जयपुर। प्रदेश में ऐतिहासिक कुंड बावड़ियों की हालत दिन ब दिन खराब होती जा रही है। इनमें कंजी जमने लग गई है और पानी भी बदबू मारने लगा है। कई महीनों से इनकी सफाई नहीं हो रही है। अशोक गहलोत की अनदेखी के कारण इन ऐतिहासिक धराहर का निखार फीका पड़ता नजर आ रहा है। पिछले साल सरकार बदलने के बाद नगरपालिका और सरकार की अनदेखी के चलते इन कुण्ड-बावड़ियों में कंजी जम रही और गंदगी भी हो रही है। वही कुछ कुंडों में तो पेड़ तक उग आए और नगारची मोहल्ले में स्थित एक कुण्ड में स्थानीय लोगों ने अपने मवेशी तक बांधना शुरू कर दिया, जिसके कारण उनका मल मूत्र भी कुंड की पवित्रता पर खत्म कर रहा है। कांग्रेस सरकार की जिम्मेदारी की अनदेखी के चलते इनकी हालात खराब होती जा रही है।

पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने जीर्णोद्वार कर उनके सौंदर्य को निखारा था
सूबे की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया की पहल पर जल स्वालंबन योजना के तहत शहर के परंपरागत जल स्त्रोतों को बचाए काम किया गया था। उनके जीर्णोद्धार के लिए लाखों रुपए की लागत से कुंड—बावड़ियों की सफाई, गहराई और रंग—रोगत का कार्य नगरपालिका की ओर से करवाया गया था। जेईएन पुष्पेन्द्र ने बताया कि आटीडब्ल्यू के तहत 14.73 लाख रुपए का बजट स्वीकृत हुआ। इसमें पहली किश्त 6.25 लाख रुपए की राशि प्राप्त हुई, इसके बाद शेष राश 8.48 लाख की दूसरी किश्त के रूप में मिली थी। इस राशि को कुण्ड, बावड़ियों में व्यव की गई थी इसके बाद कुंड और बावड़ियों में पानी की आवक तो हुई। साथ ही यह आकर्षक का केंद्र भी बन गई।

नगरपालिका के उदासीन रवैये के कारण भी इनकी हालत खस्ता
2016 में मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन योजना की शुरूआत हुई थी। इस योजना में जन सहयोग और आमजन व दुकानदारों से रुपए एकत्रित किए गए थे। इसके बावजूद अनदेखी के चलते जन सहयोग से प्राप्त धन राशि का दुरुपयोग हो रहा है। वही जिन कुंड-बावड़ियों पर लाखों रुपए खर्च किए उनकी स्थिति दयनीय है। हालांकि लोगों का कहना है कि कई लोग निजी स्वार्थ के चलते कुंडों का अस्तित्व ही मिटाने में लगे हुए। इस को लेकर कई कुंडों का पानी मोटर डालकर खत्म किया जा रहा है। कही कुण्डों में तोड़फोड़ कर कुंडों के सबूत मिटाने का प्रयास किया जा रहा है। लोगों का कहना है कि नगरपालिका के उदासीन रवैये के चलते इन कुंड-बावड़ियों की हालत खस्ता होती जा रही है। जल्द ही उनके के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो आने वाले समय में जल स्त्रोतों के साथ ऐतिहासिक धरोहरों को बचाना मुश्किल हो जाएगा।