देश की आन-बान-शान के प्रतीक हैं मेवाड़ के महान योद्धा वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप: मुख्यमंत्री
आज मेवाड़ और राजस्थान की आन-बान-शान के प्रतीक महाराणा प्रताप की 478वीं जयंती है। विक्रमी संवत् कैलेंडर के अनुसार महाराणा प्रताप की जयंती प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है, जो आज है। (अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार यह 9 मई को मनायी जा चुकी है।) महाराणा प्रताप की जयंती पर प्रदेशभर में जगह-जगह कई कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इस मौके पर मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने मेवाड़ के महान योद्धा वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के त्याग एवं बलिदान को याद करते हुए प्रदेशवासियों को उनकी जयंती पर शुभकामनाएं दी हैं। साथ ही राजस्थान को विकास के शिखर पर पहुंचाने का संकल्प लेने का आव्हान किया है।
भारत माता के वीर पुत्र, मेवाड़ के स्वाभिमानी योद्धा, वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जी की जयंती के शुभ अवसर पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। आइए, इस अवसर पर उनके संघर्षमयी जीवन से प्रेरणा लेकर राष्ट्र सेवा और राजस्थान को विकास के शिखर पर पहुंचाने का संकल्प लें।#MaharanaPratapJayanti pic.twitter.com/botmyhugrl
— Vasundhara Raje (@VasundharaBJP) June 16, 2018
महाराणा प्रताप का नाम भारत के इतिहास में उनकी बहादुरी के कारण अमर है। वह राजस्थान के ऐसे कुछ एक चुनिंदा राजपूत राजाओं में से एक थे जिन्होंने कभी भी मुगल बादशाह अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की। दासता स्वीकर करने से बेहतर उन्हें दुख झेलना कबूल किया।
उन्होंने अपनी राजसी ठाट-बाट और धन-दौलत को छोड़ दिया लेकिन अपना सिर कभी नहीं झुकाया। अपने और अपने राज्य के लिए उन्होंने परिवार सहित घास की रोटियां तक खाई और कई वर्षों तक मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया लेकिन अधीनता को स्वीकार नहीं किया।
महाराणा प्रताप की वीरता के चर्चे मेवाड़ ही नहीं बल्कि देशभर में प्रसिद्ध थे। कहा जाता है कि 29 जनवरी, 1597 में जब प्रताप की मृत्यु हुई थी, उस समय अकबर तक की आंखों में आंसू आ गए थे।
महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से जाना जाता था। प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 को राजस्थान के मेवाड़ जिले के कुम्भलगढ़ में सिसोदिया राजवंश में हुआ था। मेवाड़ के राजा महाराणा उदय सिंह और महारानी जयवंता बाई की संतान महाराणा प्रताप की वीरता के कायल राजपूत ही नहीं मुगल साम्राज्य भी था। 1576 के हल्दीघाटी युद्ध में करीब बीस हजार राजपूतों को साथ लेकर महाराणा प्रताप ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के अस्सी हजार की सेना लश्कर का सामना किया। यह युद्ध केवल एक दिन चला परंतु इसमें सत्रह हजार सैनिक मारे गए। हालांकि इस युद्ध में न महाराणा प्रताप की हार हुई और न ही अकबर की जीत।
मुगल दरबार के कवि अब्दुर रहमान ने महाराणा प्रताप के बारे में लिखा है, ‘इस दुनिया में सभी चीज खत्म होने वाली है। धन-दौलत खत्म हो जाएंगे लेकिन महान इंसान के गुण हमेशा जिंदा रहेंगे। प्रताप ने धन-दौलत को छोड़ दिया लेकिन अपना सिर कभी नहीं झुकाया। हिंद के सभी राजकुमारों में अकेले उन्होंने अपना सम्मान कायम रखा।’
महाराणा प्रताप की लंबे मुंछे और उनके हथियारों का वजन उनकी वीरता की कहानी खुद कहता है। कहा जाता है कि उनकी मयान में रखी दो तलवार, भाल और उनके कवच का वजन कुल मिलाकर 200 किलोग्राम है। उनकी तलवार, भाला व कवच आज भी उदयपुर राज घराने के म्यूजियम में सुरक्षित रखी हुई है। महाराणा प्रताप के घोड़े का नाम चेतक था, जो काफी तेज दौड़ता था। अपने स्वामी की रक्षा के लिए तलवार और तीरों के कई घांव लगे होने के बावजूद वह 26 फीट लंबे नाले के ऊपर से कूद गया था। यहां चेतक का एक मंदिर आज भी हल्दीघाटी में सुरक्षित है।
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