आज कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा यानि गोवर्धन पर्व है। गोवर्धन पर्व दिवाली के ठीक अगले दिन मनाया जाता है। गोवर्धन उत्सव खुशी का त्योहार है। एक धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति इस दिन दुखी रहेगा, वह वर्षभर दुखी ही रहेगा। जो व्यक्ति गोवर्धन के शुभ मौके पर खुश रहेगा, वह वर्षपर्यंत प्रसन्न रहेगा। इसी प्रसन्नता व समृद्धि के लिए गोवर्धन पर्व मनाया जाता है और उनका पूजन किया जाता है। यह पर्व उत्तर भारत और खासतौर पर मथुरा क्षेत्र में अति उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस पर्व को अन्नकूट पर्व के के नाम से भी जानते हैं क्योंकि इस दिन जगह-जगह मंदिरों में अन्नकूट प्रसादी का वितरण होता है। गोवर्धन पूजा में गोधन यानि गायों की पूजा का भी अत्यंत महत्व है। भारत के कई स्थानों पर आज के दिन राजा बलि की पूजा भी की जाती है।
कैसे होती है गोवर्धन पूजा
इस दिन माताएं-बहिने सुबह नहा-धोकर गाय के पवित्र गोबर से गोवर्धन बाबा की प्रतिमूर्ति बनाती हैं। वास्तव में यह प्रतिमूर्ति गोवर्धन पर्वत की एक छवि है। कई क्षेत्रों में सुबह और कई स्थानों पर शाम को धी, दूध, शहद, दही और मिठाईयों से गोवर्धन बाबा की पूजा की जाती है। ‘मानसी गंगा गिरवर दे, गोवर्धन की परिक्रमा दे’ आदि के जयकारे लगाकर गोवर्धन बाबा की परिक्रमा लगाई जाती है और उनसे सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।
भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ा है गोवर्धन पूजा का महत्व
कहा जाता है, द्वापर युग में ब्रजवासी इंद्र देव की पूजा किया करते थे। तब श्रीकृष्ण ने उन्हें इंद्र की पूजा न कर गौधन को समर्पित गोवर्धन पर्वत पर जाकर गोवर्धन पूजा करने को कहा। प्रभु की बात मानकर मथुरावासियों ने इंद्र देव की पूजा बंद कर गोवर्धन पर्वत की पूजा करना शुरू कर दिया। इस बात पर कुपित हो इंद्र ने भारी बारिश कर पूरे गोवर्धन क्षेत्र को जलमग्न कर दिया। ऐसे में लोगों के प्राण बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और लोगों को उसकी ओट में ले उनके प्राणों की रक्षा की। 7 दिन के बाद जब इंद्र देव को ज्ञात हुआ कि कृष्ण वास्तव में भगवान विष्णु के अवतार हैं तो उन्हें अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने प्रभु से अपने बर्ताव के लिए क्षमा याचना की। बस उसी दिन से गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट की प्रथा आरंभ हो गई जो आज तक चली आ रही है।
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