आम चुनाव यानी लोकसभा चुनाव 2019 अप्रैल-मई माह में प्रस्तावित है। ये चुनाव 17वीं लोकसभा के गठन के लिए होंगे। लोकसभा चुनाव में अभी करीब 3 माह का समय शेष है। लिहाजा राजनीतिक दलों के लिए यह समय अपनी रणनीतियों पर फोकस करने का है। हाल ही में दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा (कार्यकर्ताओं की संख्या के आधार पर) ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के रामलीला मैदान में राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित किया। भाजपा के इस अधिवेशन का मुख्य उद्देश्य आगामी लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं में नया जोश भरना था। दूसरी तरफ जनआधार गंवाती हुई कांग्रेस है, जो आगामी लोकसभा चुनाव में जीत का दावा तो कर रही है। लेकिन इससे पहले अपनी वर्तमान हालात का आकलन करना उचित नहीं समझती। तीन राज्यों में सत्ता परिवर्तन को कांग्रेस अपार जनसमर्थन मानकर बड़ी गलती कर रही है। लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस का जिलेवार बैठकों का दौर शुरू हो गया है, साथ ही शुरूआत हो गई है कांग्रेसी नेता व कार्यकर्ताओं में आपसी धक्कामुक्की की। क्या इस तरह मुक्कमल जहां मिलेगा कांग्रेस को! ऐसे में तो भाजपा को हराना तो दूर की बात है, टक्कर में आस-पास आना भी बहुत मुश्किल है।
लोकसभा चुनाव के लिए आयोजित बैठकों में धक्कामुक्की, कई बड़े नेता बना रहे दूरी
हाल ही में कांग्रेस ने लोकसभा चुनावों को देखते हुए उम्मीदवारों के पैनल तय करने के लिए जिला स्तर पर बैठकें आयोजित करवाई। कांग्रेस की इन बैठकों में अपनी पसंद के प्रत्याशी का नाम पैनल में शामिल नहीं होने पर कार्यकर्ताओं में आपसी धक्कामुक्की हुई। कई जगह तो बात इससे भी आगे बढ़ी और अभद्र भाषा का इस्तेमाल हुआ। इससे पहले भी विधानसभा चुनावों के दौरान ऐसे कई मौके आए जब कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने मंच पर एक-दूसरे के कपड़े फाड़कर पार्टी की फ़ज़ीहत करवाई। खुद को महात्मा गांधी के आदर्शों पर चलने वाली पार्टी बताने वाली कांग्रेस को अपने ही कार्यकर्ताओं ने शर्मिंदा करने का ठेका सा ले रखा है। कांग्रेस की बमुश्किल से ऐसी रैली, सभा या बैठक बचती है, जब पार्टी के नेताओं या कार्यकर्ताओं की आपसी लड़ाई जगजाहिर नहीं हुई हो।
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इन सब के इतर एक बात और जो इनदिनों आम सी नज़र आ रही है। हालिया सत्ता आसीन तीनों ही राज्यों में कांग्रेस के बड़ी संख्या में विधायक और नेता नाराज़ दिखाई दे रहे हैं। इनका असंतोष पार्टी पर आगामी लोकसभा चुनाव में भारी पड़ता दिख रहा है। इन नाराज नेताओं ने पार्टी की बैठकों समेत सभी गतिविधियों से किनारा करना शुरू कर दिया है। ये नेता मंत्री पद न मिलने और खास तरजीह न दिए जाने से ख़फ़ा है। प्रदेश में बाड़मेर के कद्दावर जाट नेता हेमाराम चौधरी समेत कई नेता इन दिनों कांग्रेस और उसके कार्यक्रमों से नदारद नजर आ रहे हैं। गुडामालानी से विधायक का चुनाव जीतने के बाद अभी तक हेमाराम चौधरी बाड़मेर जिला मुख्यालय के कार्यक्रम सहित प्रदेश कांग्रेस के एक भी कार्यक्रम में नजर नहीं आए। गौरतलब है कि जब मंत्रिमंडल का गठन हुआ था उसी वक्त हेमाराम चौधरी की नाराज़गी साफ तौर पर सामने आई थी। इन पूरे मामले को लेकर कुछ कांग्रेसी नेताओं का कहना है कि इस तरीके की नाराजगी की ख़बर मीडिया की उपज है। लेकिन सच तो सच है, जो छुपाए नहीं छुपता। ऐसे में इन नेताओं की नाराज़गी का खामियाजा कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में भारी पड़ेगा।