कमाल है ना! कभी-कभी आश्चर्य होता है। मन में एक ही सवाल उठता है। कौन हैं ये लोग? कहाँ से आते हैं, जेएनयू में? ये सारे लोग ये सारी विचारधारा अचानक से पिछले पांच सालों में ही। कहाँ से पैदा हो गयीं। क्या 2014 से पहले देश समृद्ध था? क्या नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले देश पूर्णरूपेण सुरक्षित था? भाजपा की सरकार आने से पहले क्या सबको रोज़गार उपलब्ध था? कांग्रेस की सरकारों के वक़्त क्या भारत 100 फ़ीसदी शिक्षित था? आज़ादी से लेकर 2014 तक क्या देश में बिल्कुल भी भ्रष्टाचार नहीं था? फिर सवाल उठता है… कि यदि भाजपा या नरेंद्र मोदी देश के लिए सही नहीं है! तो फिर कौन है? कौन हैं जो ये तय कर सके की 130 करोड़ हिन्दुस्तानियों किस चीज़ की ज़रूरत है? कौन हैं जो देश को एक स्वर में हिंदुस्तान ज़िन्दाबाद कहने के लिए प्रेरित कर सके।
जेएनयू में ज्ञान तो बांटा जाता है मगर देश को बांटने का
हिंदुस्तान मुर्दाबाद और भारत तेरे टुकड़े होंगे…इंशाअल्लाह…! इंशाअल्लाह …! ‘अफजल तेरे खून से इंकलाब आएगा। अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं। ऐसा कहने वालों से देश को खतरा नहीं है। देश को ख़तरा है सिर्फ़ आरएसएस और बीजेपी से। ये कहना है हमारी एक भगिनी का जो जेएनयू में पढ़ती है। वैसे तो वो अपने आपको शिक्षित कह रहीं हैं। लेकिन उनकी तर्कक्षमता और व्यक्तव्य से तो उनके कांग्रेसी होने की बू आ रही है। क्योंकि बहनजी के अनुसार सिर्फ़ भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ से ख़तरा है। बाकी ये अफ़जल गुरु, अजमल कसाब, अबु सलेम ये तो ग़रीब देश भक्त थे। जिन्हें भारतीय सरकार ने बिना कसूर फांसी की सजा दे दी। बहनजी के अनुसार भारत के संविधान को नष्ट कर देना चाहिए। भारत की न्याय प्रणाली को नष्ट कर देना चाहिए। और जिन लोगों ने संविधान बनाया उनको देशद्रोही, क़रार कर देना चाहिए।
भारतीय संविधान की उदारता ना की जेएनयू का अधिकार
ये हमारे संविधान की उदारता ही तो है। जो आज देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर। देश के ख़िलाफ़ कुछ भी बोलने वालों को माफ़ कर देती है। देश के दुश्मनों और आतंकवादी समर्थित नारे लगाने वालों को भी देश में रहने का हक़ देती है। अरे हमारा संविधान तो इतना उदार है कि देश पर हमला करने वाले अलमल क़साब जैसे आतंकवादी को भी। उसकी सिर्फ़ एक अपील पर जेल में घूमने की इजाज़त दे दी जाती है। उसको विश्वस्तरीय सुविधाएँ प्रदान करने के 50 करोड़ रुपये ख़र्च कर दिए जाते हैं। ये आज कल के पैदा हुए बच्चे कहते हैं। देश को आरएसएस और बीजेपी से ख़तरा है। अरे देश को उन लोगों से ख़तरा है। जिनके रहते हुए 1947 में देश के दो टुकड़े हो गए। जिन्होंने 1975 में देश में अनिश्चित आपातकाल घोषित कर। हिंदुस्तान को अपने ही घर में बंदी बना दिया था।
अगर भाजपा देश को बेच रही है तो कांग्रेस ने कौनसा संरक्षित कर दिया
