नवरात्रों में पशुबलि पर सख़्त रोक होने के बावजूद। चित्तौडगढ़ जिले के कई शक्तिपीठों पर प्रतिवर्ष की भांति नवरात्रि की नवमी पर पुलिस और हजारों लोगों के साथ। जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी में ही भैंसे और बकरों की बलि दिये जाने का मामला प्रकाश में आया है। बलि का आयोजन गांव के ही निवासी पंचायत समिति के उपप्रधान का परिवार करता है। और वे खुद भी मौजूद रहते हैं।
एक भैंसे की मंदिर के सामने दी गई नवरात्रों में पशुबलि
चित्तौड़गढ़ जिले के आकोला थाना क्षेत्र के ताणा गांव स्थित पहाड़ी पर स्थित चामुंडा माता मंदिर पर प्रतिवर्ष की भांति। सोमवार को भी ताणा के ठाकुर और भूपालसागर पंचायत समिति के उप प्रधान भीमसिंह झाला के परिवार की ओर से नवरात्रों में पशुबलि के आयोजन के तहत। एक भैंसे की मंदिर के सामने बलि दी गई। क्षेत्र के करीब पांच हजार लोगों की मौजूदगी में स्वयं उप प्रधान और गांव के पूर्व और वर्तमान सरपंच की मौजूदगी में। इस बलि के आयोजन के प्रत्यक्षदर्शी पुलिसकर्मी भी बने। लेकिन परम्परा के खौफ के चलते इन्होंने बलि रोकने के कोई प्रयास नहीं किये। परम्परा का हवाला देकर ही ठाकुर परिवार अपनी इच्छा के अनुरूप ही पुलिस बल लगवाता है।
थानाधिकारी रमेश मीणा ने बताया कि वहां इस तरह की परम्परा का मैने भी सुना है। लेकिन आज मैं कपासन ड्यूटी पर हूं। वहीं आकोला थानाधिकारी रमेश मीणा कहते हैं। कि मंदिर पर हजारों लोगों की उपस्थिति में कानून व्यवस्था नियंत्रण के लिए आज भी आकोला थाने के सहायक थानाधिकारी जगदीश विजयवर्गीय के साथ तीन जवान आकोला थाने से और दो जवान कपासन थाने से लगवाए गये थे। जिनसे इसकी रिपोर्ट ली जाएगी।
जांच के आदेश दिए जिला कलेक्टर ने
जिला कलेक्टर चेतनराम देवड़ा व पुलिस अधीक्षक अनिल कयाल के संज्ञान में नवरात्रों में पशुबलि का मामला लाए जाने पर जांच करवाने के निर्देश दिये हैं। दोनों ही अधिकारियों ने मामला गंभीर बताया है। मान्यता है कि बलि के बाद सिर कटा भैंसा अगर चार सौ फीट की पहाड़ी से लुढक़ता हुआ नीचे तक आ जाता है तो अगले वर्ष क्षेत्र में अच्छी बरसात होगी। और यदि बीच में ही अटक जाता है। तो यह अच्छी बरसात नहीं होने का संकेत माना जाता है। नवरात्रि की नवमी के दिन पशु बलि के दौरान ठाकुर परिवार के ही लोग बंदूकें और अन्य हथियार लिये मौजूद रहते हैं। जिससे कोई भी वहां इसका विरोध ना कर पाए।
वर्षों से चली आ रही है नवरात्रों में पशुबलि की परंपरा
भूपालसागर के ताणा गांव में नवरात्रों में पशुबलि दिए जाने का यह पहला मामला नहीं है। वर्षों से लगातार पशु बलि दी जाती रही है। परंपरा का रूप देकर इस अमानवीय घटनाक्रम को अंजाम दिया जाता रहा है।ठाकुर परिवार द्वारा प्रतिवर्ष भैंसे की बलि दी जाती है। और आने वाले साल के समय के अनुमान के नाम पर मूक पशु को तलवार से गर्दन काट कर उसके बाद पहाड़ी से फेंकने का कार्य किया जाता है। ऐसा नहीं है कि इस पूरे मामले में प्रशासन को जानकारी नहीं हो। प्रतिवर्ष चामुंडा माता मंदिर में नवरात्रि के अवसर पर मेला आयोजित किया जाता है। जिसमें प्रशासन के अधिकारी भी मौजूद रहते हैं। लेकिन इसके बावजूद पशु बलि दिया जाना प्रशासन की मौन स्वीकृति की ओर इशारा करता है।
पुलिस रही चुप, नहीं जप्त किया मरा हुआ भैंसा
क्षेत्र में पशु बलि पर रोक होने के बावजूद भैंसे की बलि दिए जाने के मामले में पूरी तरह पुलिस विफल साबित हुई है। नवमी के अवसर पर बली स्वरूप चढ़ाए गए भैंसे के शव को भी पुलिस ने जप्त करने की कवायद नहीं की। ऐसे में साफ है कि वहां तैनात पुलिस के जवान और अधिकारी भी पूरे मामले में जानबूझकर चुप्पी साधे बैठे रहे। और इस अमानवीय घटनाक्रम के साक्षी बने रहे। जानकारी में सामने आया है। मौके पर एक सहायक उपनिरीक्षक और पांच पुलिस के जवानों को मंदिर में मेला ड्यूटी के लिए तैनात किया गया था। लेकिन मंदिर में हुई बलि को लेकर मौके पर मौजूद पुलिसकर्मियों की मौन स्वीकृति का कारनामा प्रतीत हो रही है।
नवरात्रों में पशुबलि को लेकर पूर्व में भी समझाइश की जा चुकी है
जानकारी में यह भी सामने आया है कि पूर्व में तत्कालीन उपखंड अधिकारी सोहन लाल सालवी द्वारा कुछ वर्षों पूर्व इस पशु बलि पर रोक लगाने की कोशिश की गई थी। लेकिन गांव के राजनीतिक रसूख और प्रभावशाली परिवार की मिलीभगत होने के चलते। इस पूरे मामले पर रोक नहीं लग पाई। और वर्षों से परंपरा के नाम पर मूक पशु की बलि दिए जाने का अमानवीय घटनाक्रम अनवरत रूप से अंजाम दिया जा रहा है। ऐसे में मामले को लेकर अब देखने वाली बात होगी। कि सरकार या प्रशासन इस पूरे मामले में क्या कार्रवाई अमल में लाता है।
जिले के कई मंदिरों में दी गई नवरात्रों में पशुबलि
ऐसे नहीं है कि यह अकले इसी मंदिर पर हुआ हो। इसके अलावा जिले के अलग-अलग मंदिरों में नवरात्रों में पशुबलि दी गई। प्रशासन की जानकारी में भी ज्यादातर घटनाक्रम है। लेकिन सच्चाई तो यहीं है कि जानकारी के बावजूद परम्परा का हवाला देकर सभी ने चुप्पी साधी हुई है। सूत्रों की माने तो इस पशु बली को रोकने के लिए एक परिवाद आईजी उदयपुर रेंज के समक्ष भी पेश हुआ था। लेकिन परिवाद पेश होने के बाद भी इन बेजुवानों की बली को नहीं रोका जा सका।
कुल मिलाकर पशु बलि को परम्परा का रूप देकर किया जाने वाले यह अमानवीय कृत्य आखिर कब तक चलेगा? यह तो पता नहीं। लेकिन धार्मिक स्थानों पर इस तरह की बलि देना कितना सहीं और कितना गलत है। यह तो हमें और आपको सोचना ही पड़ेगा। अब देखने वाली बात यही है कि आने वाले दिनों में इस पर कोई कार्रवाई होती या नहीं।