करणी माता मेला राजस्थान सहित देशनोक के लोकप्रिय त्योहारों में से एक माना जाता है। यह मेला इस इलाके में एक त्योहार की तरह मनाया जाता है जो साल में दो बार मार्च-अप्रैल और सितम्बर-अक्टूबर में आता है। या यूं कहें कि नवरात्र में सेलिब्रेट होता है। इस बार करणी माता मेला 18 मार्च से 26 मार्च तक आयोजित होगा। यहां करणी माता का विशाल मंदिर है जिसे चूहे वाली माता और चूहे वाले मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह नाम इसलिए क्यूंकि यहां ढेर सारे चूहों का वास है। करणी माता मंदिर बीकानेर से कुछ ही दूरी पर देशनोक नामक स्थान पर बना हुआ है। आस्था व विज्ञान का तिलिस्मी तालमेल लिए अपने सीने में राज छुपाए बैठे करणी माता मंदिर की यह पहली विशेषता है।
करणी माता मंदिर की खास बात है ”लोग इस मंदिर में आते तो माता के दर्शन के लिए हैं पर उनकी नजरें खोजती हैं सफेद चूहे को।” असल में यहां मान्यता है कि अगर किसी को यहां ढेर सारे चूहों के बीच सफेद चूहे के दर्शन होते हैं तो उसकी यहां मांगी गई मनोकामना पूरी होती है। वैसे तो करणी माता मंदिर का समय गर्मियों में सुबह 4 बजे से रात 9 बजे तक और सर्दियों में सुबह 5 बजे से 9 बजे तक होता है। लेकिन मेले के दौरान मंदिर रात 11 बजे तक दर्शनों के लिए खुला रहता है।
इस मंदिर में पैर रखते ही आपको यहां हजारों की संख्या में चूहे मिलेंगे। आकार में काफी बड़े इन मूसकों की संख्या करीबन 20 हजार बताई जाती है। मंदिर के हर गलियारे में इनका निवास है लेकिन आतंक बिलकुल भी नहीं। यहां तक की मंदिर के प्रसाद में भी इनका हिस्सा है। कहने का मतलब है कि यहां प्रसाद भी चूहों का झूठा ही भक्तों को दिया जाता है। इतना होने के बाद भी मंदिर सहित पूरे देशनोक में आजतक प्लेग से एक भी मौत नहीं हुई है। विज्ञान के लिए आज भी यह बात एक पहेली बना हुआ है जो कुदरत का एक करिश्मा है।
करणी माता मंदिर में चूहों को काबा कहा जाता है और इन काबाओं को बाकायदा दूध, लड्डू आदि भक्तों के द्वारा भी परोसा जाता है। असंख्य चूहों से पटे इस मंदिर से बाहर कदम रखते ही एक भी चूहा नजर नहीं आता और न ही मंदिर के भीतर कभी बिल्ली प्रवेश करती है। कहा तो यह भी जाता है कि जब प्लेग जैसी बीमारी ने अपना आतंक दिखाया था तब भी यह मंदिर ही नहीं बल्कि पूरा देशनोक इस बीमारी से महफूज था।
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