राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी की प्रदेश इकाई में वसुंधरा राजे समर्थकों की वापसी ने पूर्व मुख्यमंत्री को एक बार फिर मजबूत कर दिया है। राजे की भूमिका को लेकर राजस्थान बीजेपी इकाई में पिछले 6 महीने से सवाल चल रहे हैं। राजे को लेकर यह सबसे बड़ा सवाल है जो आम जनता से लेकर बीजेपी कार्यकर्ताओं तक के मन में है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी जयपुर में एक बड़ी सभा में कहा था कि हमारी शान और पहचान कमल का फूल है। फिर भी राजे समर्थकों को मैडम के लिए किसी बड़ी घोषणा का इंतजार है। हालांकि, बैठक के अगले ही दिन जयपुर के 13 सिविल लाइंस स्थित वसुंधरा राजे के बंगले पर समर्थकों की भारी भीड़ जुट गई। राजे समर्थकों के अचानक जुटने से बीजेपी में काफी हलचल मची रही, लेकिन किसी विवाद या विरोध की खबर नहीं आई।
अगले ही दिन राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जयपुर पहुंचे और देर रात तक बैठकें चलती रहीं। देर रात जब वसुंधरा राजे बैठक से बाहर आईं तो उनके चेहरे पर मुस्कान थी, वे सकारात्मक नजर आ रही थीं।अमित शाह और नड्डा के जाते ही बीजेपी के बागी नेता देवी सिंह भाटी देर शाम बीजेपी में लौट आए। भाटी को राजे गुट का नेता माना जाता है और वे अर्जुन मेघवाल के विरोधी माने जाते हैं। भाटी की वापसी को लेकर बीजेपी में अंदरूनी विरोध चल रहा था, जो अचानक थम गया और खुद प्रदेश अध्यक्ष जोशी ने उनका स्वागत किया। राजे समर्थक इसे मैडम की बड़ी जीत के तौर पर देख रहे हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे का कल रात जयपुर से नारायणी माता धाम जाते समय दौसा में कार्यकर्ताओं ने जोरदार स्वागत किया। जहां उनके समर्थकों ने हमारी सीएम कैसी हो, वसुंधरा राजे जैसी हो के नारे लगाए। राजे ने शहर मंडल अध्यक्ष समेत कई समर्थकों से बातचीत की। कई दावेदारों ने राजे को बायोडाटा भी दिया। इसके बाद वह थानागाजी इलाके में स्थित नारायणी माता धाम पर आयोजित सैन समाज के विशाल मेले में शामिल होने के लिए रवाना हो गईं। पूर्व शिक्षा अधिकारी राजाराम मीना ने पीली लुगड़ी और मीनावाटी गीतों से वसुन्धरा राजे का जोरदार स्वागत किया।
राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा बीजेपी की सबसे बड़ी नेता हैं। उन्हें आज भी राज्य में भीड़ जुटाने वाले नेता के तौर पर जाना जाता है। भले ही वह खुद को पार्टी की राजनीति में किनारे मान रही थीं, लेकिन उनके समर्थकों के बीच उनकी लोकप्रियता बरकरार है और माना जा रहा है कि इसी लोकप्रियता के चलते उन्होंने चुनावी रेस में वापसी की है। माना जा रहा है कि आरएसएस नेताओं ने वसुंधरा राजे की पैरवी की है। संघ का भी मानना है कि क्षेत्रीय क्षत्रप को आगे किए बिना सिर्फ प्रधानमंत्री के नाम पर विधानसभा चुनाव नहीं जीता जा सकता। कर्नाटक में हार के बाद संघ के मुखपत्र में ये बातें कही गईं। राजस्थान में आरएसएस की जड़ें गहरी हैं।