जयपुर। विधानसभा चुनाव 2023 के लिए भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ने अपनी रणनीति के साथ तैयारी में जुट गई है। प्रदेश में सत्ता परिवर्तन की परंपरा को खत्म कर एक बार फिर सूबे की सत्ता में वापसी का दावा कर रही कांग्रेस से कुर्सी छीनने के लिए बीजेपी ने कमर कस ली है। विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में भीलवाड़ा दौरा किया। अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ घेराबंदी के लिए गुर्जर वोटर को साधने की कोशिश मानी जाती है। लेकिन जो गुर्जर वोटर पिछले 20 सालों से कर्नल किरोड़ीसिंह बैंसला की छतरी तले एकजुट नजर आता था। जिसे साधना किसी पार्टी के लिए उतना आसान नहीं होता था।
15 विधानसभा सीटों पर सबसे ज्यादा गुर्जर वोट
राजस्थान में 15 विधानसभा सीटें ऐसी है जहां गुर्जर वोटर ही सबसे ज्यादा है। 50 से ज्यादा ऐसे विधानसभा क्षेत्र है जहां गुर्जर वोटर संख्या के लिहाज से दूसरे या तीसरा स्थान पर है। कुल मिलाकर सूबे की 75 के करीब सीटों पर वो प्रभाव डालते है। जनसंख्या के लिहाज से 5.5 प्रतिशत गुर्जर वोटबैंक माना जाता है। क्योंकि पिछले 20 सालों में प्रदेश की राजनीति में गुर्जर वोटर मोटे तौर पर पार्टी की बजाय जातीय ध्रुवीकरण पर रहा।
गुर्जर समाज कांग्रेस खफा
बीजेपी सत्ता सौंपने में अहम भूमिका निभाने वाले गुर्जर वोट बैंक में सेंधमारी कर रही है। इस बार बीजेपी सत्ता पर काबिज होने के लिए गुर्जरों को अपने पक्ष में करने की कवायद कर रही है। बीजेपी को कांग्रेस की कमजोर कड़ी भी पता है। मौजूदा माहौल को देखते हुए उन्हें यह पता है कि सचिन पायलट को सीएम नहीं बनाने से गुर्जर समाज कांग्रेस से खफा है। गुर्जरों की नाराजगी को बीजेपी अपने पक्ष में करने का प्रयास कर रही है।
पीएम मोदी के साथ मंच पर एक भी गुर्जर नेता नहीं
पीएम मोदी ने भीलवाड़ा के आसींद का दौरा किया तो उनके निशाने पर गुर्जर वोटर था। चुनावी साल में पीएम मोदी ने अपने पहले दौरे में भगवान देवनारायण जी के 1111वें जन्मोत्सव पर आयोजित कार्यक्रम में भाग लिया। हालांकि इस कार्यक्रम में मंच पर किसी भी गुर्जर नेता को जगह नहीं दी गई। सचिन पायलट से लेकर देवनारायण बोर्ड के अध्यक्ष जोगेंद्र अवाना और गुर्जर नेता विजय बैंसला को भी जगह नहीं दी गई।
बैंसला के निधन के बाद गुर्जर नेताओं के अलग अलग धड़े
राजस्थान विधानसभा चुनाव 2018 में सचिन पायलट कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष थे. माना जाता है कि गुर्जर समाज ने एकजुट होकर कांग्रेस के पक्ष में मतदान दिया। लेकिन उसके बाद कई तरह के राजनीतिक हालत बदले। देवनारायण बोर्ड का अध्यक्ष बनाकर जोगिंदर अवाना तो कभी अशोक चांदना जैसे नेताओं को गुर्जर लीडर को तौर पर खड़ा करने के प्रयास हुए। लेकिन किरोड़ी बैंसला के निधन के बाद मोटे तौर पर गुर्जर नेताओं के अलग अलग धड़े खड़े हुए।
कांग्रेस भी गुर्जर मतदाताओं को साधने में जुटी
अब बीजेपी और कांग्रेस दोनों को अब गुर्जर वोटर को साधना आसान लग रहा है। इसके लिए पीएम मोदी के चेहरे पर बीजेपी तो राजस्थान सरकार में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी अलग अलग फैसलों के जरिए गुर्जर मतदाता को साधने में लगे है।
बैंसला के फैसले का समाज नहीं किया विरोध
राजस्थान में गुर्जर वोटर पिछले 20 सालों में आरक्षण आंदोलन की वजह से एकजुट रहा। कर्नल किरोड़ीसिंह बैंसला के कुशल नेतृत्व का परिणाम था। प्रदेश में जब गुर्जर पटरियों पर बैठते थे, तो सरकारों को समझौते की टेबल पर बैठना पड़ता था। वसुंधरा राजे सरकार (2003-2008) में शुरु हुआ आंदोलन साल 2019 में अशोक गहलोत सरकार में हुए एक फैसले तक लगातार चलता रहा। बैंसला के फैसले का मोटे तौर पर समाज में कभी विरोध नहीं हुआ। उन्हौने अच्छी शिक्षा, अच्छा स्वास्थ्य, पढ़ी लिखी मां और कर्ज मुक्त समाज का नारा दिया था। 31 मार्च 2022 को उनका निधन हो गया।