सदी के महापुरुषों में से एक, भारत रत्न से सुशोभित और भारत देश के भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जिन्होंने अपनी प्रतिभा से देश हित में ना केवल अविस्मरणीय कार्य किये बल्कि हिंदुस्तान के मानस पटल पर अपनी एक अमिट साहित्यिक छाप कायम की है। ऐसे सादा जीवन, उच्च विचार का व्यक्तित्व रखने वाले वाजपेयी जी उम्र के आखरी पड़ाव पर आकर, आज पिछले 36 घंटों से भी ज्यादा समय से मौत से जिंदगी की जंग लड़ रहे थे। सम्पूर्ण हिंदुस्तान में उनकी सलामती के लिए मंदिरों में पूजा, मस्जिदों में दुआ, गुरुद्वारों में कीर्तन गिरजाघरों में प्रार्थना की गयी। वे ना केवल राजनेता रहे अपितु जन नायक भी रहे। उन्होंने अपना पूरा जीवन देश की सेवा में लगा दिया। बिहारी जी भारत के सबसे बड़े जनसंघ भारतीय जनसंघ की स्थापना करने वाले महान व्यक्तित्वों में से भी एक थे।
नहीं रहा भारतीय राजनीति का ध्रुव तारा
अटल बिहारी वाजपेयी जी ने जीवन पर्यन्त देश सेवा तो की ही है साथ ही अपने विलक्षण साहित्यिक ज्ञान से इस देश की जनता को अभिभूत भी किया है। वे हिन्दी कवि, पत्रकार व प्रखर वक्ता भी रहे थे। उन्होंने अपने जीवन में कई कविताएं लिखीं, जिनमे से ज़्यादातर वीर रस से ओत-प्रोत रहीं। जिन्हे वे अक़्सर संसद में, आमसभाओं, जनसभाओं में अपने काव्य अंदाज़ में सुनाया करते थे। जिनको सुनकर उनके चाहने वालों के दिल वाह निकल जाती थी, तो उनके विरोधियों की धज्जियाँ उड़ जाती थीं। उनकी कविताएं में इतना जोश होता था की किसी निर्जीव में भी जान फूँक देती है। आज जब वे इस दुनिया में नहीं रह रहे, हम उनकी ही चंद कविताओं को याद करते हुए उनकी आत्मा की शांति की कामना करते हैं। पेश थे अटल जी की चंद कविताएं…
1. दो अनुभूतियां
पहली अनुभूति
बेनकाब चेहरे थे, दाग बड़े गहरे थे
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
पीठ मे छुरी सा चांद, राहू गया रेखा फांद
मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
-दूसरी अनुभूति
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात
प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूं
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं
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2. दूध में दरार पड़ गई
खून क्यों सफेद हो गया?
भेद में अभेद खो गया.
बंट गये शहीद, गीत कट गए,
कलेजे में कटार दड़ गई.
दूध में दरार पड़ गई.
खेतों में बारूदी गंध,
टूट गये नानक के छंद
सतलुज सहम उठी, व्यथित सी बितस्ता है.
वसंत से बहार झड़ गई
दूध में दरार पड़ गई.
अपनी ही छाया से बैर,
गले लगने लगे थे ग़ैर,
ख़ुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता.
बात बनाएं, बिगड़ गई.
दूध में दरार पड़ गई.
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3. कदम मिलाकर चलना होगा
बाधाएं आती थे आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
हास्य-रूदन में, तूफानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
कुछ कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा.
क़दम मिलाकर चलना होगा.
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4. मनाली मत जइयो
मनाली मत जइयो, गोरी
राजा के राज में.
जइयो तो जइयो,
उड़िके मत जइयो,
अधर में लटकीहौ,
वायुदूत के जहाज़ में.
जइयो तो जइयो,
सन्देसा न पइयो,
टेलिफोन बिगड़े थे,
मिर्धा महाराज में.
जइयो तो जइयो,
मशाल ले के जइयो,
बिजुरी भइ बैरिन
अंधेरिया रात में.
जइयो तो जइयो,
त्रिशूल बांध जइयो,
मिलेंगे ख़ालिस्तानी,
राजीव के राज में.
मनाली तो जइहो.
सुरग सुख पइहों.
दुख नीको लागे, मोहे
राजा के राज में.
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5. एक बरस बीत गया
झुलासाता जेठ मास
शरद चांदनी उदास
सिसकी भरते सावन का
अंतर्घट रीत गया
एक बरस बीत गया
सीकचों मे सिमटा जग
किंतु विकल प्राण विहग
धरती से अम्बर तक
गूंज मुक्ति गीत गया
एक बरस बीत गया
पथ निहारते नयन
गिनते दिन पल छिन
लौट कभी आएगा
मन का जो मीत गया
एक बरस बीत गया
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