इतना ही नहीं। जेएनयू वाली बहनजी बगल में थैला लटकाकर बोलती हैं। बीजेपी ने देश को बेच दिया। कहाँ बेच दिया दीदी। ज़रा हमें भी तो बताओ। किस ज़िम्मेदार व्यक्ति को काम सम्हलना देश को बेचना कहते है। तो आपके पिताजी आपकी शादी कर क्या आपको बेच देंगे। ये तो बिल्कुल वैसा ही हो गया ना। कि आपने शादी करने के लिए कई लड़कों के प्रस्ताव मांगे। और उनमे से जो आपके नियम कानूनों पर खरा उतरेगा आप उस सी ब्याह रचाएंगी ना। किसी ऐरे गैरे नत्थू खैरे के पल्ले तो नहीं पड़ जाएँगी। फ़ीर क़िस्मत नाम की भी तो कोई बला होती है। ठीक ऐसे ही भारत सरकार ने तो हवाई अड्डों की देखभाल के लिए देश के सभी ज़िम्मेदार बड़े उद्योगपतियों से अनुबंध पत्र मांगे थे। लेकिन जो सभी मानदंडों पर ख़रा उतरा, उसे दे दिए।
ज़िम्मेदार को ज़िम्मेदारी देना बेचना है तो कांग्रेस भी यही करके बैठी है
अब ये है नहीं कि देश की सबसे बड़ी जनसेवा को किसी को भी दे दें। और फ़िर सिर्फ़ उन हवाई अड्डों को बेचने का आरोप क्यों लगाते हो। जिनकी ज़िम्मेदारी अडानी समूह को मिली है। उनके बारे में भी तो कहो जो दूसरे समूह के उद्योगपतियों को मिली है। मतलब जिनके साथ मोदी की मुलाक़ात है। उन्हें तो बेचना कहलाया। जिनके साथ मुलाक़ात नहीं है, उनका क्या…! फिर ये जेएनयू वाले सिर्फ़ उन कॉन्ट्रेक्ट्स के बारे में ही क्यूँ बोलते हैं। जो मोदी सरकार में दिए गए। उनके बारे में क्यों नहीं बोलते जो कांग्रेस या यूपीए सरकार में बांटे गए। या कांग्रेस परिचितों को दिए गए। क्योंकि राष्ट्रिय जीजाजी श्री वडराजी के बारे में क्यों नहीं कुछ कहते। जिनको नेग में शगुन के नाम पर आधे से ज़्यादा हिंदुस्तान की ज़मीनें बेच दी गयी।
महिलाओं के सम्मान में खड़ा होना है तो पहले ख़ुद अपना सम्मान करना सीखो
झोले वाली बहन “जी” ने ये भी कहा कि महिलाओं को मज़बूत करने के नाम पर बीजेपी चुनावी कैंपेन कर रही है। कौन से ज़माने में जी रही हो बहन “जी”! ये आज की बात नहीं है। बीजेपी तो पिछले कई सालों से महिला सम्मान की ना केवल बात करती आयी बल्कि सही मायनों में सम्मान भी करती आयी है। ज़्यादा पुरानी बात नहीं करते। पिछले पांच सालों की ही बात करते हैं। ये नरेंद्र मोदी जी ही हैं। जिन्होंने सुकन्या समृद्धि की सोच से देश की हर बालिका को मजबूत बनाया ना की मज़बूर। जिन्होंने जनधन की सोच से हर महिला को आर्थिक रूप से मज़बूत बनाया। लेकिन आपको ये अप्रत्यक्ष फ़ायदे कहाँ समझ आते हैं।
इन्हें भगत सिंह के सपनो का भारत नहीं अपना भारत चाहिये
आपको को वो प्रत्यक्ष लाभ नज़र आते हैं। जो महिलाओं एक हाथ में सिगरेट, दूसरे हाथ में शराब लिए दिल्ली के सिग्नेचर ब्रिज पर अंग प्रदर्शन की इजाज़त दे। और अगर कोई रोके तो वो लड़कियाँ ही उनकी माँ-बहन एक कर सके। तब जाकर इन बहन जी के सपनों का भारत बनेगा। वरना भगत सिंह के सपनों का भारत तो उसी दिन मर गया था। जब भगत सिंह ने गांधीजी को पत्र लिखा की उनके साथ जेल के वैसा ही सलूक किया जाये। जैसा एक युद्ध बंदी या सिपाही के साथ किया जाये। मगर ना तो गांधी “जी” ने ना नेहरू “जी” ने उनके पत्र का जवाब देना उचित समझा। क्योंकि वो तो उस वक़्त आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे थे। जबकि भगत सिंह तो अपने दोस्तों के साथ जेल में चिल मार रहे थे ना। ये बहन “जी” के सपनों का भारत भी कुछ ऐसा ही होना चाहिए। शायद…!
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