लोकसभा चुनाव के राजस्थान में प्रथम चरण के तहत 13 सीटों पर मतदान 29 अप्रैल को सम्पन्न हो गया है, जिसमें झालावाड़-बारां व जोधपुर सीट पर हर प्रदेशवासी की नजर बनी हुई है। जोधपुर में जहां केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत व सीएम गहलोत के बेटे वैभव गहलोत आमने-सामने चुनाव लड़ रहे है। वहीं झालावाड़-बारां में भाजपा से पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के पुत्र दुष्यन्त सिंह व कांग्रेस प्रमोद शर्मा मैदान में है। हाड़ौती क्षेत्र में वैसे तो ज्यादा दबदबा भाजपा का है लेकिन बारां के अंता विधानसभा क्षेत्र से जीतकर खनन मंत्री बने प्रमोद जैन भाया का भी अपना अलग वर्चस्व माना जाता है।
झालावाड़ जिला वसुंधरा का गढ़ है, तो बारां में खनन मंत्री प्रमोद जैन भाया का दबदबा है। मगर कांग्रेस ने इस बार झालावाड़ से युवा चेहरे प्रमोद शर्मा को उतारते हुए चौंकाने वाला निर्णय लिया। प्रमोद जैन भाया ने अंता विधानसभा सीट से पूर्व कृषि मंत्री रहे प्रभुलाल सैनी को हराकर अपना खासा प्रभाव दिखाया था। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने लोकसभा चुनाव में न तो खुद को उतारना जरूरी समझा और न ही अपनी पत्नी उर्मिला जैन को टिकट दिलवाने का प्रयास किया। गौरतलब है कि पिछले लोकसभा चुनाव में उर्मिला जैन ने सांसद दुष्यन्त सिंह को कड़ी चुनौती दी थी।
प्रमोद शर्मा को सोची समझी राजनीति का शिकार बनाया
कांग्रेस के इन दो मुख्य चेहरों को छोड़कर एक कम अनुभवी व राजनीति की समझ नहीं रखने वाले प्रमोद शर्मा को टिकट दिलवाने से पार्टी में भीतरघात खुलकर सामने आ रहा है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं का कहना है कि मंत्री भाया चाहते तो दुष्यन्त सिंह के सामने खुद या पत्नी को लड़वाकर कड़ी चुनौती दे सकते थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके पीछे कारण बताया जा रहा है कि खनन मंत्री बनने के बाद भाया किसी भी हाल में मंत्री पद छोड़ने को राजी नहीं थे। क्योंकि हाड़ौती संभाग में खनन व्यापार बड़े स्तर पर होता है, ऐसे में उन्होंने संसद जाने की बजाय विधानसभा में रहना ही उचित समझा। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि अगर प्रमोद जैन भाया ईमानदारी से पार्टी को झालावाड़-बारां की सीट जीतवाने का प्रयास करते तो शायद भाजपा इस सीट पर हार भी जाती।