बीकानेर। हरदर्शन सहगल ने प्रेमचंद की परंपरा का निर्वहन करते हुए साहित्यिक लेखन का प्रारंभ उर्दू से किया और फिर हिंदी में कालजयी रचनाओं का सृजन कर मील के पत्थर स्थापित किए यह कहना था-सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉक्टर मदन केवलिया का, जो महाराजा नरेंद्र सिंह ऑडिटोरियम में हरदर्शन सहगल की जयंती पर केंद्रित सोशल प्रोग्रेसिव सोसाइटी द्वारा आयोजित कार्यक्रम में बतौर अध्यक्ष अपना वक्तव्य दे रहे थे। डॉक्टर केवलिया ने कहा की अपनी लेखनी से समाज को नई दशा और दिशा देने वाले हरदर्शन सहगल को याद किया जाना यह बताता  है की समाज में अभी साहित्य के प्रति संवेदनशीलता बाकी है।

विशिष्ट अतिथि बुलाकी शर्मा ने कहा हरदर्शन सहगल ने विस्थापन की पीड़ा को अपनी लेखनी के जरिए पाठकों को महसूस करवाया। यह एक लेखक की सफलता ही कही जाएगी जिसमें पाठक उसके सहयात्री बनते हैं। कार्यक्रम के प्रारंभ में स्वागत करते हुए विवेक सहगल ने अपने पिता हरदर्शन सहगल के विभिन्न साहित्यिक पहलुओं पर चर्चा की और कहा कि उन्हें एक महान साहित्यकार का पुत्र होने पर गर्व है।

नागौर से विशेष रूप से कार्यक्रम में भाग लेने पधारे मुख्य वक्ता डॉ भूपेश चौधरी ने कहा कि पाकिस्तान से बीकानेर के सफर की प्रत्येक घटना और याद सहगल साहब के साहित्य का हिस्सा बनी तथा उन्होंने उस समय की विडंबनाओं और यादों को साहित्य की विषय वस्तु बनाया। मानवता और विश्व बंधुत्व के भाव लेकर उनका साहित्य आज भी ना केवल युवा पीढ़ी के लिए आदर्श  है बल्कि सही मायने में सहगल साहब का साहित्य नए विद्यार्थियों को मार्गदर्शन प्रदान करता है।

मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ कवि और चिंतक सरल विशारद ने कहा कि हरदर्शन सहगल ने बीकानेर की साहित्यिक परंपरा को आगे बढ़ाया और देशभर में बीकानेर का नाम रचनात्मकता से रोशन किया सरल विशारद ने कहा कि आज जयंती के अवसर पर कृतज्ञ भाव से उनको याद किया जाना इस बात का प्रतीक है कि समाज उनके साहित्य का अवदान को ना केवल स्वीकार करता है बल्कि समाज में रचनात्मक बदलाव के लिए उनके साहित्यिक संस्कारों को युवा पीढ़ी तक पहुंचाना चाहता है। अजय सहगल ने कहा की हरदर्शन सहगल बच्चों से बहुत लगाव रखते थे और यही लगाव उनको बच्चों के लिए रचनाएं लिखने के लिए प्रेरित करता था।

सोशल प्रोग्रेसिव सोसाइटी बीकानेर के अध्यक्ष नदीम अहमद नदीम ने बताया कि मुख्य वक्ता डॉक्टर भूपेश चौधरी का सम्मान किया गया । माल्यार्पण अजय सहगल,शॉल अरविंद खत्री, श्रीफल शिल्पी खत्री,सरस्वती प्रतिमा गर्विता कुक्कड़, स्मृति चिन्ह मुदिता मदान, और साहित्य इमरोज नदीम के द्वारा भेंट किया गया ।डूंगरगढ़ से पधारे डॉक्टर मदन सैनी ने हरदर्शन सहगल के संस्मरण साझा किए और कहा कि हरदर्शन सहगल के साहित्य पर निरंतर शोध की आवश्यकता है।

कविता मुकेश ने हरदर्शन सहगल के व्यक्तित्व पर चर्चा करते हुए कहा कि सहगल सरल मन के व्यक्ति थे और किताबें उन्हें बहुत प्रिय थी और बीकानेर के साहित्यकारों से संवाद करना उनका शगल था और शायद इसी कारण उन्होंने अपने घर का नाम भी संवाद रखा था ।

सहगल के सबसे छोटे पौत्र अभीष्ट सहगल ने जब अपने दादा को याद किया तो एक बार माहौल मार्मिक हो गया जब बारह साल के बच्चे ने कहा कि उसके दादा उसकी हर गलती को माफ कर सकते थे लेकिन कोई उनकी किताबों के साथ  छेड़छाड़ करें यह उन्हें कतई बर्दाश्त नहीं था

कार्यक्रम का सफल संचालन वरिष्ठ कवयित्री कथाकार मनीषा आर्य सोनी ने करते हुए कार्यक्रम के दरमियान हरदर्शन सहगल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करते हुए उनके साहित्य में संवेदना के स्तरों को रेखांकित किया । कार्यक्रम की विशेष बात यह रही कि कार्यक्रम पश्चात विभिन्न श्रोताओं ने हरदर्शन सहगल के साहित्य को पढ़ने की इच्छा जाहिर की । कवि,  लेखक मुकेश पोपली ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए कहा की हरदर्शन सहगल को निरंतर याद किए जाने और विद्यार्थियों को जोड़ने की योजना पर कार्य किया जा रहा है।

सोशल प्रोग्रेसिव सोसायटी के अध्यक्ष नदीम अहमद नदीम ने कहा कि कार्यक्रम में डॉ नीरज भैया, संगीता सेठी, संजय जनागल, अरमान नदीम, इसरार हसन कादरी, सरला चौधरी, वीवेश सहगल, शिल्पी खत्री, सरोज सहगल, गीतेश पोपली, रवि पुरोहित, लीलाधर खत्री, लता सहगल ,अजय सहगल, कांता पंजाबी, अलादीन निर्बाण, राजेंद्र स्वर्णकार ,डॉक्टर अजय जोशी, गोविंद जोशी ,विजय कुमार शर्मा, मनीष जोशी, आत्माराम भारती लोकेश दत्त आचार्य संजय आचार्य वरुण, डॉ नासिर जैदी ,शकूर ,जाकिर अदीब ,असद अली असद लियाकत अली , दयानंद शर्मा, तरुण गौड़,संगीता शर्मा, इमरोज नदीम,  एडवोकेट शमशाद अली मोइनुद्दीन कोहरी नाचीज बीकानेरी, रिफत फातिमा, मोहम्मद शब्बीर, आज़ीम हुसैन की गरिमामय उपस्थिति रही।