”अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च:”
अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है और धर्म रक्षार्थ हिंसा भी उसी प्रकार श्रेष्ठ है।
अहिंसा को परम धर्म मानने वाले जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की आज (29 मार्च) जयंती है। अहिंसा, त्याग और तपस्या की साक्षात मूर्ति भगवान महावीर स्वामी या वर्धमान महावीर स्वामी ने कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली के दिन पावापुरी में निर्वाण को प्राप्त किया था। महावीर स्वामी ने अपने अनुयाइयों को ‘अहिंसा ही परम धर्म है’ का संदेश दिया है। भगवान महावीर स्वामी के दिए हुए सभी कथन आज भी पूरी तरह सार्थक हैं। आइए जानते हैं उनके बताए हुए 10 सार्थक कथन …
अहिंसा ही परम ब्रह्म है। अहिंसा ही सुख शांति देने वाली है। अहिंसा ही संसार का उद्धार करने वाली है। यही मानव का सच्चा धर्म है। यही मानव का सच्चा कर्म है। – महावीर स्वामी
1. महावीर स्वामी का सबसे बड़ा सिद्धांत अहिंसा का है। भगवान महावीर स्वामी अहिंसा के प्रतीक थे। उन्होंने अपने प्रत्येक अनुयायी के लिए अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के पांच व्रतों का पालन करना आवश्यक बताया है। इन सबमें अहिंसा की भावना सम्मिलित है।
2. भगवान महावीर स्वामी के अनुसार अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है। उन्होंने ‘जियो और जीने दो’ के संदेश को अपनाया। अत: हमें ‘जियो और जीने दो’ के संदेश पर कायम रहना चाहिए।
3. शांति और आत्मनियंत्रण ही सही मायने में अहिंसा है।
4. हर जीवित प्राणी के प्रति दयाभाव और सम्मान का भाव ही अहिंसा है। घृणा से मनुष्य का विनाश होता है।
5. आत्मा अकेले आती है अकेले चली जाती है, न कोई उसका साथ देता है न कोई उसका मित्र बनता है।
6. प्रत्येक आत्मा स्वयं में सर्वज्ञ और आनंदमय है। आनंद बाहर से नहीं आता।
7. खुद पर विजय प्राप्त करना, लाखों शत्रुओं पर विजय पाने से बेहतर है।
8. सभी मनुष्य अपने स्वयं के दोष की वजह से ही दुखी होते हैं और वे खुद अपनी गलती सुधारकर प्रसन्न हो सकते हैं।
9. आपकी आत्मा से परे कोई भी शत्रु नहीं है। असली शत्रु अपने भीतर रहते हैं। वे शत्रु हैं- लालच, द्वेष, क्रोध, घमंड और आसक्ति और नफरत।
10. भगवान महावीर स्वामी हमें स्वयं से लड़ने की प्रेरणा देते हैं। वह कहते हैं ‘स्वयं से लड़ो, बाहरी दुश्मन से क्या लड़ना? जो स्वयं पर विजय प्राप्त कर लेगा उसे आनंद की प्राप्ति होगी।
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