आज से ठीक 71 साल पहले तारीख़ थी 30, महीना था जनवरी का और साल था 1948 का। एक ऐसी ही ठण्ड भरी शाम थी, जब भारत के महात्मा और 19वीं सदी के सबसे बड़े महापुरुष मोहनदास करमचंद गांधी, अपनी दैनिक क्रिया के अनुरूप बिरला हाऊस में आयोजित सायंकाल की प्रार्थना सभा से लौट रहे थे। ठीक उसी वक़्त नाथूराम गोडसे नाम के व्यक्ति, 5 बजकर 16 मिनट हालांकि यह कहा जाता है कि 5:17 पर प्रार्थना सभा स्थल पहुंचे और एक के बाद एक तीन गोलियां दागकर गांधीजी की हत्या कर देते हैं। उसके बाद वहां मौजूद कुछ लोग गांधीजी को बिरला हाऊस के अंदर ले जाते हैं जहाँ डॉ. डी.पी. भार्गव आकर प्रथम दृष्टया, महात्मा को मृत घोषित कर देते हैं, और कुछ लोग गोडसे को पकड़कर तुगलक रोड थाने में ले जाते हैं। इस तरह भारत के एक काल पुरुष का वध हो गया और हिंदुस्तान के एक युग का अंत हो गया। गांधी युग का अंत हो गया। हालाँकि जांच पड़ताल में पता चला कि नाथूराम गोडसे ने उनकी हत्या इसलिए नहीं की थी कि गोडसे की उनसे कोई व्यक्तिगत दुश्मनी थी। नाथूराम ने उनकी हत्या उनके कुछ विचारों और फैसलों से नाराज़ होकर की थी।
हत्या के बाद गोडसे ने क्या कहा :
जैसा उन्होंने कोर्ट में बताया था। “32 साल तक विचारों में उत्तेजना भरने वाले गांधी ने जब मुस्लिमों के पक्ष में अपना अंतिम उपवास रखा तो मैं इस नतीजे पर पहुंच गया कि गांधी के अस्तित्व को तुरंत खत्म करना होगा। गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लोगों को हक दिलाने की दिशा में शानदार काम किया था, लेकिन जब वे भारत आए तो उनकी मानसिकता कुछ इस तरह बन गई कि क्या सही है और क्या गलत, इसका फ़ैसला लेने के लिए वे खुद को अंतिम जज मानने लगे। अगर देश को उनका नेतृत्व चाहिए तो यह उनकी अपराजेयता को स्वीकार्य करने जैसा था। अगर देश उनके नेतृत्व को स्वीकार नहीं करता तो वे कांग्रेस से अलग राह पर चलने लगते।” ऐसे में गोडसे ने उनकी हत्या कर दी। गांधी जी के मुख से निकलने वाले अंतिम शब्द थे… “हे राम!”
ख़ैर इस बात पर एक लम्बी बहस की जा सकती है कि जब कोई इंसान अपनी विचारधारा दूसरों पर थोपने लग जाये तो तानाशाही का जन्म होता है। और शायद भारतीय राजनीति के इतिहास में इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की अकाल मृत्यु भी इसी तरफ़ थोड़ा इशारा करती है। लेकिन अभी हम इस बहस में नहीं पड़ने वाले। क्योंकि वास्तविकता तो यही है कि गांधी जी का कोई भी रास्ता या तरीक़ा ऐसा नहीं है, जिस पर सवाल उठाए जा सकें। यही वज़ह है कि दशकों बाद आज भी एक राजनेता के तौर पर उनकी वैश्विक साख क़ायम है। जिसे कोई धूमिल नहीं कर सकता।
सिर्फ़ गांधीजी ही देश के लिए शहीद नहीं हुए थे :
भारत की आज़ादी, विकास और लोक कल्याण के लिये गांधीजी ने पूरे जीवन भर कड़ा संघर्ष किया। जिसका सम्मान करते हुए तत्कालीन भारतीय सरकार ने इस दिन को शहीद दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। लेकिन हिंदुस्तान में केवल 30 जनवरी को ही शहीद दिवस के रूप में नहीं मनाया जाता। हमारे देश में कई शहीद दिवस मनाये जाते हैं। 30 जनवरी के आलावा हमारे देश में 23 मार्च को भी शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। जब देश के तीन नौजवान 24 साल के भगत सिंह, 23 साल के राजगुरु और 24 साल के सुखदेव को फांसी पर लटका दिया गया था। वो दिन था मार्च 23, 1931 का। देश की आज़ादी और 17 नवंबर 1928 को पंजाब केसरी लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने अंग्रेज़ पुलिस अधिकारी जेपी सांडर्स की हत्या कर दी, इसके बाद इन्हें जेल में डाल दिया गया था। जहां पर इन्होंने भारतीय कैदियों के अधिकारों के लिए भूख़ हड़ताल भी की। और देश प्रेम से अभिभूत मात्रभूमि के इन लालों को 23 मार्च 1931 को फांसी पर लटका दिया गया था।
इसके अलावा 13 जुलाई को, 22 लोगों की मृत्यु को याद करने के लिये भारत के जम्मु और कश्मीर में शहीद दिवस के रुप में मनाया जाता है। वर्ष 1931 में 13 जुलाई को कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के सामने प्रदर्शन के दौरान रॉयल सैनिकों द्वारा उनको मार दिया गया था।
देश में हर साल 21 अक्टूबर को भी उन पुलिस कर्मियों के सम्मान में शहीद दिवस मनाया जाता है, जिन्होंने ड्यूटी पर तैनात रहते हुए अपनी जान दी हो।
फिर 17 नवंबर1928, लाला लाजपत राय की पुण्यतिथि को भी शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। जब अंग्रेज़ों ने लाठियों से पीट-पीट कर लालजी की हत्या कर दी थी।
19 नवंबर को भी शहीद दिवस मनाया जाता है। जब 1857 की क्रांति में सैंकड़ों देशवासियों ने देश को आज़ाद कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
जब भी देश के लिए कोई जान दे वही दिन शहीद दिवस हो :
यूं तो किसी देश में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है, कि वो देश के लिए अपनी ज़िम्मेदारी को समझे और अपने देश को बेहतर बनाने के लिए अपना पूरा-पूरा योगदान दें। इसके लिए किसी एक व्यक्ति विशेष या व्यक्तियों के समूह विशेष की ज़िम्मेवारी नहीं कि वो ही देश के लिए काम करेंगे और वो ही देश के लिए जान देंगे। एक आम आदमी की भी देश के प्रति उतनी ही प्रतिबद्धता होनी चाहिए जितनी किसी राजनेता, महापुरुष, सैनिक, जवान या किसी बड़े ओहदे पर आसीन अधिकारी की होती है। फिर हम हर उस व्यक्ति के सम्मान में शहीद दिवस मना सकते है। जब सच्चे मन से देश की सेवा करने वाला कोई साधारण व्यक्ति भी देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे। हम उनके सम्मान में भी दो मिनिट का मौन धारण कर उनके द्वारा देश हित में किये कार्यों के लिए उनको धन्यवाद कर सकते हैं। इस देश की शांति समृद्धि और खुशहाली के लिए मर मिटने वालों को याद कर सकते हैं।
और हमें चाहिए कि हम ना केवल उन्हें याद करें बल्कि जिन विचारों और सिद्धांतों की रक्षा हेतु उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए उनका अनुसरण भी करें। तथा जीवन के मूल्यों को बनाये रखें।
Read More : पुण्यतिथि विशेष: इस एक घटना ने महात्मा गांधी को बना दिया ‘अहिंसा का पुजारी’
Source : Mahendra