जयपुर राजघराने के अंतिम महाराजा रहे ब्रिगेडियर सवाई भवानी सिंह का जन्म 22 अक्टूबर 1931 को जयपुर के महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय के घर में हुआ था। महाराजा भवानी सिंह जयपुर महाराजा सवाई मान सिंह द्वितीय की पहली पत्नी महारानी मरुधर कंवर देवी से पैदा हुए थे। मरुधर कंवर देवी जोधपुर के महाराजा सुमेर सिंह की बहिन थी। बताया जाता है कि जयपुर में कई पीढ़ियों बाद किसी पुरुष वारिस का जन्म हुआ था। इससे पहले के कई महाराजाओं को गोद लेकर महाराजा बनाया गया था। भवानी सिंह जी के जन्म के अवसर एक बहुत ही बड़ा समारोह भी इसी वजह से आयोजित किया गया था। क्योंकि सैकड़ों सालों बाद जयपुर के महाराजा को पुत्र प्राप्ति हुई थी। इस समारोह में अनगिनत शैंपेन की बोतले खुली थी। जिससे चारों तरह बुलबुले हो गए थे, इस कारण से जयपुर के महाराज ने भवानी सिंह जी का उप नाम ‘बुलबुले’ रख दिया था।
प्रारंभिक शिक्षा: महाराजा सवाई भवानी सिंह की प्रारंभिक शिक्षा शेषबाग स्कूल, श्रीनगर और दून स्कूल, देहरादून में हुई थी। इसके बाद महाराजा सवाई भवानी सिंह को आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड के हैरो स्कूल में भेजा गया था।
महाराजा बनने से पहले भारतीय सेना में बनाया करियर: महाराजा सवाई भवानी सिंह सेना में भर्ती होकर देश सेवा करना चाहते थे। अपनी शिक्षा पूरी होने के बाद वे 1951 में 3rd केवलरी रेजिमेंट में बतौर सैकेंड लेफ्टिनेंट के रूप में कमीशंड हुए। 1954 में वे राष्ट्रपति के अंगरक्षक के रूप में चुने गए। इन्होंने 1954-1963 तक राष्ट्रपति अंगरक्षक के रूप में सेवा की। 1968 में इन्हें 10वीं पैराशूट रेजीमेंट का कमांडिंग आॅफिसर बनाया गया। 1970 में इन्होंने बांग्लादेश मुक्ति युद्ध से पहले प्रशिक्षण ‘मुक्तिवाहिनी’ में भी सेना की मदद की थी। 1971 में पाकिस्तान के साथ हुए वॉर में इनके नेतृत्व में 10वीं रेजिमेंट ने पाकिस्तान के सिंध प्रांत में छाछरो पर कब्जा किया था। इसलिए इन्हें दूसरा सबसे सर्वोच्च वीरता पुरस्कार ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया। 1972 में इन्होंने सेना से स्वैच्छिक सेवानिवृति ले ली थी। वे सेवा से बतौर कर्नल सेवानिवृति हुए लेकिन 1974 में ‘आॅपरेशन पवन’ के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के विशेष अनुरोध पर श्रीलंका गए और 10वीं पैरा रेजीमेंट का मनोबल बढ़ाने में सफल रहे। श्रीलंका से लौटने के बाद इन्हें सेवानिवृत ब्रिगेडियर रैंक से सम्मानित किया गया था। इसके बाद इन्होंने 1994-1997 तक ब्रुनेई में भारतीय उच्चायुक्त के रूप में सेवा की।
पिता की मृत्यु के बाद जयपुर के महाराजा बने: इनके पिता सवाई मान सिंह द्वितीय की 1970 में असामयिक मृत्यु के बाद ब्रिगेडियर सवाई भवानी सिंह 24 जून, 1970 को जयपुर की गद्दी पर बैठे थे। इंदिरा गांधी सरकार ने 1971 में महाराजा का ख़िताब भारत के संविधान के 26वें संशोधन में समाप्त कर दिया था। 1971 तक सभी रियासतों को विशेषाधिकार प्राप्त थे। ये आजादी के बाद सबसे अमीर राजाओं में से एक थे।
विवाह और संतान: महाराजा सवाई भवानी सिंह का विवाह सिरमूर के राजा व इनके पिता के दोस्त और पोलो खिलाड़ी महाराजा राजेंद्र प्रकाश व उनकी पत्नी महारानी इंदिरा देवी की बेटी पद्मिनी देवी से 10 मार्च 1966 को हुआ था। इनसे 30 जनवरी 1971 को इन्हें सिर्फ एक बेटी हुई। बेटी दीया कुमारी वर्तमान में सवाई माधोपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक है। महाराजा ने अपने बेटी के बड़े पुत्र को नवंबर 2002 को गोद लिया। जिसे उनके बाद में जयपुर के महाराजा का ताज पहनाया गया।
मृत्यु व उनका उत्तराधिकारी: महाराजा सवाई भवानी सिंह का निधन गुड़गांव, हरियाणा के एक निजी अस्पताल में 17 अप्रैल 2011 में उनके शरीर के कई अंग खराब होने के कारण हो गया था। महाराजा सवाई भवानी सिंह अपनी मृत्यु के समय 79 वर्ष के थे। उनका पार्थिक शरीर जयपुर लाया गया जयपुर के सिटी पैलेस में उनको अंतिम सम्मान दिया गया। इसके बाद उनका जयपुर स्थित गैटोर की छतरियों में अंतिम संस्कार किया गया। महाराजा सवाई भवानी सिंह के गोद लिए दत्तक पुत्र और बेटी राजकुमारी दीया कुमारी के बड़े बेटे पद्मनाभ को उनका उत्तराधिकारी बनाया गया।
राजनीतिक करियर: ब्रिगेडियर सवाई भवानी सिंह राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए और उन्होंने सन् 1989 के लोकसभा चुनाव में भी लड़ा लेकिन वे भाजपा नेता गिरधारी लाल भार्गव से मात खा गए थे। उसके बाद महाराजा ने सक्रिय राजनीति से दूरी बना ली थी। उनकी सौतेली मां और लोगों के बीच लोकप्रिय जयपुर की महारानी गायत्री देवी भी राजनीति में शामिल थी। महारानी गायत्री देवी उनके पिता की तीसरी पत्नी थी। गायत्री देवी ने लगातार 5 बार लोकसभा चुनाव जीता था।
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