जयपुर। रेगिस्तानी राज्य होने के कारण विकास के क्षेत्र में राजस्थान हमेशा उपेक्षा झेलता आया है। आजादी के बाद से प्रदेश की राजनीति ने कई बार करवटें बदलीं, विभिन्न सरकारों का आगमन भी हुआ लेकिन राजस्थान के विकास को पंख नहीं लग सके। अर्थव्यवस्था के जानकारों की मानें तो किसी भी देश व प्रदेश की उन्नति का रास्ता शिक्षा के क्षेत्र से ही होकर गुजरता है। परंतु राजनैतिक आकाओं ने शिक्षा पर जोर देने की बजाय जनता को 65 वर्षों तक केवल बाहरी मुद्दों में ही उलझाए रखा। जिसके चलते राजस्थान के विकास की नैया अधिकांशतः भंवर में ही उलझी रही।
वसुंधरा सरकार ने शिक्षा पर किया ध्यान केन्द्रित
शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े राजस्थान को उबारने के लिए वसुंधरा सरकार ने विभिन्न योजनाओं पर काम शुरू किया। आदर्श विद्यालय योजना के तहत प्रत्येक ग्राम पंचायत में आधुनिक शिक्षा सुविधाओं से संपन्न उच्च माध्यमिक स्तर तक का विद्यालय, उत्कृष्ट विद्यालय योजना के तहत हर गांव- ढ़ाणी में उच्च प्राथमिक स्तर तक का विद्यालय, स्वामी विवेकानंद मॉडल स्कूल योजना के तहत हर ब्लॉक स्तर पर अंग्रेजी माध्यम का सरकारी स्कूल, मिड-डे मील योजना में सुधार, अन्नपूर्णा दूध योजना के तहत कक्षा 1 से 8 वीं तक के 65 लाख बच्चों को स्कूल में पौष्टिक दूध जैसी कई योजनाओं की त्वरित प्रगति ने राजस्थान को शिक्षा के क्षेत्र में कई नित नई ऊंचाइयां प्रदान की।
26 वें स्थान से दूसरे पायदान पर पहुंचा राजस्थान
65 सालों से पिछड़े राजस्थान को शिक्षा के क्षेत्र में 26 वें स्थान से दूसरे पायदान पर पहुंचाने में वसुंधरा सरकार की आदर्श विद्यालय योजना ने अहम भूमिका निभाई। इस योजना के तहत राजस्थान की सभी 9 हजार से अधिक ग्राम पंचायतों में 12 वीं कक्षा तक एक विद्यालय विकसित करना सुनिश्चित किया गया। इन विद्यालयों में सभी विषयों के अध्यापक, कम्प्यूटर कक्षाएं, खेल-कूद के लिए मैदान, अंग्रेजी व सामान्य ज्ञान विषयों के लिए विशेष कक्षाएं, छात्र-छात्राओं के लिए अलग-अलग शौचालय, पुस्तकालय जैसी सभी भौतिक सुविधाएं उपलब्ध कराई गई। योजना के तहत प्रदेशभर में 6 हजार से ज्यादा आदर्श विद्यालय स्थापित किए जा चुके हैं। जिनके सफल संचालन से राजस्थान ना सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में देश का सिरमौर बना बल्कि प्रदेश के विकास को नए पंख भी लगे।