जब बच्चे छोटे होते हैं तो बहुत मासूम होते हैं। उनका दिल साफ़ होता है। छल, कपट, धोखा, जालसाजी और, दगाबाजी जैसी बातें तो उनके दिमाग़ में भी नहीं आती। लेकिन कई बालक इतने उद्दंड और जिद्दी होते हैं कि बस कभी भी, कहीं भी पसर जाते हैं। ये हरकत तो कभी ना कभी हम सब के साथ हुई है। जब बचपन में क्रिकेट खेलने जाते थे, कोई गेंद लेकर आता था तो कोई बल्ला। कई सारे बच्चे मिल-जुल कर खेलते थे। उनमे से एक बालक ऐसा होता था। जो अपनी बैटिंग तो ले लेता था। लेकिन जब फ़ील्डिंग करने की बारी आती तो घर भाग जाता था। एक-दो बार ऐसी हरकत करने के बाद भी हम उसे खिला लेते थे। लेकिन जब रोज़-रोज़ यही हाल होता था तो एक दिन सब तंग आकर उसको खिलाने से मना कर देते थे। तो वह बालक अपना गुस्सा निकलने के लिए खेल के मैदान को गन्दा कर जाता था तो कभी उसको गीला कर जाता था। जैसे जैसे हम बड़े होते हैं तो बचपन कि ये आदतें समय के साथ पीछे छूट जाती हैं। रह जाती हैं तो सिर्फ मीठी यादें। लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनकी ये आदतें बड़े होने पर भी नहीं जाती हैं।
ऐसा ही कुछ आज राजस्थान की राजनीति में देखने को मिल रहा है। भाजपा के क़द्दावर नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह और उनके पुत्र मानवेंद्र सिंह भी यही करते नज़र आ रहे हैं। भाजपा के राज में जिन्हें भारत के रक्षा मंत्री, वित्तमंत्री और विदेशमंत्री बनने का अवसर मिला। आज वही जसवंत सिंह अपने बाड़मेर के शेओ विधानसभा क्षेत्र के विधायक बेटे मानवेन्द्र सिंह के साथ मिलकर भाजपा के साथ बगावत कर रहे हैं। वो शायद भूल गए हैं कि इसी भाजपा के आँचल में वो और उनका पूरा परिवार पला बड़ा है। भारतीय जनता पार्टी को अपनी जागीर समझ बैठे बाप बेटे अपनी मनमानी करने लगे थे। इसलिए मार्च 2014 में जसवंत सिंह को पार्टी से 6 साल के लिए अलग कर दिया। फिर अगले ही महीने उनके बेटे मानवेंद्र सिंह को भी भाजपा अलग कर दिया। अब उसी के चक्कर में ये लोग मैदान गीला करने में लगे हैं।
मानवेंद्र सिंह ने 22 सितम्बर 2018 को बाड़मेर में स्वाभिमान रैली कि घोषणा की है। जिसमे मानवेन्द्र सिंह बात तो 36 कौम को साथ लेकर चलने की कह रहे हैं। लेकिन उनकी बातें और हरकतें तो यही इशारा कर रही है, कि वो सिर्फ अपनी जाती विशेष के लोगों को सरकार और भाजपा के खिलाफ भड़का कर ये दिखाना चाहते हैं कि हम जात और समाज की राजनीती भी कर सकते हैं। ठीक वैसे ही जैसे बचपन में किसी बच्चे को चीटिंग करने पर खेल से बाहर कर देते थे, तो वह मैदान में गन्दगी फैला देता था या फिर गीला कर देता था। लेकिन ये बात ना तो जसवंत सिंह को और ना ही मानवेन्द्र सिंह को शोभा देती है और एक राजपूत को तो बिल्कुल नहीं। क्या करें सत्ता का मद होता ही ऐसा है, जिसके आगे अच्छे-अच्छे लोग भी अंधे हो जाते हैं। इसमें इनका साथ दे रही हैं जसवंत सिंह की बहु और मानवेन्द्र सिंह की पत्नी चित्रा सिंह।
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ऐसा कहा जा रहा है कि 22 सितम्बर को होने वाली स्वाभिमान रैली में शामिल होने के लिए लोगों को पीले चावल बांटे जा रहे हैं। ताकि ज्यादा से ज्यादा संख्या में लोग स्वाभिमान रैली में शामिल हो सकें। वैसे तो इस रैली के बारे में लोगों के दो तरह के बयान आ रहे हैं। एक तरफ तो कहा जा रहा है कि रैली में शामिल होने से राजपूत समाज खुद मना कर रहा है। वहीं दूसरी ओर कहा जा रहा है कि रैली में लाखों लोगों की भीड़ जुटने आसार दिख रहे हैं। लेकिन इन दोनों पहलुओं से परे मानवेन्द्र सिंह ने मौका देखते हुए 22 सितम्बर का दिन स्वाभिमान रैली के लिए चुना है। क्योंकि इसी दिन बाड़मेर जसोल में रानी भटियाणी माता का लक्खी मेला लगता है। जिसमे लाखों की संख्या में राजपूत समाज के लोग माता भटियाणी के दर्शन करने और जागरण में भाग लेने आते हैं। ऐसे में मानवेंद्र सिंह, जसवंत सिंह और चित्रा सिंह समाज के नाम पर राजनीति की आग लगाकर अपनी रोटियाँ सेकना चाहते हैं। अगर स्वाभिमान रैली में एक आध दो चार लाख लोग इकठ्ठा हो भी जाते हैं, तो कोई बड़ी बात नहीं। क्योंकि लोग मानवेंद्र सिंह को सुनने नहीं माता भटियाणी को अपनी अरदास सुनाने आएंगे।
लेकिन मानवेंद्र सिंह की स्वाभिमान रैली वाली हरकत से तो यही साबित होता है कि वे अपनी व्यक्तिगत नाकामियों को छिपाने और मारवाड़ की जनता में कलह का माहौल पैदा करने के लिए ही इतना प्रपंच कर रहे हैं। लेकिंन मारवाड़ की जनता इस काम में इन लोगों का कोई साथ नहीं दे रही है। इस बात की पुष्टि बाड़मेर में बीजेपी के जिलाध्यक्ष जालम सिंह रावलोट और जैसलमेर के एमएलए छोटू सिंह भाटी ने कर दी है की स्वाभिमान रैली में भाजपा का कोई कार्यकर्ता ना तो भाग लेगा और ना ही किसी प्रकार का कोई सहयोग करेगा।
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