राजस्थान को नयी सरकार मिल गयी। नए मुख्यमंत्री मिल गए। जिसकी आशा न थी, वो उप-मुख्यमंत्री भी मिल गए, और आज सभी विभागों के लिए नए मंत्री भी। जाहिर सी बात है, अब राजस्थान की कांग्रेस सरकार अपनी जिम्मेदारी को समझे और प्रदेश की भलाई में जल्द से जल्द जुट जाये। जो काम अधूरे पड़े हैं,उन्हें पूरे करवायें और नए काम शुरू करवायें। जो योजनाएं जनता को सबसे ज्यादा फायदा दे रही हैं, उन्हें सुचारु रूप से चलाये रखे और जो योजनाएं सिर्फ़ अधिकारीयों को फायदा दे रही हैं उन्हें? उन्हें बंद करवाएं। क्योंकि फायदा उठाने वाले अधिकारीयों का तो तबादला कर दिया गया है ना।
लेकिन अब बात आती है, कि कांग्रेस पार्टी की सरकार में राजस्थान के विकास के फैसलों पर मुहर लगाने से पहले कितनी माथापच्ची की जाएगी? जिस प्रकार से मुख्यमंत्री पद के लिए 3 दिन तक सभाएं होती रही, फिर मंत्रीमंडल के नामों के लिए कई दिनों तक मंत्रणा चली, और फिर मंत्रीपद के लिए भी काफी माथापच्ची हुयी। ऐसे में क्या आगे भी कोई योजना या विधेयक या कोई भी सरकारी काम करने के लिए कांग्रेस पार्टी में सभाओं के दौर पर दौर चलते रहेंगे? क्या राजस्थान की जनता के हित में प्रत्येक फैसला दिल्ली में जाकर लिया जायेगा? क्या आज भी राजस्थान की जनता की कमान दिल्ली में बैठे चंद लोगों के हाथ में है? क्या राजस्थान की जनता को किसी भी योजना के लाभ के लिए एक परिवार विशेष के लोगों के फैसले का मोहताज होना पड़ेगा? मन सवाल तो कई उठते हैं, लेकिन उनके जवाब कौन दे? क्योंकि ज़िम्मेदार तो अब वाकपटुता में इतने माहिर हो चुके हैं जो किसी भी सवाल का जवाब ऐसी होशियारी से लीप-पोत कर देते हैं कि सामने वाला उसकी चकाचौंध में सच्चाई को देख ही नहीं पाता।
जब राजस्थान की जनता ने स्वयं इन्हे चुना है तो फिर आने वाले पांच सालों तक राजस्थान को ये दंश तो झेलना ही पड़ेगा। जनता को किसी भी काम के लिए लिए दो-दो मुख्यमंत्रियों के मुँह ताकने पड़ेंगे। उन दोनों में से वर्चस्व की लड़ाई में जो जीत जायेगा फैसला वही करेगा और जनता पर थोपा दिया जायेगा। क्योंकि कांग्रेस ने राजस्थान को चौथी बार उप-मुख़्यमंत्री का तोहफा दिया है। इससे पहले टीका राम पालीवाल, 1 नवम्बर 1952 से 13 नवम्बर 1954, बनवारीलाल बैरवा, 19 मई 2002से 4 दिसम्बर 2003, और कमला बेनीवाल,12 जनवरी 2003 से 4 दिसम्बर 2003 के रूप में भी कांग्रेस राजस्थान को उप-मुख्यमंत्री दे चुकी है।
इन सबके चक्कर में राजस्थान की जनता को ही इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। क्योंकि कहने के लिए और दिखने के लिए तो जनता के सामने कांग्रेस के दोनों महामहिम श्रीमान अशोक गहलोत और श्रीमान सचिन पायलट एक साथ हैं। लेकिन कांग्रेस पार्टी की अंतर्कलह के बारे में भी सब लोग भली भांति जानते हैं। राजस्थान कांग्रेस पार्टी के दोनों बड़े नेता रेल की पटरी के सामान हैं, जो एक साथ होते हुए भी कभी एक नहीं हो सकते। जब तक इन दोनों नेताओं को बराबर शक्ति और रुतबा मिलता रहेगा तब तक राजस्थान की जनता की रेलगाड़ी सही चलती रहेगी, और जिस दिन भी इन दोनों नेताओं में से किसी एक की शक्ति कम पड़ी उसी दिन राजस्थान की ये रेलगाड़ी पटरी से उतर जाएगी।
खैर अभी तो राजस्थान की सरकार पटरी पर चढ़ी है, अभी तो चलना भी शुरू नहीं किया। हम तो चाहते हैं कि राजस्थान की विकास की रेल जल्दी से जल्दी चलना सीखे और फिर ये दौड़ने लग जाये। और एक बार दौड़ने लग जाये तो फिर ऐसी दौड़े जैसी हमारी हिंदुस्तनि की नयी रेल, ट्रैन-18 या T-18 दौड़ती है। जो की पूरी तरह से “मेड इन इण्डिया” है। बाकी तो इनका इतिहास देखकर लगता नहीं कि ये लोग रेल को पटरी पर दौड़ा पाएंगे। क्योंकि दिल है… के मनाता नहीं…!
Author
Mahendra