भरतपुर 11 सितंबर 2023 प्राचार्य एम.एस.जे.राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय,भरतपुर(राजस्थान) गीता सब धर्म ग्रंथो का सार है। यह वेदों का नवनीत है-मुख्य अतिथि डॉ.श्रीकृष्ण शर्मा। महारानी श्री जया राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय,भरतपुर एवं राजस्थान संस्कृत अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रथम दिन के उद्घाटन सत्र में ‘श्रीमद्भभगवद्गीता में प्रतिपादित कर्मयोग एवं वर्तमान में इसकी प्रासंगिकता, विषय पर वक्ताओं ने एवं पत्र वाचकों ने अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि गीता कल भी प्रासंगिक थी आज भी है और कल भी रहेगी।
गोष्ठी का उद्घाटन सत्र मांँ सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलन के साथ हुआ।गोष्ठी में मुख्य अतिथि जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ.श्रीकृष्ण शर्मा मुख्य वक्ता संतोष गुप्ता अधीक्षण अभियंता जल संसाधन विभाग। विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ.शिवदत्त पांडे,गुरुकुल आचार्य सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश के कुलपति, कार्यक्रम के अध्यक्ष एम.एस.जे.कॉलेज के प्राचार्य डॉ.हरवीर सिंह,गोष्ठी के प्रेरणा स्रोत डॉ.ओम प्रकाश सोलंकी के मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ।
कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ.लाला शंकर गयावाल एवं म्यूजिक शिक्षक सोनल के नेतृत्व में आर.डी. कन्या महाविद्यालय की छात्राओं ने मधुराष्टक के साथ एवं संगोष्ठी के मंच संचालक प्रोफेसर डॉ. अशोक कुमार गुप्ता की सरस्वती वंदना से कार्यक्रम का आगाज हुआ। गोष्ठी की सह-संयोजिका डॉ. डिंपल जैसवाल ने सभी अतिथियों का विस्तृत परिचय दिया। गोष्ठी के संयोजक एवं आयोजन सचिव डॉ.महेश कुमार गुप्ता ने सभी अतिथियों का माला एवं शॉल से सम्मानित किया।संगोष्ठी की रूपरेखा एवं अतिथियों का स्वागत करते हुए उन्होंने बताया कि कार्यक्रम में मुख्य अतिथि प्रोफेसर श्रीकृष्ण शर्मा ने कहा की गीता सब धर्म ग्रंथो का सार है। यह वेदों का नवनीत है।
वैदिक साहित्य का निचोड़ गीता शास्त्र में है।उन्होंने कहा कि व्यक्ति को भौतिक सुविधाओं के लिए शतायु की कामना नहीं करके सत्कर्म करने की कामना करनी चाहिए।उन्होंने कहा की आत्मा अमर है तथा यह शरीर नश्वर है।उन्होंने गीता को उपनिषद् कहा है। उन्होंने कहा की आत्मा के उत्कर्ष के लिए भगवान से संबंध स्थापित करना चाहिए।उन्होंने ज्ञान, कर्म एवं भक्ति को उत्तम माना। उन्होंने कहा कि ज्ञान योग से बढ़कर कर्म योग श्रेष्ठ है। उन्होंने निष्काम कर्म करने के लिए सभी संभागियों को प्रेरित किया।कार्यक्रम के मुख्य वक्ता जल संसाधन विभाग के अधीक्षण अभियंता संतोष गुप्ता ने कहा की कर्म न करना भी कर्म है।
गीता ज्ञान,कर्म एवं भक्ति की त्रिवेणी है। उन्होंने कहा कि अपने-अपने कर्म में प्रेम रखने से मनुष्य को सिद्धि की प्राप्ति होती है। उन्होंने कहा की बिना इच्छा के या कामना के कर्म करना चाहिए। निष्काम कर्म करने से सारी सिद्धियांँ प्राप्त हो जाती है। उन्होंने पशु और मनुष्य की तुलनात्मक विश्लेषण करते हुए कहा की आहार,निद्रा,भय और मैथून की दृष्टि से पशु और मनुष्य में कोई अंतर नहीं है लेकिन हमारे पास विवेक है पशुओं के पास नहीं। उन्होंने कहा कि हम भगवान श्री कृष्ण के अंश हैं और उनके श्री मुख से निकली हुई श्रीमद्भभगवद्गीता गीता हम सबके लिए अमृत समान है। उन्होंने कर्मों को कुशलता से करना ही कर्म योग कहा।
