आनंदपाल जैसे अपराधियों का खात्मा समाज और प्रदेश की जनता के लिए बेहद आवश्यक था। आनंदपाल ने अपने दुश्मनों को सजा देने के लिए अपने फार्म हाउस में टॉर्चर हाउस बनाया हुआ था। गैंगस्टर आनंदपाल के सजा देने का तरीका भी फिल्मों के खलनायकों जैसा होता था, वह अपने दुश्मनों को किडनेप करता, और बेदर्द हत्या कर देता था। प्रदेश के कई थानों में आनंदपाल के खिलाफ करीब 40 मुकदमें दर्ज थे जिनमें हत्या, लूट, डकैती, अपहरण, मारपीट जैसे जघन्य अपराध शामिल थे। आनंदपाल की मौत के बाद राजपूत समाज द्वारा किया जा रहा विरोध और पुलिस को दोषी ठहराने का सिलसिला बेदह ही हास्यास्पद है। आनंदपाल जैसे अपराधियों को एक समाज संरक्षण दे रहा है जबकि समाज को इसका उल्टा करना चाहिए था। सीबीआई जांच की मांग करने वाले समाज को उन लोगों के लिए सीबीआई जांच की मांग करनी चाहिए जिनकी आनंदपाल ने निर्दोष होते हुए भी जान ले ली। आनंदपाल ने ऐसे ही एक हत्या साल 2006 में की थी। आनंदपाल के हत्या करने के तरीकों को देखकर हैरानी होती थी। वह शवों को काटता था, गलाता था, फिर हड्डियां और दांतों को चुरा करवाकर सारे सबूत मिटा देता था। इस खौपनाख मंजर की बात करने से ही उसकी हैवानियत की झलक दिखाई पड़ती है।
स्कूल टाईम से ही अपराध कर चुका था आनंदपाल
आनंदपाल जैसा अपराधी अपराध करने के आदी हो चुके थे, आम रास्ते में किसी को लूटना, हत्या करना उसका शौख बन चुका था। आनंदपाल को खून की होली खेलना बेहद पसंद था। वह बिना सोचें समझें लोगों को मौत के घाट उतार देने वाला खूंखार अपराधी बन चुका था जो हर किसी के लिए दहशत का सबब था। आनंदपाल ने अपने दुश्मनों को सजा देने के लिए अपने ही फार्म हाउस में एक टॉर्चर रूम बनाया हुआ था जहां उन की चमड़ी उधेड़ दी जाती थी। आनंदपाल ने 2006 में जाट समाज के नानूराम जाट की हत्या की थी। नानूराम जाट भी अपराधी ही था लेकिन आनंदपाल के दर्जे के बराबर नही थी। आनंदपाल ने नानूराम की हत्या करने के लिए पहले उसे किडनेप किया। इसके बाद उसने नानूराम को पंखें से उल्टा लटकाकर उसकी गर्दन काटी। इसके बाद भी उसकी वहशियत कम नही हुई और उसने उसकी पूरी गर्दन धड़ के अलग कर दी। आनंदपाल ने नानूराम के शरीर के कुल्हाड़ी से छोटे-छोटे टुकड़े किया और एक एसिड के जरीकन में डाल दिए। जरीकन में शव एसिड से गल गया फिर हड्डियां और दांत निकालकर पिसवा दिए। आनंदपाल ने नानूराम के शव के साथ जो बर्बरता की उससे उसकी हैवानियत का साफ अंदाजा लगाया जा सकता है।
समाज युवाओं को दिखाएं रास्ता, आनंदपाल को नही बनाएं दैवीय शक्ति
आनंदपाल के मौत देने के तरीकों से ही स्थानीय जनता में उसका भय था, वह कभी भी किसी को भी डरा धमकाकर अवैध उगाही करता था और जिसने भी उसका विरोध किया वह उसे भी नही छोड़ता था। आनंदपाल ने डीडवाना से अपना आपराधिक सफर शुरू कर पूरे प्रदेश में अपने माफिया के राज होने के ख्वाब देखे और उन्हे पूरा करने के लिए अपनी गैंग बनाई। आनंदपाल ने कई बार पुलिस के जवानों को मारा, लोगों का किडनेप किया और हत्याएं कि जिसमें उसने बिल्कुल भी दया नही दिखाई। आनंदपाल जैसे अपराधियों के लिए एक समाज पूरा हाथ धोकर न्याय की मांग कर रहा है लेकिन क्या उस समाज ने सोचा है कि आज जो आनंदपाल था कल उनके बच्चे भा आनंदपाल बनेंगे। आनंदपाल का समर्थन करने वालों को सोचना चाहिए कि एक अपराधी का साथ दें या उन पुलिस जवानों का जिन्होने जान पर खेलकर अपने प्रदेश को अपराध मुक्त बनाया। समाज के लोग एक ऐसे अपराधी का साथ दें रहे है जिसके जिंदा होने पर कभी उसी सच्चाई, अहिंसा और शांति के रास्ते पर नही ला पाएं। समाज को यह ध्यान रखना चाहिए कि अपराधी की कोई जाति, धर्म, समाज और समुदाय नही होता। आनंदपाल को समर्थन करने वाले राजपूतों से यही सवाल है कि अगर वे आनंदपाल का समर्थन करते है तो कश्मीर में आतंकी बुरहान वानी का समर्थन करने वाले कश्मीरी भी सही होंगे और हमारे लाखों जवान जो कश्मीर में उनके इरादों को नाकामयाब करते है और मारते है वे गलत। राजपूती अपनी राजपूती दिखाएं लेकिन अपराधियों का संरक्षण कर नही बल्कि देश-प्रदेश की सेवा कर, अपनी जमीन, अपनी मां की सेवा कर अपनी कौम का मान बढ़ाएं। आनंदपाल जैसे समाज कंटकों का मंदिर बना उन्हे भगवान बनाकर अपनी आने वाली पीढ़ियों को क्या वे यहीं बताएंगे की आनंदपाल अपराधी था या कोई दैवीय शक्ति। भटकते समाज को सही रास्ता दिखाने वालों का आगे आने दीजिए ना कि किसी को गर्त में धकेलने का कार्य यह वीर राजपूत समाज करें।