प्रदेश में इलाज के अभाव में मरीजों की मौत की संख्या 25 हो गई है लेकिन इसके बाद भी सरकारी चिकित्सक हड़ताल पर हैं। भगवान का दूसरा नाम एक सरकारी चिकित्सक आज मौत का दलाल बन बैठा है। प्रदेशभर के सभी सरकारी चिकित्सालयों में करीबन एक जैसी हालत है और इससे निपटने का कोई तरीका नहीं। लगातार 6 दिनों से यह हड़ताल जारी है। वेतन वृद्धि और एक पारी में काम करने की जिद लेकर बैठे चिकित्सकों का साथ रेजिडेंट्स डॉक्टर्स ने बखूबी दिया है। लेकिन अब सरकारी चिकित्सालयों में मरीजों का दर्द निकलकर सामने आने लगा है।
सरकारी चिकित्सालयों में आने वाले अधिकतर मरीज केवल पैसे न होने की वजह से यहां इलाज के लिए आते हैं। अगर पैसे होंगे तो सरकारी की जगह प्राइवेट हॉस्पिटल जाने में क्या बुराई है। लेकिन अब सरकारी चिकित्सालयों के बिस्तर और वार्ड खाली हो रहे हैं। प्राथमिक चिकित्सालयों में भामाशाह जैसे कई बीमा योजनाओं का लाभ नहीं मिल सकता और बड़े चिकित्सालयों में चिकित्सक नहीं हैं। ऐसे में मरीज जाएं तो कहां जाएं।
हालांकि राजस्थान सरकार की ओर से इस स्थिति को निपटने के लिए कई वैकल्पिक व्यवस्था की गई है लेकिन यह काफी नहीं है। मरीजों का कहना है कि एक तरफ तो सरकार सरकारी चिकित्सकों को रहने के लिए सरकारी घर, भत्ता, धोबी आदि का खर्चा मुफ्त दे रही है वह भी मोटे वेतन के साथ। उसके बाद भी इस तरह की शर्मनाक हरकतें भगवान का दर्जा लिए हुए सरकारी चिकित्सकों के लिए बड़े ही शर्म की बात है। मरीजों की जान बचाने वाली शपथ खाने वाले चिकित्सकों के सामने मरीज तड़प-तड़प कर दम तोड़ रहे हैं और सभी केवल नारे लगाने एवं अपना स्वार्थ सिद्ध करने में लगे हुए हैं। सभी आमजन की हाथजोड़ सरकारी चिकित्सकों से यही प्रार्थना है कि हड़ताल तोड़ पहले मरीजों को संभाले, फिर अपनी लड़ाई लड़ें।