राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बजट में समाज के गरीब तबके के लिए बड़ी-बड़ी घोषणाएं की, जिनमें से मुख्यमंत्री ने चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत प्रति परिवार बीमा कवर को 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 25 लाख रुपये करने की घोषणा शामिल है। इसके लिए राजस्थान विधानसभा में ‘राइट टू हेल्थ’ बिल पास कर दिया गया। जिसके बारे में उन्होंने कहा था कि इस योजना का लाभ अब गरीब के साथ साथ आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को भी मिलेगा। लेकिन इन योजना की सच्चाई अब सामने आ रही है, जनता से किये गये झूठे वादों का नतीजा जनता के सामने है।

आगामी चुनावों को देखते हुए गहलोत साहब ने झूठे वादों की झड़ी ही लगा दी, उनको स्वयं को पता है इन वादों को इतने कम समय में लागू नहीं किया जा सकता। फिर भी जनता को आकर्षित करने के लिए और चुनाव के समय वोट लेने के लिए के इन झूठे वादों का जमकर प्रचार प्रसार किया, राजधानी जयपुर समेत पूरे प्रदेश की सड़कों को इन झूठे वादों से पाट दिया।

आज इन झूठे वादों का ही नतीजा है कि आम जनता का हाल बेहाल है, मरीज अस्पतालों के चक्कर लगा रहा है उसे मुफ्त इलाज तो दूर पैसे होने के बावजूद भी वह इलाज नहीं करवा पा रहा है, अस्पतालों में डॉक्टर नहीं है, डॉक्टर्स के आंदोलन के चलते मरीजों की दिक्कतें बढ़ी हुई हैं। अस्पतालों में ऑपरेशन टल रहे हैं तो घरों पर भी डॉक्टर्स ने निजी प्रेक्टिस बंद कर दी है। ऐसे में आने वाले दिनों में डॉक्टर्स की हड़ताल और खींचती है तो मरीजों हाहाकार करने को मजबूर होंगे। इसके बावजूद न तो सरकार पीछे हटने को तैयार है और न ही समझाइस की कवायद हो रही है।

पूरे राजस्थान में छोटे-बड़े समेत करीब 60 हजार ऑपरेशन टाल दिए गए। मरीजों को इलाज नहीं मिल रहा है। सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर भी निजी अस्पतालों के डॉक्टरों का साथ देने उनके साथ शामिल हो गये हैं। उत्तर भारत के सबसे बड़े अस्पताल एसएमएस अस्पताल में रोजाना 20 हजार से ज्यादा मरीज ओपीडी में आते हैं, उन्हें इलाज में भी परेशानी हो रही है। ऐसे में मरीज सीधे मेडिकल स्टोर से दवा लेने को विवश हैं।

राइट टू हेल्थ बिल के खिलाफ डॉक्टर्स और सरकार के बीच लड़ाई लगातार तेज होती जा रही है। अब राइट टू हेल्थ बिल के विरोध में 29 मार्च को पूरे प्रदेश में चिकित्सा सेवाएं बंद निजी अस्पतालों के डॉक्टरों के समर्थन में सरकारी अस्पतालों के सभी रैंक के डॉक्टरों ने अब पूरे दिन सामूहिक कार्य का बहिष्कार करने का फैसला किया। राज्य में इस दिन पीएचसी, सीएचसी, उप जिला अस्पताल, जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज से जुड़े अस्पतालों में ओपीडी सेवा बंद रहेगी। इस पूरे विरोध-प्रदर्शन में 15 हजार से ज्यादा डॉक्टर्स और टीचर फैकल्टी शामिल हुए हैं। जिससे लोगों की परेशानी और बढ़ेगी।

हालांकि, पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे ने राज्य सरकार के बजट के बारे में पहले ही बता दिया था। उन्होंने कहा था- कांग्रेस को आम लोगों को झूठे सपने दिखाने की आदत है। अब तक लाखों किसान कर्जमाफी का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस सरकार ने जो वादा किया था, वह अभी तक पूरा नहीं हुआ। वसुंधरा राजे की कहीं गयी बात पर गौर करे तो यह बात सही साबित होती दिख रही है कि राइट टू हेल्थ बिल के द्वारा जनता को मुफ्त इलाज के सपने दिखा कर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रदेश की जनता को अंधकार में धकेल दिया है। प्राइवेट अस्पताल के डॉक्टरों ने तो इस बिल को ‘राइट टू किल’ नाम दे दिया। कानून वापस लेने की मांग हो रही है। बिल पास करने से पहले इसके सभी पहलुओं पर गौर किये बिना इसको लागू कर दिया गया। जिसका नुकसान आम जनता को उठाना पड़ रहा है।

