प्रदेश की गहलोत सरकार ने सोमवार को कैबिनेट बैठक में स्थानीय निकाय चुनावों के प्रमुखों का चयन अप्रत्यक्ष रूप से कराने का फैसला लिया है। विधानसभा चुनाव जीतने से पहले गहलोत सरकार ने अपने घोषणा पत्र में वादा किया था कि जीतने के बाद निकाय प्रमुखों के चुनाव सीधे तौर पर कराए जाएंगे। लेकिन सरकार ने अपने ही वादे से मुकरकर अब नया फरमान जारी कर दिया है। सरकार के इस कदम की विपक्षी दल भाजपा समेत बड़ी संख्या में जनता भी विरोध जता रही है। सरकार के इस फैसले के बाद अब पार्षद ही अपने महापौर का चयन करेंगे, जनता इसके लिए वोट नहीं डाल पाएगी। सीएमओ में सीएम अशोक गहलोत की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक के बाद मंत्री शांति धारीवाल ने कहा कि चुनाव में हारने की डर की वजह से यह फैसला नहीं लिया है।

धारीवाल ने अजीबोगरीब तर्क देते हुए अपने इस फैसले के बारे में बताया कि प्रत्यक्ष चुनाव कराने से हिंसा व भय फैलने की आशंका रहती है। सांप्रदायिक माहौल बिगड़ने की आशंका को देखते हुए हमने निकाय प्रमुखों का सीधा चुनाव नहीं कराए जाने का फैसला किया है। गौरतलब है कि इस वर्ष के अंत से पहले प्रदेश में निकाय चुनाव सम्पन्न होने वाले हैं। भाजपा ने जब से जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाई थी उसके बाद से ही कांग्रेस नेताओं व कार्यकर्ताओं में इस बात का भय था कि निकाय प्रमुखों का सीधा चुनाव कराने पर जनता का झुकाव भाजपा की तरफ होगा। वहीं पार्षद चुनाव में तो सिर्फ स्थानीय मुद्दे ही हावी रहते हैं, ऐसे में किसी भी तरह की हार की आशंका से बचने के लिए कांग्रेस सरकार ने अपने ही किए वादे को पलटकर अब अप्रत्यक्ष तरीके से चुनाव कराने का निर्णय लिया है।