जयपुर। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को शानदार जीत मिली है। बीजेपी को मिली हार ने भगवा पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को एक बार फिर सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को नए चेहरों को सामने लाने और सीनियर लीडरशिप को दरकिनार कर राज्यों में पीढ़ीगत या नेतृत्व परिवर्तन लाने की अपनी रणनीति पर फिर से विचार करना पड़ रहा है। पार्टी को कर्नाटक में स्थापित नेताओं का दरकिनार करने का दांव उलटा पड़ा है। ऐसे में राजस्थान को लेकर भी सुगबुगाहट और चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है।
चुनाव से पहले वसुंधरा को मिल सकती है बड़ी जिम्मेदारी
कर्नाटक में बीजेपी की हार का के बाद पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को चुनाव से पहले पार्टी बड़ा जिम्मेदारी दे सकती है। बीजेपी आलाकमान राजे की नाराजगी दूर करने के लिए यह सब सारी कवायद करेगा। ऐसा माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में वसुंधरा राजे की अहमियत बढ़ेगी। बता दें वसुंधरा राजे के समर्थक सीएम फेस घोषित करने की मांग कर रहे है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार राजस्थान में चुनाव से पहले वसुंधरा राजे को फ्रंटफुट पर लाने की तैयारी की जा रही है।
राजे को फ्रंटफुट पर लाने की तैयारी
विभिन्न गुटों में बंटे राजस्थान बीजेपी के नेता मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर मोर्चा खोले हुए है, लेकिन कर्नाटक चुनाव ने बीजेपी को अपनी रणनीति बदलने पर विवश कर दिया है। राजनीतिक विश्लेषक कर्नाटक में बीजेपी की हार को वसुंधरा राजे को राहत के तौर पर मान रहे हैं। सूत्रों के अनुसार जेपी नड्डा के राजस्थान दौरे को इसी कवायद के तौर पर देखा जा रहा है। जेपी नड्डा का 24 औऱ 25 मई को राजस्थान का दौर है।
कर्नाटक में काम नहीं कर पाया बीजेपी का फॉर्मूला?
कर्नाटक में जिस तरह से केंद्रीय नेतृत्व द्वारा राज्य इकाई पर नेतृत्व परिवर्तन का दबाव डाला गया और बीएस येदियुरप्पा और जगदीश शेट्टार जैसे वरिष्ठ नेताओं को साइडलाइन किया गया। पार्टी को इसकी कीमत हार के साथ चुकानी पड़ी है। कर्नाटक में येदियुरप्पा को महत्वपूर्ण निर्णय लेने के संबंध में परामर्श प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनाया गया। एक्टिव कैंपेन में भी शामिल नहीं किया गया, जिसके कारण पार्टी को लिंगायत वोटों का नुकसान हुआ, जबकि वरिष्ठ नेता जगदीश शेट्टार को पार्टी ने टिकट देने से इंकार कर दिया। माना जा रहा है कि इससे बीजेपी की चुनावी संभावनाओं को नुकसान उठाना पड़ा।
कर्नाटक में मिली हार पर बदली रणनीति
माना जा रहा है कि कर्नाटक चुनाव हारने के बाद बीजेपी ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है। बीजेपी ने पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा लेकिन, कर्नाटक की जनता ने इसको खारिज कर दिया है। राजस्थान में वसुंधरा राजे विरोधी धड़ा पीएम मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ने की मांग करता रहा है। वसुंधरा राजे के धुर विरोधी केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और सतीश पूनिया मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ने की बात कह रहे हैं। जबकि वसुंधर राजे गुट के नेता राजे के चेहरे पर चुनाव लड़ने की मांग करते रहे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि पार्टी आलाकमान बदली हुई रणनीति के तहत वसुंधरा राजे के चेहरे को आगे करके चुनाव लड़ सकता है।
राजे और पूनिया के बीच अनबन रही आम बात?
इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि राजे पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा उनके प्रति उदासीनता से नाराज थीं। जयपुर में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया द्वारा आयोजित कई बैठकों में उनकी अनुपस्थिति रही है। लेकिन वे दिल्ली में आयोजित बैठकों में अक्सर उपस्थित रही हैं। राजस्थान के राजनीतिक गलियारों में राजे और पूनिया के बीच अनबन की खबरें आम हो गई थीं।
चुनाव से पहले सक्रिय देखी जा रहीं राजे
चार साल से ज्यादा समय तक साइडलाइन रहने के बाद राजे एक बार फिर सक्रिय हैं और इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में राजनीतिक सुर्खियों में वापसी करने की कोशिश कर रही हैं। इस साल मार्च में राजे ने राजस्थान के चूरू जिले में एक बड़ा शक्ति प्रदर्शन किया था। राजे खेमे ने दावा किया कि इस सार्वजनिक सभा में पीपी चौधरी, देवजी पटेल, वसुंधरा के बेटे दुष्यंत समेत भाजपा के करीब 10 मौजूदा सांसद, 30 से 40 भाजपा विधायकों, पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अशोक परनामी, 100 से ज्यादा पूर्व विधायक शामिल हुए हैं।
‘राजस्थान में वसुंधरा’ और ‘अबकी बार वसुंधरा सरकार’ जैसे नारे
जनसभा में वसुंधरा की जय-जयकार के साथ-साथ ‘राजस्थान में वसुंधरा’ और ‘अबकी बार वसुंधरा सरकार’ जैसे नारे लगाए गए। इस दौरान वसुंधरा ने गहलोत सरकार पर जमकर निशाना साधा। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, राजे को पहले से ज्यादा खुद को मुखर करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।