कहते हैं सफलता यूं ही नही मिलती। इसके लिए आपको तपस्या व मेहनत की भट्टी में तपकर सोना बनना पड़ता है। कुछ ऐसी ही कहानी है राजस्थान के बाड़मेर जिले के चूनाराम जाट की, जिसका चयन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में बतौर वैज्ञानिक हुआ है। चूनाराम ने आॅल इंडिया स्तर पर 12वीं रैंक हासिल कर जिले का ही नहीं, वरन् प्रदेशभर का नाम रोशन किया है।
ग्रामीण परिवेश से होकर वैज्ञानिक बना है चूनाराम
बाड़मेर जिले के बायतु ढाणी के ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े चूनाराम के पिता भोलाराम धतरवाल पेशे से किसान हैं जो स्वयं 8वीं कक्षा पास हैं। उसकी माता रामूदेवी गृहिणी है जो अनपढ़ है। खेती पर निर्भरता के कारण परिवार का पालन-पोषण मुश्किल हुआ तो पिता ने दिहाड़ी मजदूरी भी की। आर्थिक तंगी के चलते चूनाराम के बड़े भाई किशन कुमार ने पढ़ाई छोड़ बलोतरा में कपड़े की फैक्ट्री में काम शुरू किया ताकि चूनाराम पढ़ाई जारी रख सके।
फर्श से अर्स तक का सफर
चूनाराम की ढाणी में आज भी बिजली नहीं है। चूनाराम ने आठवीं तक की पढ़ाई चिमनी की रोशनी में की है। चूनाराम की प्रारंभिक शिक्षा ढाणी से करीब 4 किमी दूर स्थित राउप्रावि नरेवा बेरा में हुई है। यहां वह पैदल स्कूल आता था। 2008 में उनका चयन नवोदय विद्यालय पचपदरा में हुआ और 2012 में उसने 12वीं में टॉप रैंक हासिल कर गोल्ड मेडलिस्ट बना। इसी साल चूनाराम का चयन एनआईआईटी सूरत में हो गया जहां वह 4 साल का कोर्स करने के साथ अपनी तैयारी करता रहा। अब जाकर उसका चयन इसरो में हुआ है।
35 पदों के लिए आयोजित हुई थी परीक्षा
इसरो केन्द्रीय रिकूटमेंट बोर्ड 2007 की ओर से वैज्ञानिकों के 35 पदों के लिए यह परीक्षा आयोजित की गई थी। इसमें चूनाराम ने 12वां स्थान हासिल किया है। परीक्षा में सुंदर शर्मा को प्रथम और कंवलजोतसिंह संघु को दूसरा स्थान प्राप्त हुआ है।