राजस्थान में सरकारी अस्पतालों में कार्यरत सरकारी चिकित्सक बीते कुछ दिनों से अपनी 10 मांगों के चलते हड़ताल पर चल रहे हैं। उनकी हड़ताल के चलते मरीज इधर-उधर मारे-मारे फिर रहे हैं। यहीं नहीं, इसी हड़ताल के चलते प्रदेशभर में 8 से ज्यादा मौते भी हो चुकी हैं लेकिन सरकारी चिकित्सकों पर इसका कोई असर नहीं। देखा जाए तो कोई भी मरीज भगवान के बाद चिकित्सक को ही दूसरा भगवान मानता है। अपनी नौकरी से पहले सभी सरकारी चिकित्सक अपने मरीज की सच्चे मन से इलाज करने की शपथ भी खाते हैं लेकिन इस तरह बिना औचित्यपूर्ण हड़ताल पर सरकारी चिकित्सकों का जाना कहां तक ठीक है, इसका कोई जवाब किसी के पास नहीं है।
प्रदेश में चिकित्सकों का ऐसा करना पहली बार नहीं है। सच तो यह है कि सरकारी चिकित्सकों ने राजस्थान सरकार पर दवाब डालकर कई बार ऐसा किया है। राजस्थान सरकार से हुई समझौता वार्ता में सेवारत सरकारी चिकित्सक आईएएस के बराबर ग्रेड की बात को लेकर अड़ गए और इंकार के बाद प्रदेशभर के 9,638 चिकित्सकों ने सामूहिक इस्तीफे दिए हैं। साथ ही राज्य में समस्त ग्रामीण एवं शहरी अस्पतालों का संचालन एक ही पारी कराए जाने की उनकी मांग भी किसी भी तरह से उचित नहीं है। कहने का मतलब है कि सरकारी बाबूओं की तरह सरकारी चिकित्सक केवल सुबह अस्पताल जाएंगे और देहाड़ी मजदूर की तरह काम करेंगे। अगर ऐसा होता है तो इमरजेंसी का क्या होगा या फिर शाम को कोई मरीज सीरियस हो तो उसका तो भगवान ही मालिक है।
अगर राजस्थान सरकार द्वारा मेडिकल की पढ़ाई कर रहे एमबीबीएस छात्रों पर हुए खर्चों पर गौर किया जाए तो सरकारी मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस करने वाले छात्रों से 5 साल में प्रति छात्र औसतन केवल 14 हजार फीस ली जाती है और औसतन 70 लाख रूपए खर्च करती है। जयपुर शहर में यह खर्चा 134.14 लाख रूपए प्रति छात्र है जो किसी भी तरह से कम नहीं है। बात करें तनख्वाह की तो गुजरात, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के मुकाबले राजस्थान में सरकारी चिकित्सकों को सबसे अधिक वेतन और पदोन्नति दी जा रही है। नॉन प्रैक्टिस अलाउंस (एनपीए) दिए जाने के बावजूद प्राइवेट प्रेक्टिस की कोई रोक नहीं है। इसके बाद भी चिकित्सकों का ऐसा करना और उनकी इस तरह की घटिया मांगों पर साथ देना किसी भी तरह से उचित नहीं माना जा सकता है।
अब तो सरकारी चिकित्सकों के साथ रेजिडेंटल्स ने भी इस हड़ताल में साथ देना शुरू कर दिया है। केवल उच्च तनख्वाह के लिए इस तरह के हथकंडे अपनाना क्या सरकारी चिकित्सकों के पद को शोभा देता है। हालांकि राजस्थान सरकार ने चिकित्सकों की 10 में से 8 मांगों पर अपनी सहमति दे दी है लेकिन समयबद्ध पदोन्नति एवं मेडिकल कैडर जैसी महत्वपूर्ण मांगे माने जाने के बावजूद सरकारी चिकित्सकों का काम पर नहीं जाना औचित्यहीन है। केवल अपने वित्तीय लाभों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के सुधार के नाम पर सेवारत चिकित्सकों द्वारा हड़ताल या सामूहिक त्यागपत्र क्या एक चिकित्सकीय धर्म है।
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