संविदा कर्मचारियों को स्थायी करने के फैसले को लेकर राजस्थान में विवाद शुरू हो गया है। संयुक्त संविदा मुक्ति मोर्चा के पदाधिकारियों ने कहा- सरकार आईएएस की तर्ज पर अनुबंध कर्मचारियों के अनुभव को जोड़ रही है। इससे प्रदेश के एक लाख से अधिक कर्मचारी स्थायी होने से वंचित रह जाएंगे। ऐसे में सरकार को बजट सत्र में ही अपने आदेश में संशोधन कर पंजाब और उड़ीसा की तर्ज पर संविदा कर्मचारियों के कार्य अनुभव को जोड़ना चाहिए। ताकि लंबे समय से कम मानदेय (वेतन) पर कार्यरत प्रदेश के कर्मचारियों को न्याय मिल सके।

संयुक्त संविदा मुक्ति मोर्चा के रामस्वरूप टाक ने कहा- पंजाब और उड़ीसा में भी संविदा कर्मचारियों को स्थायी किया गया है। वहां कर्मचारियों को स्थायी करते समय उनके पूरे कार्य अनुभव को जोड़ा गया। लेकिन राजस्थान में नियमों से बेवजह छेड़छाड़ कर कर्मचारियों के कार्य अनुभव की गणना आईएएस संवर्ग की तर्ज पर की जा रही है। जो कि बिलकुल गलत है।

टाक ने कहा- आईएएस पैटर्न के आधार पर 3 साल का कार्य अनुभव सिर्फ 1 साल जोड़ा जाता है। ऐसे में जो कर्मचारी पिछले 15 साल से काम कर रहे हैं। इस फैसले के बाद उनका काम का अनुभव सिर्फ 5 साल का होगा। इससे राज्य के 1 लाख से ज्यादा कर्मचारी स्थायी नहीं हो पाएंगे। कांग्रेस सरकार के इस धोखे को राजस्थान के कर्मचारी किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं करेंगे। ऐसे में अगर राज्य के कर्मचारियों के कार्य अनुभव को शुरू से (बिना आईएएस नियम के) नहीं जोड़ा गया तो राजस्थान के एक लाख से ज्यादा कर्मचारी और उनके परिजन कांग्रेस सरकार के खिलाफ आर-पार लड़ाई लड़ेंगे।

दरअसल राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 10 फरवरी को जारी बजट में संविदा कर्मियों को स्थायी करने के नियम में संशोधन किया था। 158 में उन्होंने कहा था कि राजस्थान के संविदा कर्मचारियों को आईएएस में चयन के समय पूर्व में की गई सेवा लाभ दिए जाने की तर्ज पर संविदा कर्मियों को भी नवीन नियमों में आने से पहले की सेवा लाभ दिए जाने की घोषणा करता हूं। इसके बाद से राज्य भर के संविदा कर्मचारियों ने सरकार के इस फैसले का विरोध शुरू कर दिया है।