राजस्थान के गैंगस्टर आनंदपाल सिंह का आख़िर उसकी मौत के 20 वें दिन अंतिम संस्कार कर दिया गया। कल गुरुवार शाम को आनंदपाल के परिजनों व गांववालों की उपस्थिति में उसका अंतिम संस्कार किया गया। आनदपाल के मामा के लड़के ने मृत देह को मुखाग्नि दी। आनंदपाल के चाचा व मामा इस दौरान मौजूद रहे। गौरतलब है कि पिछले महीने पुलिस की जवाबी कार्यवाही में मारे गए आनंदपाल की लाश को लेकर पिछले 20 दिनों से राजपूत समाज के तथाकथित नेता प्रदर्शन कर रहे थे। एक अपराधी जिसने कइयों को मौत के घाट उतारा, उसकी अंत्येष्टि से पहले ये लोग उसकी मौत की सीबीआई जांच करने की मांग कर रहे थे। इसी कारण 20 दिन तक मृत देह को मोक्ष के लिए इंतज़ार करवाया गया।
20 दिन तक मृत शरीर की अंत्येष्टि नहीं की, यह कैसी संवेदना:
अपने जीवन में आनंदपाल सिंह राजस्थान में आतंक का पर्याय बन चुका था। तीन दर्ज़न आपराधिक मुकदमों का आरोपी आनंदपाल क़ानून और प्रशासन को खिलौना समझ गैंगस्टर बन निकला था। अपनी ज़िन्दगी में आनंदपाल ने कई लोगों को तड़पाकर मारा। कहते है कि बुरे काम का नतीजा हमेशा बुरा होता है। आनंदपाल के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। ज़िन्दगी के आखरी सालों में दर-बदर छुपता रहा। न अपने घरवालों से मिला, न पहचान वाले रिश्ते-नाते वालों से। बुराई और आतंक के लिए चर्चित आनंदपाल मरते दम तक इसी बुराई और आतंक के साये में घुटता रहा। मरने के बाद भी उसे चैन नहीं मिला। जाति-और समाज के नाम पर झूठी हमदर्दी रखने वाले कुछ नेताओं द्वारा उसके शरीर को इस कदर निर्लज्ज किया गया कि फिर मौत भी उस राजनैतिक प्रदर्शन के सामने छोटी चीज बनकर रह गई। पढ़-लिख कर टीचर बनने की ख़्वाहिश रखने वाले आनंदपाल को गैंगस्टर बनाने का काम भी समाज के इन्ही लोगों ने किया। आनंदपाल को मानव से दानव बनाने वाले समाज के फ़र्ज़ी नेताओं ने मरने के बाद भी मृतक की पवित्र देह को कलंकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आनंदपाल और समाज के प्रति सहानुभूति और संवेदना के घड़ियाली आंसू रोने वाले इन नेताओं ने आनंदपाल की देह के अंतिम संस्कार में बाधा पहुंचाकर अपनी नीचता ज़रूर साबित कर दी।
आनंदपाल को महज़ राजनैतिक मंज़िल की सीढ़ी के तौर पर इस्तेमाल किया:
आज जो नेता लोग अपने आप को समाज के मसीहा के तौर पर दर्शा रहे हैं। असल में इन्हीं कुछ समाज के दिखावटी हिमायती नेताओं ने राजनीती के मोहरे के रूप में आनंदपाल का इस्तेमाल किया है। आनंदपाल ने जब अपराध की दुनिया में कदम रखा तो इन लोगों ने अपने फायदे के लिए इसे बढ़ावा दिया। अपने कारोबार और राजनीति के भले के लिए आनंदपाल से इन लोगों ने अपराध करवाए। आनंदपाल से हत्या, फिरौती, अपहरण जैसे कारनामे करवाएं। इस तरह आनंदपाल को अपने काले धंधों और राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के लिए ढाल बनाकर इस्तेमाल किया।
अब जब आनंदपाल मर गया था तब भी इन लोगों ने उसकी सुर्ख़ियों के साँए में अपनी राजनैतिक ज़मीन में पानी दिया। आनंदपाल की लाश का क्रियाकर्म रोककर इन्होने समाज के लोगों को भड़काया। लोगों को उपद्रवी बनाकर अपने भुजबल को सहारा देने की कोशिश की। आज जब आनंदपाल का अंतिम संस्कार किया गया, तो सबसे ज़्यादा दुःख इन नेताओं को हुआ। दुःख आनंदपाल के मिटने का नहीं बल्कि उसकी देह के साथ ही इनकी फ़र्ज़ी राजनीति के भस्म हो जाने की।