चंद्रयान का विक्रम लैंडर चांद की सतह पर है, ये तो तय है। इसरो ने खुद कहा है। लेकिन इसरो और विक्रम लैंडर का अभी तक संपर्क नहीं हो पाया है। चांद की कक्षा में ढूंढ रहे ऑर्बिटर की मदद से ऐसा करने की लगातार कोशिश की जा रही है। मगर सफ़लता कुछ नहीं है।
#VikramLander has been located by the orbiter of #Chandrayaan2, but no communication with it yet.
All possible efforts are being made to establish communication with lander.#ISRO— ISRO (@isro) September 10, 2019
लेकिन ये भी जानना ज़रूरी है कि इसरो और विक्रम लैंडर के संपर्क कर पाने की मियाद बेहद कम है। लगभग दो हफ़्तों की ही। इस बीच अगर संपर्क नहीं हो पाता है तो ये मान लेना चाहिए कि इसरो विक्रम लैंडर को हमेशा के लिए खो देगा।
ऐसा क्यों? इसरो और विक्रम लैंडर एक दूसरे से अलग हो जाएंगे
दरअसल चांद पर दिन और रात की मियाद में बहुत बड़ा फासला है। चांद पर 14 दिन की सुबह होती है, फिर 14 दिन की रात होती है। जिस समय चंद्रयान चांद पर पहुंचा, उस समय चांद की सुबह चल रही थी।
इस 14 दिन की सुबह के बीच ही विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर को अपना सारा काम पूरा करना था। चांद की रात के बारे में बात करें तो ये रातें बहुत ठंडी होती हैं। माइनस 200 डिग्री तक तापमान चला जाता है। मतलब जिस टेम्प्रेचर पर पानी बर्फ में बदलता है, उससे भी 200 डिग्री नीचे। और विक्रम लैंडर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर गिरा है। वहां तो तापमान की कमी और भी ज़्यादा होगी। और चंद्रयान को इस तरीके से बनाया गया है कि वो दिन के समय ही काम कर सकता है। रात के ठंडे तापमान में नहीं।
इसरो ने कहा कि टेढ़ा पड़ा है लैंडर
अब विक्रम लैंडर चांद की सतह से जाकर टकरा गया है। वहां उसकी लैंडिंग सही तरीके से नहीं हो सकी है। इसरो ने बताया है कि लैंडर चांद की ज़मीन पर टेढ़ा पड़ा हुआ है। अगर लैंडर का एंटीना सही दिशा में हुआ तो ही ऑर्बिटर से उसका संपर्क हो सकेगा। अगर लैंडर का एंटीना चांद की ज़मीन में धंसा होगा, या टूट गया होगा, या किसी पत्थर के नीचे दबा होगा, तो ऑर्बिटर से उसका कोई संपर्क नहीं साधा जा सकेगा। और संपर्क की कोशिश के लिए समय है महज़ 14 दिन। उसके बाद ऑर्बिटर ही रहेगा, कह सकते हैं कि लैंडर और रोवर बेकार।