जयपुर। सरकार ने ‘बेटी बचाओ’, ‘बेटी पढ़ाओ’ का अभियान चला रखा है। इस अभियान के तहत गिनी चुनी लड़कियों को भी लाभ मिल पा रहा। आज भी देश के कई हिस्सों में ऐसी लड़कियां है जो परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण आगे पढ़ नहीं आती है और बीच में अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ती है। महिला सशक्तिकरण लक्ष्य को सही मायने में हासिल करने के लिए बच्चियों की शिक्षा ही एकमात्र रास्ता है। एक ऐसी शख्सियत के बारे में बताने जा रहे हैं जो पिछले 12 सालों से जरूरतमंद लड़कियों की हर प्रकार से मदद कर रही हैं। गुजरात की रहने वाली निशिता राजपूत पिछले एक दशक से लड़कियों की शिक्षा के महत्व को समझा और उन्हें पढ़ाने का जिम्मा भी उठा रही है। कोरोना के दौर में हजारों बुजुर्गों को मुफ्त में टिफिन वितरित किये है।
34 हजार छात्राओं की भरी 3.80 करोड़ की फीस
जैसलमेर जिले के बड़ोडा गांव निवासी निशिता राजपूत गुजरात में लंबे समय सामाजिक सरोकार के कार्यों में लगी है। निशिता राजपूत असल मायने में महिला सशक्तिकरण की मिसाल है। वह दानदाताओं के सहयोग से जरूरतमंद मेधावी छात्राओं की फीस जमा कर रही है। निशिता ने पिछले 10 सालों में 34000 छात्राओं की 3.80 करोड़ फीस भरी है। कोरोना काल में फीस के 55 लाख रूपये जमा कराए है। निशिता चाहती है कि फीस की कमी से कोई भी छात्रा पढ़ाई ना छोड़े।
शादी के लिए जमा पैसे भी किए खर्च
निशिता के अनुसार, ऐसी कई गरीब लड़कियां हैं जो पैसों की कमी के चलते अपनी पढ़ाई छोड़ देती हैं। मैं इन सभी लड़कियों की फीस जमा करके उन्हें पढ़ते हुए देखना चाहती हूं। उन्होंने अपनी शादी के लिए जमा किए गए पैसे भी इन बच्चियों को पढ़ाने में खर्च कर दिए और 21 छात्राओं के नाम 5,000 रुपए फिक्स डिपॉजिट कराए। लड़कियों की पढ़ाई कराने के निशिता के लक्ष्य को पूरा करवाने हेतु कई प्रतिष्ठित लोग एवं संस्थाएं आगे आई हैं।
पिता के नक्शे कदम पर निशिता
गुजरात के वडोदरा जिले की रहने वाली नितिशा अपने पिता गुलाब राजपूत के नक्शे-कदम पर चलते हुए खुद के खर्चे पर करीब 30 हजार लड़कियों को पढ़ाया। निशिता के पिता गुलाब सिंह भी समाज-सेवा के काम करते हैं। उन्होंने अब तक कई गरीब और आर्थिक रूप से तंग लोगों की मदद की है। उन्होंने से प्रेरित होकर निशिता में बेटियों के लिए कुछ करने का जज्बा जागा। अब उनकी बेटी भी पिता के रास्ते चल रही है।
12 साल से कर रही लड़कियों को शिक्षित
28 वर्षीय निशिता से पूछा गया कि इस नेक काम की शुरुआत कैसी हुई। इसके जवाब में उन्होंने कहा कि जब वह 12 साल की थी तब देखा की एक लड़की को इसलिए पढ़ाई को बीच में छोड़ना पड़ा था कि उसके पास फीस जमा करने के लिए पैसे नहीं थे। तब उन्होंने अपने तय कर लिया कि जरूरतमंदों के फीस का प्रबंध करेगी। कोई भी लड़की आर्थिक तंगी के कारण पढ़ाई बीच में नहीं छोड़ सके। निशिता जरूरमंद लड़कियों की सिर्फ फीस ही नहीं भरती बल्कि उनके स्कूल बैग, कॉपी-किताबें देकर भी मदद करती हैं ताकि पढ़ाई में कोई रूकावट न आए। वे इन लड़कियों के लिए त्योहारों के अवसर पर कपड़े और उपहार भी लेकर जाती हैं।
बुजुर्गों के लिए टिफिन, दवाई और कपड़े
लड़कियों की शिक्षा के अलावा अपने पिता की तरह निशिता बुजुर्गों लोगों की भी मदद करती है। वह बुजुर्गों को टिफिन की सुविधा देती हैं। टिफिन पहुंचाने का काम महिलाएं करती हैं, ताकि उन्हें भी रोजगार मिल जाए। इतना ही नहीं, उनके कारण जरूरतमंद व गरीब महिलाओं कम पैसे में दवाइयां उपलब्ध करवा रही है। वह अकेले रह रहे बुजुर्ग लोगों को टिफिन देने के अलावा दवाई और कपड़ों का भी खर्च उठाती हैं।