विशिष्ट अतिथि के रूप में गुरुकुल सुल्तानपुर से पधारे डॉ. शिवदत्त पांडे ने कहा की गीता ज्ञान का सागर है। गीता की सदैव प्रासंगिकता है। जब तक संसार है तब तक गीता की प्रासंगिकता रहेगी। गोष्ठी के प्रेरणा स्रोत भूगोल विभाग के विभाग अध्यक्ष डॉ. ओम प्रकाश सोलंकी ने कहा की गीता धार्मिक,सामाजिक,आर्थिक और नैतिक दृष्टि से उत्तम ग्रंथ है। यह सभी विषयों का सार है। इस संगोष्ठी की प्रेरणा भी भगवान से ही मिली है। गोष्ठी में भाषा के विशेषज्ञ राम सिंह वर्मा ने कहा की धर्म और कर्म का संयोग ही गीता है।
रामेश्वरी देवी कन्या महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. मधु शर्मा ने संगोष्ठी की सफलता के लिए आयोजकों को बधाई देते हुए कहा की निष्काम कर्म ही गीता है। कार्यक्रम के मध्य में स्मारक का अतिथियों द्वारा विमोचन भी किया गया।कार्यक्रम की अध्यक्षता प्राचार्य डॉ. हरवीर सिंह ने अपने संबोधन में कर्म योग पर प्रकाश डालते हुए गोष्ठी की सफलता की कामना की। इस अवसर पर संस्कृत के विभाग अध्यक्ष सी.एम. कोली ने सभी का धन्यवाद एवं आभार व्यक्त करते हुए कहा की राजस्थान संस्कृत अकादमी जयपुर एवं एम.एस.जे. कॉलेज के द्वारा की गई है राष्ट्रीय संगोष्ठी प्रशंसनीय एवं अनुकरणीय है। संगोष्ठी के द्वितीय सत्र में प्रथम तकनीकी सत्र हुआ।
जिसमें गीता अभियान से जुड़े हुए निर्देशक महावीर बंसल ने कहा कि जब तक हमारे जीवन में एक उद्देश्य नहीं है तब तक हम कर्म योग नहीं कर सकते। गीता हमारा परिचय कराती है कि हम कौन हैं। यह हमें प्रेय एवं श्रेय के संबंधों को भी बताती है। जीवन में जो दुख है उसका निवारण सदैव गीता ही करती है। उन्होंने कहा कि यदि व्यक्ति तीन व्यक्तियों को गीता से जोड़ देता है तो वह अपना कल्याण भी कर लेता है।
उन्होंने सबको गीता से जोड़ने के लिए प्रेरित किया। इस सत्र में रूवी सिंघल ने मनुष्य कल्याण में कर्म योगी की उपादेयता, डॉ. रश्मि सिंह ने कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कर्म योग, डॉ. सीमा मिस्त्री ने हिंदी कविता में कर्म योग दर्शन, श्रीमती नमिता पारीक ने भारतीय दर्शन एवं कर्म योग, सुश्री करिश्मा सोलंकी ने आधुनिक युग में गीता के कर्म योग की प्रासंगिकता विषय पर पत्र वाचन किया। विशिष्ट अतिथि के रूप में वरिष्ठ संकाय सदस्य अशोक अग्रवाल ने कहा की गीता जड़ में भी चेतन के पाठ को पढ़ाती है। इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए राजकीय कला महाविद्यालय अलवर से पधारे प्रोफेसर जैसी नारायण ने कहा की भगवान कृष्ण की सर्वत्र प्रासंगिकता है।
उन्होंने हर व्यक्ति को अपने जीवन में सही आचरण करने के लिए प्रेरित किया। गोष्ठी के समन्वयक डॉ. राजवीर सिंह शेखावत ने गोष्ठी की सफलता पर सभी को धन्यवाद एवं आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इस विषय की प्रासंगिकता प्रत्येक काल में रहेगी। गीता का दर्शन वास्तविक जीवन दर्शन है। दोनों सत्रों के कार्यक्रम का संचालन हिंदी विभाग के प्रोफेसर डॉ. अशोक कुमार गुप्ता ने किया।
कार्यक्रम में डॉ.गोविंद चरौरा, डॉ. इला मिश्रा, डॉ. सुनीता कुलश्रेष्ठ, श्रीमती रेखा देवी शर्मा, डॉ. कमलेश सिसोदिया, डॉ. अंजु तंवर, डॉ. लक्ष्मीकांत गुप्ता, डॉ. कमलेश वर्मा, डॉ. शिवाली चौहान, डॉ. रामबाबू गुर्जर, डॉ. बालकृष्ण शर्मा, डॉ. चतुर सिंह, डॉ. रविंद्र सिंह, डॉ. लाला शंकर गयावल, डॉ. सुनीता पांडे, डॉ. संतोष गुप्ता, डॉ. अशोक कुमार गोयल, डॉ. मगन प्रसाद, डॉ. अर्चना सिंह, सरिता सिंह, डॉ.शकुंतला मीणा, सतीश कुमार, पंकज कुमार, डॉ. मनोज सिंह सिनसिनवार, डॉ.अमित रैकवार, डॉ. धर्मेंद्र सिंह,डॉ.दीप्ति राठौर आदि भारी संख्या में दुरदराज से पधारे विद्वजन, संकाय सदस्य,शोधार्थी एवं श्रोतागण उपस्थित रहे।
संवाददाता- आशीष वर्मा