कहते हैं ना कि रिकार्ड्स बनते ही टूटने के लिए हो। फिर वो चाहे खेल का मैदान को। रणक्षेत्र हो या फिर राजनीति हो। इतिहास में लोग रिकार्ड्स बनाकर छोड़ जाते हैं। और भविष्य के लोग उन्हें आकर तोड़ते हैं। ऐसा ही कुछ नज़ारा हमें लोकसभा चुनावों में देखने को मिल रहा हैं। लोकसभा चुनवा यानि भारत के भविष्य का चुनाव। राजस्थान के मतदाताओं ने 2014 लोकसभा चुनावों में बनाये अपने ही 64% मतदान के रिकॉर्ड को तोड़ दिया। लोकसभा मतदान के चौथे चरण और राजस्थान में प्रथम चरण के दौरान लगभग 68.16% मतदान दर्ज किया। ये आंकड़ा थोड़ा सा ऊपर नीचे हो सकता है। 43 डिग्री तापमान में भी बाड़मेर (73.14%), झालावाड़-बारां (71.77%), बांसवाड़ा (72.59) और चित्तौड़गढ़ (72.31%) में सबसे मतदान किया गया। क्योंकि इस बार राजस्थान में चुनावी मुद्दे कुछ और ही हैं। गहलोत बनाम राजे जिनके नाम पर जनता से वोट मांगे जा रहे हैं।
विरासत के नाम पर गहलोत बनाम राजे
इस बार के लोकसभा चुनाव मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व मुख्यमंत्री राजे के लिए वर्चस्व की लड़ाई है। इस बार दोनों के ही सपूत चुनावी मैदान में हैं। जहाँ एक तरफ़ जोधपुर से कांग्रेस के लिए वैभव गहलोत, बीजेपी के गजेंद्र सिंह शेखावत के ख़िलाफ़ मैदान में हैं। तो वहीं दूसरी ओर झालावाड़-बारां सीट से तीन बार के सांसद दुष्यंत सिंह के सामने। पूर्व एबीवीपी अध्यक्ष और भाजपा के प्रमोद शर्मा कांग्रेस के टिकट पर लड़ रहे हैं। इससे पहले वसुंधरा राजे ने पहले इस लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और पांच बार सांसद रहीं हैं। अब यहीं की झालरापाटन सीट से वो पिछले पांच बार से विधायक हैं। और यहीं से 2 बार मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं। जबकि यहीं हालत मुख्यमंत्री गहलोत के हैं। जो जोधपुर की सरदारपुरा सीट से तीसरी बार मुख्यमंत्री चुनकर आये हैं। पूर्व में वो विधायक भी रह चुके हैं।
दोनों ही राज नेताओं के जनता के साथ पारिवारिक संबंध
राजनीति में जनता के साथ पारिवारिक सम्बन्ध रखना। किसी भी राजनेता के लिए सबसे लाभदायक साबित होता है। जिसने भी जनता के घरों में घर कर लिए। समझो सत्ता की चाबी उसी के हाथ हैं। इसीलिए एक तरफ वसुंधरा राजे का हाड़ौती क्षेत्र से 30 साल पुराना संबंध है। और पार्टी की वरिष्ठ नेता हैं। दुष्यंत सिंह के लिए झालावाड़-बारां की जनता का राजे के साथ आत्मीय संबंध। इस क्षेत्र में एक अतिरिक्त लाभ है। दूसरी तरफ गहलोत जोधपुर के लोकप्रिय नेता हैं। जिसका लाभ अपने बेटे वैभव को दिलाना चाहते हैं। वैसे भी अशोक गहलोत तो कांग्रेस की आलाकमान में भी। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों में मतदाता का मन बदल जाये। तो फिर दोनों ही नेताओं के लिए काफ़ी मुश्किलें हो सकती हैं। दोनों की राजनीति में बहुत अंतर है। दुष्यंत सिंह को जहाँ 20 वर्षों का अनुभव है। वहां वैभव गहलोत राजनीति में पदार्पण कर रहे हैं।
बहुमत की जीत के बाद बधाई देना ही सही
अब राजस्थान तो परम्पराओं का प्रदेश रहा है। जिस प्रकार हर पांच साल में सरकार बदल जाती है। उसी प्रकार राज्य में जब जिसकी सरकार होती है। उसी पार्टी को सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों पर जीत मिलती है। फिर वो चाहे कोई भी हो चाहे भाजपा हो या सरकार हो। केंद्र में चाहे किसी की भी सरकार बने। राज्य में तो सत्ताधारी पार्टी को ही अधिक लोकसभा सीटें मिलती हैं। हालांकि, ताजा आंकड़ों के अनुशार नया मतदान रिकॉर्ड। चुनावों पर काफी गहरा असर दाल सकता है। बाकी आप और हम तो सिर्फ अंदाज़ा लगा सकते हैं। लेकिन वास्तविकता तो चुनावी नतीजे आने के बाद ही पता लगती है। जिस प्रकार से 2018 विधानसभा चुनावों में सारे अंदाजे और सारे आंकड़े धरे के धरे रहा गए थे। जबकि नतीजे सबकी आशाओं से इतर आये थे। क्या पता इस बार भी किसी का आंकलन सही नहीं बैठे।
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