राजनीति के अधिकतर जानकारों का मानना है कि राजस्थान में वसुंधरा राजे ही भाजपा है, जिसका कोई सानी नहीं है। हाल ही पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को बीजेपी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। राजे के साथ ही मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह को भी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया है। आलाकमान का ये फैसला दर्शाता है कि 15 साल बाद वसुंधरा राजे फिर केंद्र की राजनीति में अहम भूमिका निभाएगी। हालांकि वसुंधरा राजे अब भी राजस्थान में रहकर ही राज्य की राजनीति करने के पक्ष में है।
भाजपा ‘मिशन-2023’ के लिए राजे पर ही निर्भर
राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म है कि केन्द्र की राजनीति में जाने के बाद मिशन 2023 के लिए वसुंधरा की फिर से राज्य की राजनीति में वापसी हो सकती है। वैसे भी राजनीति हमेशा संभावनाओं का खेल रहा है। लेकिन कुछ जानकार आशंका जता रहे हैं कि राजे के पैर एक बार राज्य से बाहर गए तो उनकी वापसी मुश्किल हो सकती है। अभी भले ही मोदी व शाह ने मिलकर राजे को केन्द्र में लाकर उनकी राह में मुश्किल जरूर ला दी है लेकिन राजे के बारे में विश्लेषकों का मानना है कि उनकी सहमति व विचार-विमर्श के बिना हाईकमान निर्णय लेने में स्वतंत्र नहीं रहेगा। भाजपा को मिशन 2023 के लिए राजे के ऊपर ही निर्भर रहना पड़ेगा।
वसुंधरा की सहमति के बिना केन्द्र का निर्णय ‘बेअसर’
साल 2002 में प्रदेश भाजपा की कमान अपने हाथ में लिए वसुंधरा राजे की राजनीतिक पकड़ की मजबूती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली से जारी कोई भी आदेश वसुंधरा की सहमति के बिना जमीनी रूप नहीं ले पाता है। राजस्थान में जो वसुंधरा चाहती है वहीं होता है। अमित शाह के साथ प्रदेशाध्यक्ष नियुक्ति मामला हो या विधानसभा चुनावों में टिकट वितरण का मामला, हर जगह अमित शाह को ही घुटने टेकने पड़े है। खुद दिग्गज कांग्रेस नेताओं का भी कहना है कि भाजपा में इस समय वसुंधरा राजे ही एक मात्र ऐसी राजनेता है जो अपनी बात मनवाने के लिए अमित शाह और नरेन्द्र मोदी को पीछे हटने के लिए विवश कर देती है।
भाजपा विधायकों के लिए ‘राजे’ ही सर्वेसर्वा
प्रदेश के अधिकतर राजनीतिक जानकार इस बारे में एकमत हैं कि भाजपा के 73 विधायकों में से कुछेक को छोड़ बाकी सभी वसुंधरा राजे के साथ हैं। ये राजे की कुशल राजनीति को दर्शाता है। ऐसे में अमित शाह को राजस्थान में अपने पसंद का नेता चुनने के लिए काफी परेशानी का सामना करना पड़ेगा। वैसे भी अमित शाह राजस्थान के मामले में टांग फंसाकर कई बार अपनी किरकिरी करवा चुके हैं। ऐसा ही कुछ नजारा अब नेता प्रतिपक्ष चयन में देखने को मिल रहा है। शाह की पहली पसंद गुलाबचंद कटारिया है लेकिन राजे इस नाम पर सहमत नहीं है। जबकि राजे की पहली पसंद विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल है।
संक्षेप में अगर कहा जाता है कि राजस्थान में वसुंधरा ही भाजपा है तो यह बात कोई अतिश्योक्ति नहीं है। लोकसभा चुनाव आते-आते वसुंधरा राजे का कोई नया रूप भी देखने को मिल सकता है।