आइए जानते है डॉक्टर क्यों नाराज़ है इस बिल से, डॉक्टरों के क्या तर्क है इस बिल को लेकर-

हालांकि, निजी अस्पतालों का कहना है कि बिल में इमरजेंसी शब्द को ठीक से परिभाषित नहीं किया गया है और यह स्पष्ट नहीं है कि किस मरीज की स्थिति को इमरजेंसी माना जाएगा और उसके इलाज का खर्च कौन उठाएगा। निजी अस्पतालों का कहना है कि कानून से उनका दिवाला निकल सकता है।

इसके अलावा डॉक्टरों का कहना है कि कानून लागू होने के बाद हर मरीज के इलाज की गारंटी डॉक्टर की होगी, लेकिन हर तरह के मरीज का इलाज संभव नहीं है, ऐसे में मरीज की मौत होने पर इसकी किस तरह की जिम्मेदारी होगी इस बारे में कुछ साफ नहीं कहा गया है। वहीं, डॉक्टरों का कहना है कि इससे मरीज और उनके बीच टकराव की स्थिति भी पैदा हो सकती है।

इसके अलावा निजी अस्पतालों का कहना है कि सरकार इस कानून के जरिए अपनी सरकारी योजनाओं को थोपने की कोशिश कर रही है, जो कि गलत है। डॉक्टरों का कहना है कि सरकार अपनी योजनाओं को सरकारी अस्पतालों में आसानी से लागू कर सकती है, जिसके लिए निजी अस्पतालों को मजबूर क्यों किया जा रहा है।

निजी अस्पतालों का कहना है कि किसी योजना का पैकेज अस्पताल में इलाज और सुविधाओं के हिसाब से नहीं है तो उसका भुगतान मरीज को करना पड़ेगा, ऐसे में अस्पताल अपना खर्चा कैसे निकालेगा और इससे उपचार की गुणवत्ता भी प्रभावित होगी।

वहीं राइट टू हेल्थ बिल में राज्य व जिला स्तर पर मरीजों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक प्राधिकरण का गठन किया जाना है, जिसे लेकर निजी अस्पतालों का कहना है कि प्राधिकरण में जिला व राज्य स्तर के प्रतिनिधियों के अलावा, उनके प्रतिनिधि यानी आईएमए के लोगों को शामिल किया जाए। हालांकि सरकार ने इस मांग को मानते हुए प्राधिकरण में आईएमए के दो लोगों को शामिल करने की मंजूरी दी है।

वहीं डॉक्टरों के प्रतिनिधि मंडल का कहना है कि उनके सुझावों पर अमल नहीं हुआ। प्राइवेट अस्पतालों के डॉक्टरों का कहना है कि सरकार वाहवाही लूटने के लिए सरकारी योजनाओं को निजी अस्पतालों पर थोप रही है।

राइट टू हेल्थ बिल के पास करने के साथ ही कांग्रेस जनता के बीच ये संदेश देना चाहती थी कि वो इस चुनाव में जनता की मूलभूत सुविधाओं पर जोर दे रही हैं और ये बिल इसकी शुरुआत है। लेकिन हकीकत कुछ और ही बयान कर रही है, झूठे वादों से किसी का भला नहीं हो सकता है, अगर सरकार की मंशा जनता का भले करने की ही होती तो वह पहले ही बिल को लागू करने से पहले ही सभी चीजों के बारे में विचार करती और उस बिल की कमियों को दूर कर फिर उसको लागू करती। लेकिन गहलोत सरकार की मंशा तो चुनाव के मौसम में वाजी-वाजी लुटना थी, जिसके लिए उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी और बेवजह जनता के पैसे को झूठे वादों के प्रचार-प्रसार में खर्च कर दिया। गहलोत सरकार के चिकित्सा मंत्री परसादीलाल मीणा ने तो राइट टू हेल्थ बिल को वापस लेने को नामुकिन बता दिया। वहीं इस बिल के विरोध को लेकर राजस्थान में डॉक्टर्स लगातार एकजुट होते जा रहे हैं।