी हरक़त है। हिंदुस्तानी सेना का कोई भी जवान जब देश सेवा की शपथ लेता है, तो उसके मन में शपथ लेने के अलावा एक और बात आती होगी। हर सैनिक की एक ही ख़्वाहिश होती है कि…

जब मौत से उसका सामना हो तो वे डरा हुए ना हो, एक हाथ में बन्दुक हो, दूसरा हाथ मूछों को ताव दे रहा हो और चेहरे पर गर्व की मुस्कराहट हो, कि आख़री सांस तक उन्होंने दुश्मन को अपने सामने टिकने नहीं दिया।

लगभग ऐसा ही कुछ उन जवानों के साथ भी हुआ होगा। जो पुलवामा आतंकी हमला में देश के 130 करोड़ देशवासियों के लिए क़ुर्बान हो गए। पूरा देश चैन की नींद सो सके, इसलिए वो ख़ुद मौत की नींद सो गए। उनकी शहादत में पूरा देश रो रहा है। हर तरफ ग़म का माहौल है, तो सबकी आँखों से ऐसी घटिया करतूत करने वालों के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा भी है। लेकिन उन सैनिकों के मन एक मलाल ज़रूर रहा होगा। “ऐ वतन तेरी सरपरस्ती में क़ुर्बान होने का हमें ग़म नहीं मगर अगले जन्म में भी ये मलाल रहेगा कि हमें अपने हथियार उठाने एक मौक़ा तो मिला होता।” यही मलाल आज प्रत्येक देशवासी के दिल में है। हमें दुःख तो है ही, लेकिन उससे ज़्यादा मलाल है हथियार नहीं उठा पाने का।

अगर पुलवामा आतंकी हमला में हथियार उठाने की बात होती, तो क्या बात होती

यूँ तो हर देशवासी अमन और शांति की दुआ करता है। लेकिन कुछ चंद नाजायज़ लोगों की वजह से अपने देश ही नहीं पूरे विश्व की शांति और अमन उजड़ा हुआ है। जिसे वो लोग जिहाद का नाम देते हैं, मगर हम इसे भडुआपंती कहेंगे। हाँ ये कायरता भी नहीं भडुआपंती ही है, जो पीठ पीछे से वार करे। वो वीर तो क्या इंसान तक कहलाने लायक नही हैं। वो किसी गन्दी नाली के कीड़े ही होते हैं, जो ऐसी नामाक़ूल, कायराना और घटिया हरकतें करते हैं। अरे अगर वाक़ई अपने आप को धर्म के ठेकेदार, सच्चे जिहादी और इस्लाम के रक्षक मानते हो, तो सामने आकर लड़ते। माँ क़सम अगर हमारे जवानों ने उनकों नाकों चने ना चवाबा दिए होते तो वो अपनी माँ के लाल नहीं।

अगर यकीन नहीं तो आज की ही ख़बर देख लो। पुलवामा आतंकी हमला करवाने वाले रहनुमाओं में से दो को तो आज हमारे देश की सेना के जवानों ने 72 हूरों के दीदार करवा दिए। हमारे देश के वीर जवानों ने पुलवामा आतंकी हमला में शहीदों की शहादत का बदला लेते हुए जवाबी कार्यवाही की। आमने-सामने हुयी मुठभेड़ में भले ही हमारे मेजर डी एस डोंडियाल, हैड कांस्टेबिल सेवा राम, सिपाही अजय कुमार तथा हरी राम शहीद हो गए। लेकिन इन वीरों ने पुलवामा हमले में शहीद हुए जवानों का शुरूआती बदला तो ले लिया है, लेकिन आतंकवाद सफाया अभी बाकी है। जब तक भारत के ख़िलाफ़ आतंकी गतिविधि करने वालों का ख़ात्मा नहीं हो जाता तब तक देश चैन की सांस नहीं लेगा।

हमें क्या करना चाहिए

सबसे पहले तो हमें ये सोचना है कि हम ज़मीनी लेवल पर क्या कर सकते हैं। हम शायद सीमा पर लड़ने ना जा पाएं। लेकिन जो जवान देश की रक्षा के लिए सीमा पर खड़े रहते हैं, उनकी सहायता जरूर कर सकते हैं। इसके लिए भारत सरकार ने एक बैंक अकाउंट खुलवाया है। जिसमे हम अपनी श्रद्धानुसार कितने भी रुपए जमा करवा सकते हैं। सिंडिकेट बैंक में आर्मी वेलफेयर फण्ड बैटल कैजुअल्टी फण्ड अकाउंट खोला है। हिंदुस्तान की 130 करोड़ आबादी में से अगर 70% लोग भी केवल एक रुपया रोज़ इस फण्ड में डालते हैं, तो एक दिन में 100 करोड़, 30 दिन में 3000 करोड़ और एक साल में 36000 करोड़ रुपया इकट्ठा होगा। इतना तो पाकिस्तान का सालाना रक्षा बजट भी नहीं है। ये एक रुपया सीधे रक्षा मंत्रालय के सेना सहायता एवं वॉर कैजुअल्टी फण्ड में जमा होगा। जो सैन्य सामग्री और जवानों के काम आएगा।

  • Bank Details:
  • SYNDICATE BANK
  • A/C NAME: ARMY WELFARE FUND BATTLE CASUALTIES,
  • A/C NO: 90552010165915
  • IFSC CODE: SYNB0009055
  • SOUTH EXTENSION BRANCH,NEW DELHI.

