हनुमानगढ़। ‘राजस्थान में थाने के अंदर एफआईआर दर्ज करना कंपलसरी कर दिया है, जो अन्य कहीं पर भी नहीं है। क्राइम की संख्या बढ़ेगी, लेकिन लोगों को राहत मिलना आवश्यक है,यदि थाने में नहीं करते हैं तो एसपी ऑफिस के अंदर भी दर्ज करने की कार्रवाई हमने शुरू करवा दी, वह भी देश में कहीं नहीं है।’ ट्विटर की यह पोस्ट मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अगस्त, 2019 में की थी और गत 20 जनवरी, 2023,शुक्रवार को यही घोषणा हनुमानगढ़ जंक्शन में आयोजित कांग्रेस कार्यकर्ता सम्मेलन में हुई। मात्र 7 दिन पहले जंक्शन धान मंडी में हुई घोषणा के बावजूद आज भी संज्ञेय अपराधों के पीडि़त थानों व एसपी ऑफिस के बीच एफआईआर दर्ज करवाने के लिए चक्कर काट रहे हैं।

परिवादियों को न्यायालय का सहारा लेना पड़ता है

पुलिस अधिकारी अपने क्षेत्र में दर्ज हुए मामलों की संख्या कम दिखाने या अपराध की जांच आदि के झंझट से बचने के लिए एफआईआर दर्ज करने में आनाकानी करते हैं। आखिर में परिवादियों को न्यायालय का सहारा लेना पड़ता है। एसपी ऑफिस में जीरो एफआईआर दर्ज करने के लिए शुरू की गई सुविधा के तहत पिछले चार वर्षों में कितनी रिपोर्ट दर्ज हुई, इसकी जानकारी देने में पुलिस अधिकारी कतरा रहे हैं, क्योंकि जीरो एफआईआर की संख्या नगण्य है। हालांकि पुलिस अधिकारियों का कहना है कि थानों पर ही एफआईआर दर्ज हो रही है, इसलिए जीरो एफआईआर दर्ज करने की नौबत ही नहीं आती है।

जिले की एक महिला को अगस्त माह में आरोपियों ने पांच दिन तक बंधक बनाए रखा और गैंग रेप किया। इसके बाद आरोपियों ने पीडि़ता को थाने के सामने ले जाकर छोड़ दिया। इसके बाद पीडि़ता ने थाने में रिपोर्ट दी, लेकिन मामला दर्ज नहीं हुआ। इसके बाद पीडि़ता ने एसपी के समक्ष पेश होकर अपनी पीड़ा सुनाई, लेकिन फिर भी मामला दर्ज नहीं हुआ पर न्यायालय के इस्तागसे से मामला दर्ज करवाया। अब पीडि़ता पिछले दो-ढाई माह से पुलिस अधिकारियों के चक्कर काट रही है, लेकिन उसे न्याय नहीं मिला है। यह मात्र एक उदाहरण है पुलिस की कार्यशैली का, बाकी ऐसे मामले एसपी ऑफिस में आए दिन आते हैं, लेकिन उनमें न तो जीरो एफआईआर दर्ज होती है और न ही सम्बन्धित पुलिस अधिकारियों के खिलाफ धारा 166 (ए) के तहत कार्रवाई।

इसी तरीके से जंक्शन के सिविल लाइन्स निवासी एक ठेकेदार द्वारा जिस दिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हनुमानगढ़ में कार्यकर्ता सम्मेलन को सम्बोधित कर रहे थे ठीक उसी दिन जंक्शन थाने में परिवाद दिया गया है कि उसकी मशीनरी सिविल लाइन निवासी एक प्रभावशाली व्यक्ति विशेष के कब्जे से छूड़वाई जाए लेकिन पुलिस अधिकारी इस तरफ बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रहे। उक्त मामले में परिवादी ठेकेदार को वर्तमान में जान से मारने की धमकी भी मिल चुकी है लेकिन पुलिस अधिकारी है कि मौन धारण करें बैठे हैं। मतलब कानून नाम की कोई चीज नहीं रही। पुलिस अधिकारी ऐसे मामलों को जानबूझ कर हल्के में क्यों ले रहे है। कल को कोई अप्रिय घटना हुई तो ऐसे कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी जांच के दायरे में होंगे।

नियम तो यह भी है, लेकिन पालना नहीं होती

यदि आपको अपने क्षेत्र के थाने के विषय में जानकारी नहीं हैं, तो किसी भी नजदीकी थाने में जाकर आप एफआईआर दर्ज करा सकते हैं। कोई भी पुलिस अधिकारी एफआईआर दर्ज करने से मना नहीं कर सकता, चाहे अपराध उसके पुलिस स्टेशन के कार्यक्षेत्र से बाहर ही क्यों न हुआ हो। आप अपने क्षेत्र से बाहर के थाने में रिपोर्ट दर्ज कराते हैं, तो उस थाने के अधिकारी एफआईआर दर्ज कर आपके क्षेत्र के पुलिस स्टेशन को शिकायत भेज देते हैं, इसे ‘जीरो एफआईआर’ कहा जाता है। इसके बावजूद जिले में परिवादियों को एफआईआर दर्ज करवाने के लिए भटकना पड़ रहा है।

मौखिक में भी दे सकते हैं सूचना,महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान

एफआईआर दर्ज कराने के लिए पुलिस अधिकारी को मौखिक अथवा लिखित सूचना दी जा सकती है। एफआईआर दर्ज कराने के लिए खुद को थाने जाने की जरूरत नहीं है। घटना का चश्मदीद या कोई रिश्तेदार भी प्राथमिकी दर्ज करा सकता है। आपात स्थिति में पुलिस फोन कॉल या ई-मेल के आधार पर भी प्राथमिकी दर्ज कर सकती है। यदि पीडि़त महिला स्वयं अपने साथ हुए यौन अपराध की एफआईआर दर्ज कराती है तो उसे महिला पुलिस अधिकारी अथवा महिला अधिकारी द्वारा दर्ज किया जाता है। यदि पीडि़ता मानसिक अथवा शारीरिक रूप से अक्षम हैं तो एफआईआर किसी दुभाषिया/विशेष शिक्षक की उपस्थिति में महिला के निवास स्थान अथवा उसकी पसंद के किसी स्थान पर दर्ज की जाती है।

एफआईआर दर्ज करने से मना नहीं कर सकते

संज्ञेय अपराध की सूचना मिलने पर किसी भी थानाधिकारी को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154(1) के प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज करनी अनिवार्य है। यदि थानाधिकारी द्वारा एफआईआर दर्ज नहीं की जाती है तो एसपी द्वारा धारा 154(3) में ऑर्डर देकर दर्ज करवाई जाती है। यदि एसपी द्वारा भी एफआईआर दर्ज नहीं की जाती है तो 156(3) में न्यायालय द्वारा एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए जाते हैं। यदि किसी भी संज्ञेय अपराध की सूचना मिलने के बावजूद थानाधिकारी एफआईआर दर्ज नहीं करता है तो उसके विरुद्ध आईपीसी की धारा 166(ए) के तहत मुकदमा दर्ज करना पुलिस अधिकारी की कानूनी बाध्यता है।

– अनिल जांदू, सामाजिक और आरटीआई कार्यकर्ता, हनुमानगढ़