जयपुर। त्याग एवं समर्पण की प्रतिमूर्ति ग्वालियर राजधराने की राजमाता विजया राजे सिंधिया की सोमवार को पुण्यतिथि मनाई जा रही है। भाजपा के साथ ही विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता विजया राजे के व्यक्तित्व व कृतित्व को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं। इस बीच उनकी बेटी व प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी अपनी मां को नमन करते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की है।
राष्ट्र भक्तों के लिए प्रेरणास्रोत
मां की पुण्यतिथि पर बेटी राजे ने ट्वीट संदेश में श्रद्धांजलि देते हुए राजमाता विजया राजे को सेवा, स्नेह व समर्पण की मूरत बताया। उन्होंने कहा कि राजमाता ने भारतीय संस्कृति की मर्यादा बनाए रखते हुए राजपथ से निकलकर लोकपथ का दामन थामा। उनके सिद्धांत हमेशा हमारा पथ प्रदर्शन करते रहेंगे। राजे ने एक अन्य ट्वीट में लिखा कि स्वर्गीय ’अम्मा महाराज’ के आदर्श जीवन, सिद्धान्त और जनसेवा का भाव ना सिर्फ मेरे लिए बल्कि उन सभी राष्ट्रभक्तों के लिए प्रेरणा है, जो सांसारिक मोह-माया को त्यागकर राष्ट्रसेवा को अपना परम् धर्म समझते हैं।
राजपथ से निकलकर आईं लोकपथ
अपनी मां को याद करते हुए राजे ने लिखा, भारतीय राजनीति में महिलाओं को आगे लाने में राजमाता जी का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। वे राजपथ से निकलकर लोकपथ में आने वाली देश की पहली ऐसी महिला थीं। जिन्होंने महिला मोर्चा का गठन कर संगठन व देश के विकास को एक नई दिशा प्रदान की। एक अन्य ट्वीट में राजे ने लिखा, अम्मा महाराज का व्यक्तित्व भारतीय संस्कृति के संस्कारों से परिपूर्ण था। यही कारण है कि राजमाता जी ने आजीवन आम लोगों विशेषकर समाज के पिछड़े वर्ग, महिलाओं व बच्चों के कल्याण के लिए समर्पित होकर काम किया।
महारानी से सफल राजनीतिज्ञ तक
राजमाता विजयाराजे सिंधिया ’ग्वालियर राजघराना’ भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में से एक थीं। मप्र की राजनीति में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान है। यूं तो इनका जन्मदिन 12 अक्टूबर को आता है, लेकिन हिन्दू तिथि के मुताबिक करवाचौथ को भी राजमाता का जन्मदिन सिंधिया परिवार मनाता है। साल 1967 में मप्र में सरकार गठन में उन्होंने बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। विजयाराजे सिंधिया का सार्वजनिक जीवन जितना प्रभावशाली और आकर्षक था। व्यक्तिगत जीवन में उन्हें उतनी ही मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। वो सिंधिया राज परिवार से पहली महिला थीं जिन्होंने राजसी ठाठ बाठ को छोड़कर जनसेवा में अपना हाथ आगे बढ़ाया था। उन्होंने ग्वालियर में शिक्षा के क्षेत्र में काफी काम किए। अपने निजी भवन को स्कूल और कॉलेज बनाने के लिए दान तक कर दिया था।