और सरकार को क्या करना चाहिए

अब सरकार को चाहिए कि अब तक वो जो करती आयी है वो नाकाफ़ी है। इसीलिए तो देश में जब-तब पुलवामा जैसे आतंकी हमले होते रहते हैं। इसलिए अगर सरकार चाहती है, कि आगे से ऐसा नहीं हो। तो सरकार को भी कुछ ऐसा करना होगा जो अभी तक नहीं किया। सबसे पहले तो सरकार को जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटानी चाहिए। और हटानी ही नहीं चाहिए, हटानी पड़ेगी! क्योंकि धारा 370 की वजह से ही कश्मीरी कुछ भी करने की आज़ादी रखते हैं। जबकि हम कुछ नहीं कर सकते। इसलिए आर्टिकल 370 को हटाकर वहां ग़ैर संवैधानिक हरकतें, जैसे भारत विरोधी या पाकिस्तान समर्थित नारे लगाना, भारतीय सेना पर पथराव करना और उनके साथ किसी भी प्रकार का अशिष्ट व्यवहार करने वाले देश द्रोहियों का सिरे से ही नहीं, जड़ से ख़ात्मा करना होगा।

क्योंकि बहुत क्षमा धर्म अपना लिया। अब योद्धाओं और फौलदों की भाषा अपनानी पड़ेगी। आतंकवाद के बाल ही नहीं नोचने उनके नापाक़ जिस्मों से खाल भी उतार लेनी है। ऐसी हरकतें करने वाले कभी अपने माँ-बाप की औलादें नहीं होते, वो तो नाजायज़ होते हैं। ये भूल नहीं घिनौना कृत्य है, जो पागल कुत्ते करते हैं। और कुत्ता जब पागल हो जाता है, तो या तो उसे बीच चौराहे पर खड़ा करके गोली मार दी जाती है। या घासलेट छिड़क कर आग लगा दी जाती है। फिर वो चाहे किसी भी धर्म का हो या किसी भी देश का। पाकिस्तानी हो या कश्मीरी। कोई फ़र्क नहीं पड़ता, सबको मरना होगा।

जहन में हमेशा पुलवामा आतंकी हमला रहेगा कि बदला लेना है

कैसे भुला दें जवानों के उस बलिदान को जिन्हें सिर्फ़ अपने देश की रक्षा करने के बदले में मौत के घात उतार दिया गया। वो भी एक 22 साल के लड़ाके द्वारा। अगर वो अपने आप को इतना ही बहादुर मानते तो बताकर और सामने से हमला करते। हमारा एक सैनिक भी पूरे आतंकवाद को ख़त्म करने का माद्दा रखता हैं। लेकिन अपने ही लोगों के आगे हार जाते हैं। बताया जा रहा है कि पुलवामा हमला करने वाला आतंकी कश्मीरी ही था, जो जैश-ऐ-मोहम्मद से जुड़ा हुआ था। इस संगठन को चलाने वाला गुंडा मसूद अज़हर भी वही आतंवादी है, जिसे कंधार विमान अपहरण में छुड़वाया गया था। आज वही मसूद अज़हर हमारे देश में तांडव कर रहा है।

आज उन घरों में कोहराम मचा हुआ है, जिनके लाल, ख़ून में लाल होकर चीथड़ों में घर पहुंचे थे। उनके परिवार वालों पर क्या गुजरी होगी। जिन्होंने अपने कलेजे के टुकड़ों को ड्यूटी पर भेजा था। और लौटकर आये तो मांस के सिर्फ़ चंद टुकड़े! वो भी बिना किसी पहचान के। जो पीछे छोड़ गए बूढ़े माँ-बाप, बिलखते बच्चे, कभी ना ख़त्म होने वाला इंतज़ार करती पत्नी और कर्ज़दारी सवा सौ करोड़ देशवासी। उनके सम्मान में चंद पंक्तियों के साथ श्रृद्धांजलि देते हैं…

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Mahendra Singh Mirotha यांनी वर पोस्ट केले शुक्रवार, १५ फेब्रुवारी, २०१९

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