जयपुर। राजस्थान के पंचायत चुनाव में बीजेपी के सामने कांग्रेस कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाई। वहीं बीजेपी अपने गढ़ को बचाने के साथ-साथ कांग्रेस से ज्यादा सीटे लेकर जीत का जश्न मना रही है। इस जीत का श्रेय प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को माना जा रहा है। वहीं अन्य सभी दिग्गज नेताओं के इलाकों में ना तो चुनाव था ना ही उनकी सक्रियता दिखी। वसुंधरा राजे के इलाके में कमान उनके बेटे दुष्यंत ने संभाल रखी थी। इस जीत के साथ ही सीनियर नेता और पूर्व मुख्यमंत्री ने केंद्रीय नेतृत्व काे एक बार फिर राजस्थान में अपनी पकड़ और ताकत का अहसास करा दिया है। आपको बता दें कि सुबे की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे देश की उन चुनिंदा नेताओं में शामिल हैं जिनकी सीनियोरिटी और अनुभव को भाजपा के नेशनल लीडरशिप के आसपास ही आंका जाता है।
वसुंधरा के गढ़ में भाजपा मजबूत, 8 में से 6 प्रधान
पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा का प्रदर्शन शानदार रहा है। राजे की स्कोर सीट को दो तरह से देखा जा सकता है। पहला उनके निर्वाचन क्षेत्र झालरापाटन से देखें तो सुनैल व पिड़ावा दोनों पंचायत समितियों में भाजपा के प्रधान बने हैं। दूसरा उनके संसदीय क्षेत्र से आंकलन करें तो झालावाड़ में जिला प्रमुख भाजपा का ही बना है। वहीं बारां में अभी चुनाव हुए ही नहीं है। ऐसे में वसुंधरा अपने गढ़ में काफी मजबूत रही है। पंचायतों के नतीजों को देखें तो वसुंधरा के गढ़ में भाजपा मजबूत हुई है। यहां आठ में से छह प्रधान भाजपा बने हैं।
बेटे दुष्यंत ने संभाली कमान
झालावाड़ संसदीय क्षेत्र के पंचायत चुनाव में भाजपा की जीत वसुंधरा के नाम ही लिखी जायेगी। पर्दे के पीछे सारी जिम्मेदारी उनके बेटे दुष्यंत ने संभाल रखा था। ना सिर्फ पंचायत चुनाव में बल्कि विधानसभा चुनाव में भी दुष्यंत ही मैनेजमेंट देखते हैं। जब वसुंधरा पूरे राज्य में सक्रिय रहती है, तब दुष्यंत झालावाड़ व बारां काे संभालते हैं। इस पंचायत चुनाव में अंता में तो दुष्यंत एक थानेदार तक से झगड़ लिए थे। स्वयं वसुंधरा बड़े निर्णय तो लेती है लेकिन टिकट वितरण से लेकर प्रधान व प्रमुख बनाने तक में दुष्यंत की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण रही।
ऐसी रही दुष्यंत की कार्यशैली
आपको बता दें कि दुष्यंत करीब पिछले 15 साल से सक्रिय राजनीति में है। अधिकांश चुनावों में वसुंधरा जहां पूरे राजस्थान में दौरे करती है, वहीं झालावाड़ के अधिकांश निर्णय दुष्यंत खुद करते हैं। उनकी नीति की बात करें तो वे छोटे से छोटे कार्यकर्ता तक स्वयं पहुंच जाते हैं। पंचायत चुनावों में गांव गुवाड़ तक प्रचार के लिए तो दुष्यंत भी नहीं गए, लेकिन टिकट वितरण करने से लेकर नेताओं को मैनेज करने का काम उन्होंने बखूबी किया। वो सरलता के साथ बड़े नेताओं को कुछ करने या कुछ नहीं करने के निर्देश दे देते हैं। इतना ही जिसकी पालना भी होती है। इस चुनाव में भी उन्होंने भाजपा में जिसे चुनाव लड़ने अथवा नहीं लड़ने का बोला। वो सब मान गए। ग्रामीण क्षेत्र के नेताओं से फीडबैक व पार्टी के भविष्य के लाभ को ध्यान में रखते हुए ही टिकट वितरित किए थे।