आखिरकार वो घड़ी आयी जब कांग्रेस ने राजस्थान में मुख्यमंत्री पद के लिए अशोक गहलोत के नाम की औपचारिक घोषणा की। वैसे राजनीति की थोड़ी बहुत समझ रखने वालों ने ये अनुमान तो शायद पहले ही लगा लिया था। राहुल गांधी के पास अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाने के आलावा कोई विकल्प था ही नहीं। अब आप सोच रहे होंगे, तो फिर सचिन पायलट किस खेत की मूली है। लेकिन पहले आप ये सोचिये। साल 2012 उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में जब समाजवादी पार्टी ने अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया था। नहीं- नहीं! मुख्यमंत्री बनाने से कोई एतराज़ नहीं लेकिन जिसे अपने आप को संभालना नहीं आता था वो राज्य कैसे संभाल पाता? नतीजा पूरे राज्य में ज़ुर्म और गुंडागर्दी और ज़्यादा बढ़ गयी थी। ऐसे में सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बना दिया जाता तो एक जाती विशेष के लोगों में अहंकार और घमंड की सीमा इतनी बढ़ जानी थी, के कोई सीमा नहीं थी। जिसका प्रमाण तो उन लोगों ने पिछले तीन दिन में ही दे दिया।अब जब राजस्थान को एक नया, मगर पुराना मुख्यमंत्री मिल गया तो देखना है, राजस्थान किस राह पर चलता है। क्योंकि ये बात तो तय है, नयी सरकार अपने हिसाब से योजनाएं लेकर आएगी। अपने हिसाब से सब कुछ तय करेगी। ये बात सब लोग अच्छी तरह से जानते है। इसलिए हम यहाँ इस बारे में ज्यादा बात नहीं करंगे। आज हम बात करने आये हैं, राजस्थान कि विधानसभा के इतिहास की।
सन 1949 में राजस्थान की सभी रियासतों के एकीकरण के बाद नए राजस्थान में साल 1952 में पहली बार विधानसभा के चुनाव हुए। उस वक़्त राजस्थान विधानसभा में सिर्फ 160 सीटें थी। जिनमे से 82 सीटों पर जीत हासिल कर कांग्रेस ने पहली बार में ही राजस्थान की सत्ता अपने नाम कर ली। फिर लागतार 5 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने अपनी सत्ता कायम रखी और 25 सालों तक राजस्थान पर एक क्षेत्र राज किया। उसके बाद राजस्थान की राजनीति में उस शख्स का आना हुआ जिसने कांग्रेस के अभेद्य गढ़ में सेंध लगा दी और राजस्थान के राजनीतिक इतिहास में पहली बार किसी गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री का नाम दर्ज़ हुआ। तब तक राजस्थान की विधानसभा सीटें भी 160 से बढ़कर 200 हो चुकी थीं। ये कारनामा करने वाला कोई और नहीं…! आगे चलकर राजस्थान के बाबोसा कहे जाने वाले हिंदुस्तान के पूर्व उप राष्ट्रपति, स्वर्गीय श्री भैरोंसिंह शेखावत थे। जो आगे चलकर दो बार “और”, 1990 से 1993 व 1993 से 1998 तक लगातार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे। उसके बाद राजस्थान में शुरू हुआ चित और पट का खेल। राजस्थान के विधानसभा चुनावों में साल 1998 से शुरू हुआ ये खेल लगातार पांचवीं बार भी जारी है। तब से लेकर 2018 के चुनावों तक कांग्रेस और बीजेपी की तरफ अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे एक के बाद एक मुख्यमंत्री बनते आये हैं। दोनों ही नेता अब तक दो-दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। लेकिन इस बार तीसरी दफा मुख्यमंत्री बनने के साथ ही अशोक गहलोत, वसुंधरा राजे से एक कदम आगे निकल गए है।
इन 66 सालों में राजस्थान में कुल 15 बार चुनाव हुए हैं। जिनमे से एक बार जनता पार्टी और दो बार भारतीय जनता पार्टी के भैरोंसिंह शेखावत के हाथ में और 2 बार वसुंधरा राजे के हाथ में राजस्थान की सत्ता रही। वरना वर्तमान विधानसभा सहित पूरे 10 बार राजस्थान की राजगद्दी पर कांग्रेस के ही मुख्यमंत्री रहे। अगर बनिया बुद्धि से भी मोटा-मोटा हिसाब लगाया जाये तो 45 साल तो सन 2013 से पहले के और 5 साल अब 2018 से 2023 तक यानि पूरे 50 साल कांग्रेस ने राज किया। और 50 साल कोई कम वक़्त नहीं होता। अगर काम करने की नियत हो तो इन पांच दशकों में राजस्थान को कहां से कहां पहुंचाया जा सकता था। अरे जब मात्र पांच साल के कार्यकाल में वसुंधरा राजे विश्व प्रसिद्ध भामाशाह योजना ला सकती हैं, तो पचास साल में क्या कुछ नहीं हो सकता। जबकि केवल 15 साल में गुजरात देश का नंबर वन राज्य बन गया था। लेकिन जनता की परवाह किसको थी। कांग्रेस के नेता तो अपने घर भरने में लगे हुए थे। जनता को तो उन्होंने सिर्फ चुगने भर का दाना-पानी दिया। बाकी अपने भंडारों में भरकर रख लिया। जिसका एक उदाहरण हम कांग्रेस की चुनाव प्रचार रैलियों और विज्ञापनों में देख चुके हैं। वरना पांच साल बेरोजगार रहने के बाद भी कांग्रेस के नेताओं के पास इतना पैसा कहाँ से आया जो चुनावों में पानी की तरह पैसा बहाया गया।
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खैर अब तो कांग्रेस पार्टी ने मुख्यमंत्री की घोषणा कर दी है। 17 तारीख को शपथ ग्रहण समारोह के साथ नए मंत्रीमंडल का गठन भी हो जायेगा। और पांच सालों के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों के लिए जनरल नॉलेज के कई नए प्रश्न बन जायेंगे। लेकिन हम तो यही आशा करते हैं कि जीके बदलने से ज्यादा सरकार बेरोजगारों को नौकरी देने पर ध्यान दें तो ज्यादा बेहतर रहेगा। सरकार और बेरोजगार दोनों के लिए।
Content: Mahendra Verma.