chinu

प्रदेश के खूंखार गैंगस्टर आनंदपाल सिंह की मौत के बाद मचे तमाशें ने सबको हैरान कर दिया है। शायद ही कोई ऐसा अपराधी हो जिसकी मौत के बाद लोगों ने इतना बवाल मचाया हो। प्रदेश में हर कोई आनंदपाल की मौत की बात कर रहा तो कुछ सियासती सौदागरों ने आनंदपाल की लाश का उसके परिवार से ही सौदा कर लिया। इसमें मृतक आनंदपाल की मां, पिता, पत्नी और बच्चे शामिल है, क्योंकि जिस तरह से आनंदपाल की मौत के बाद स्वार्थी और तुच्छ लोगों ने अपने आप को एक उच्च दर्जा प्राप्त राजनेता बना लिया है जिसमें मृतक के परिजनों ने उनकी सहायती की है। आनंदपाल की बड़ी बेटी अपने पिता की मौत के बाद एक बार भी राजस्थान नही आई और दूबई से ही सरगना बन सारें माहौल का मैनेजमेंट कर रही है। कहा जा रहा है कि आनंदपाल की मौत के बाद कुछ लोगों ने उसका राजनैतिक लाभ लिया है तो उसके परिवार के ही कारण। परिवार ने अपने बेटी की लाश पर लोगों को राजनीति करने की अनुमति दी बजाय 20 दिन तक अपने बेटे का अंतिम संस्कार करते, उन्होने लोगों को बुलाया और राजपूत समाज का सहारा लेकर लोगों को भड़काया। अब सवाल तो कई है लेकिन जवाबों की तलाश में कहीं गुम हो रहे है।

बेटी चीनू उर्फ चरणजीत क्यों नही आई पिता के अंतिम दर्शन के लिए

मृतक आनंदपाल की बड़ी बेटी को इस पूरे कांड की सरगना कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी क्योंकि बेटी चीनू ने ही दूबई से सारी व्यवस्था का मैनेजमेंट किया था। आनंदपाल की मौत के बाद सांवराद में राजपूत समाज की रैली, पिता का अंतिम संस्कार नही करना, अपने अपराधी चाचाओं की रिहाई, पिता की मौत की सीबीआई जांच जैसे हथकंड़े चीनू द्वारा ही रचित थे। कई बार ऑडिया वायरल हो चुकी है जिसमें उसने समाज के लोगों को भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल किया था। समाज को भी इस कदर एक अपराधी का सहयोग ना कर उन पुलिसवालों और उन परिवारों का सहयोग करना चाहिए जो आनंदपाल द्वारा प्रताड़ित है। आनंदपाल ने ही इस राजपूत समाज को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है और यही राजपूत समाज आज आनंदपाल के लिए लड़ाईयां लड़ रहा हैं। मरने के बाद भी आनंदपाल हत्यारा बन गया और उसको श्रद्धांजली दने पहुंचे एक व्यक्ती की मौत का जिम्मेदार भी वही है।

समाज को सकारात्मक रवैया अपनाना चाहिए ना कि हिंसात्मक रूख

आनंदपाल की मौत के बाद अगर समाज को सीबीआई जांच करानी ही है तो प्रदेश के न्यायालय किस दिन काम आएंगे। समाज के नेताओं को यह समझना चाहिए की सीबीआई जांच होईकार्ट द्वारा दिए निर्देशों पर हो। एक सकारात्मक रुख अपनाकर समाज और परिवार को अपनी मांगे सरकार के सामने रखनी चाहिए। एक व्यक्ति की मौत के बाद प्रदेश में इस तरह से हिंसा करना किसी के हित में नही होता। जो पुलिस कर्मी सांवराद रैली में घायल हुए है जो व्यक्ति मारे गए है उनके बारें में अगर यह समाज नही सोचेगा तो कौन सोचेगा। इसका मतलब यह है कि समाज और उपद्रवियों की भीड़ इसिलीए इकट्ठी हुई थी कि हिंसा और उपद्रव मचा सकें।