जयपुर/बीकानेर। राज्यपाल एवं कुलाधिपति श्री कलराज मिश्र ने पशुपालकों की उन्नति और उनकी आय में वृद्धि के लिए योजनाबद्ध ढंग से कार्य किए जाने की आवश्यकता जताई है। उन्होंने पशुचिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के अतंर्गत इस तरह के पाठ्यक्रम विकसित किए जाने पर जोर दिया जिससे पशुधन संरक्षण के साथ ही इनके उत्पादों के पोषण में भी गुणात्मक वृद्धि हो।
राज्यपाल श्री मिश्र मंगलवार को राजस्थान पशुचिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में राजभवन से ऑनलाइन सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि पशु-धन संरक्षण से जुड़े परम्परागत मूल्यों का आधुनिकता से मेल कराते हुए इस क्षेत्र में उपचार की नवीन पद्धतियों का विकास करना होगा, तभी दवाओं व अन्य तत्वों की अधिकता से पशुधन और पशु उत्पादों पर होने वाले दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है।
राज्यपाल ने कहा कि वर्ष 1951 में जब भारत में दूध का उत्पादन 17 एमएमटी ( मिलियन मीट्रिक टन) था, तब अमेरिका में यह 53 एमएमटी था। परन्तु श्वेतक्रांति की बदौलत वर्ष 2021 आते-आते अमेरिका के 102 एमएमटी की तुलना में भारत में दुग्ध उत्पादन 220 एमएमटी तक पहुंच गया। उन्होंने कहा कि वर्ष 2003-2004 में अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में भी दुग्ध प्रसंस्करण क्षेत्र के उदारीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास हुए थे। आज भी देशभर में सहकारिता के क्षेत्र में पशुपालकों को इसका निरंतर लाभ मिल रहा है। उन्होंने कहा कि छोटे दुग्ध उत्पादकों से देश में हुई इस सहकार क्रांति को और आगे बढ़ाने की जरूरत है।
राज्यपाल श्री मिश्र ने कहा कि राज्य के एकमात्र पशु चिकित्सा एवं पशुविज्ञान विश्वविद्यालय के रूप में इस विश्वविद्यालय ने अपनी अलग पहचान बनाई है। उन्होंने सुझाव दिया कि विश्वविद्यालय को पशुधन संरक्षण के साथ ही उत्पादकता वृद्धि के आधुनिक तरीकों, पशु उत्पादों के प्रसंस्करण, विपणन आदि के क्षेत्र में भी नवीन पाठ्यक्रम शुरू करने चाहिए। उन्होंने कहा कि पशु विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से किसान व पशुपालकों तक नवीनतम उन्नत वैज्ञानिक तकनीकों की सरल व सहज जानकारी हस्तांतरित की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि पशुचिकित्सा और पशु विज्ञान पुरुषों के वर्चस्व का क्षेत्र माना जाता रहा है, किन्तु आज यहां 65 फीसदी पदक छात्राओं को मिलना एक शुभ संकेत है।
दीक्षांत अतिथि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के पूर्व उपमहानिदेशक (पशु विज्ञान) प्रो. एम.एल. मदन ने कहा कि भारत की कृषि पशुधन आधरित है। देश में मानव जनसंख्या के मुकाबले पशुधन की संख्या आधी है, जबकि राजस्थान में पशुधन की संख्या जनसंख्या की तुलना में दोगुनी है। उन्होंने इस स्थिति का लाभ उठाने के लिए पशुपालकों को अधिकाधिक सुविधाएं दिए जाने का सुझाव दिया।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के उपमहानिदेशक (पशु विज्ञान) डॉ. बी.एन. त्रिपाठी ने कहा कि पशु चिकित्सा विज्ञान से जुड़े विशेषज्ञों और विद्यार्थियों को पशु स्वास्थ्य के क्षेत्र में सामने आ रही नई चुनौतियों के लिए तैयार रहने की जरूरत है।
कुलपति प्रो. सतीश कुमार गर्ग ने विश्वविद्यालय का प्रगति प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए विद्यार्थियों की अकादमिक एवं सह- शैक्षणिक उपलब्धियों के बारे में जानकारी दी । उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में देशी गोवंश की नस्लों राठी, थारपारकर, गिर, साहीवाल, कांकरेज तथा मालवी के विकास के लिए निरंतर शोध कार्य किया जा रहा है ।
दीक्षान्त समारोह के अवसर पर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले 21 विद्यार्थियों को पदक एवं 331 विद्यार्थियों को स्नातक, 96 को स्नातकोत्तर एवं 34 विद्यार्थियों को पीएचडी की उपाधियां प्रदान की गई। प्रो. एम.एल. मदन को इस अवसर पर विश्वविद्यालय की ओर से डॉक्टर ऑफ साइन्स की मानद उपाधि प्रदान की गई।
राज्यपाल ने समारोह के आरम्भ में भारतीय संविधान की प्रस्तावना और मूल कर्तव्यों का वाचन किया। इस अवसर पर विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपतिगण, विश्वविद्यालय प्रबंध मंडल एवं अकादमिक परिषद् के सदस्यगण, विश्वविद्यालय के शिक्षकगण एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।