छः दिन से हज़ारों लोग गुर्जर आरक्षण के नाम पर सड़कों और रेल की पटरियों पर बैठे हैं। इन छः दिनों में देश-प्रदेश के करोड़ो लोग प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुए। लाखों लोग अभी भी रेलवे स्टेशनों और बस अड्डों पर फंसे हुए है। सरकार सहित सम्पूर्ण राज्य को करोड़ों रुपये का घाटा हो रहा है। यातायात व्यवस्था ठप्प होने की वजह से आम जन-जीवन बुरी तरह से अस्त-व्यस्त हो चुका है। कोई अपना आर्थिक स्वार्थ सिद्ध करने में लगा है, कोई अपना राजनीतिक लक्ष्य साधने में लगा है, को व्यापारिक रूप से फायदा उठा रहा है, तो कोई सिर्फ़ अपने नाम का झंडा ऊँचा करने में लगा हुआ है।
इन सबके बीच जो नुक़सान है, वो गाहे-बगाहे आम आदमी का ही हो रहा है। जनता का हो रहा है। क्योंकि गुर्जर आरक्षण की लड़ाई अब हक़ की लड़ाई नहीं रही, ये अब राजनीति की लड़ाई बन गयी है। जिसकी सरकार ने गुर्जर आरक्षण दे दिया, उसी का राजनीतिक आर्कषण बेहद बढ़ गया। गुर्जर आरक्षण के नाम पर समय-समय पर कई लोगों ने अपना उल्लू खूब सीधा किया है।
5% गुर्जर आरक्षण तो पहले ही दे दिया था
कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला उनके बेटे विजय सिंह बैंसला और गुर्जर समाज के अन्य लोगों ने पिछले छः दिन से जो आरक्षण आंदोलन चला रखा है, वो आरक्षण तो उन्हें पहले से मिला हुआ है। लेकिन जैसा की संविधान लिखा हुआ है कि आरक्षण कभी भी 50% से ज़्यादा नहीं होना चाहिए इसकी पालना करते हुए कोर्ट ने इस अतिरिक्त पांच प्रतिशत आरक्षण पर रोक लगा दी थी। क्योंकि इस 5% फीसदी आरक्षण की वजह से राजस्थान में सकल आरक्षण सीमा 54% पर पहुँच गयी थी। अब जब भारत का संविधान ही इस बात की इजाज़त नहीं देता तो कौन सी सरकार है तो 50% से ज्यादा आरक्षण दे देगी। इतिहास गवाह है, जब भी कभी आरक्षण 50% से ज़्यादा हुआ, तब न्यायालय के दखल द्वारा इस पर रोक लगा दी गयी। ऐसे में सीमा से अधिक आरक्ष देना और मांगना दोनों ही अनुचित है।
सचिन पायलट ने गुर्जर आरक्षण के नाम पर समाज का इस्तेमाल किया
किसी भी व्यक्ति द्वारा किसी भी समाज या समुदाय को किसी भी प्रकार का प्रलोभन या लालच देकर अपने कार्य सिद्ध करने को कोई अधिकार नहीं है। लेकिन ये हमारे देश की संस्कृति बन चुका है। पहले कई गुर्जर नेताओं ने आरक्षण की आग में अपनी रोटियां सेकि थी तो अब सचिन पायलट ने। जब राजस्थान में 2018 के विधानसभा चुनाव चल रहे थे, तब सचिन पायलट जहां भी चुनाव प्रचार के लिए जाते थे, वहां गुर्जर समाज से यही कह कर आते थे कि अगर हमारी सरकार बनाओगे तो मैं तुम्हें आरक्षण दिलवा दूंगा। उसी आस में राजास्थान की पूरी गुर्जर समाज ने एक तरफ़ा वोट देकर कांग्रेस के उन सभी उम्मीदारों को जिताया जो गुर्जर बाहुल्य क्षेत्रों से आते थे।
सचिन पायलट का टोंक विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ना और जीतना भी इसी बात का एक उम्दा उदाहरण है। लेकिन सचिन पायलट ने गुर्जर आरक्षण के नाम पर समाज का इस्तेमाल तो कर लिया, मगर छः दिन से चल रहे गुर्जर आरक्षण पर सचिन के मुँह से दो बोल नहीं उपड़े। और आज जब सर्वसम्मति से विधानसभा में गुर्जर आरक्षण का बिल पास हो गया तो सचिन जी तुरंत बोल पड़े… “हमारी सरकार ने गुर्जर आरक्षण को मंजूरी देकर अच्छा काम किया है।” अब इनको कौन समझाए की साहब अगर सभी विधानसभा सदस्यों की ने इस पर मंजूरी नहीं दी होती तो आपकी सरकार धरी की धरी रह जाती। फ़िर आप कितनी ही कबड्डी खेल लेते, लेकिन ना आरक्षण मिलता ना ही आपके बोल निकलते।
राजस्थान गुर्जर आरक्षण की वजह से हुए नुक़सान की भरपाई कौन करेगा
राजस्थान को पिछले छः दिनों में ह रहे करोड़ों रुपये के नुकसान की ज़िम्मेदार कौन लेगा? जनता को हुयी शारीरिक और मानसिक परेशानी के लिए कौन ज़िम्मेवार है? देश-प्रदेश में जब भी कोई बड़ी घटना होती है, तो सबसे ज़्यादा परेशानी आम जनता को ही होती है। लेकिन हर बार ये आम जनता सरकार और ऐसी हरकतों के लिए ज़िम्मेवार लोगों को सिर्फ़ कोस कर ही रहा जाती है। लेकिन ना तो प्रशासन और ना ही सरकार जनता को हुई इस परेशानी और नुकसान की भरपाई नहीं करती है। ऐसे में हर व्यक्ति के मन में रह-रहकर यही बात उठती है, कि क्या ये लोग सिर्फ़ अपना राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध करने के लिए समाज के नाम पर कबड्डी खलते हैं!
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