हाल ही में भारत के पांच राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनाव हुए। इन चुनावों में सियासत व देशवासियों की नजरें जिस प्रदेश पर सबसे ज्यादा थी वह है राजस्थान। कहा जाता है कि राजस्थान की जनता हर पांच साल में तवे पर सिक रही सियासत रूपी रोटी को पलटने में विश्वास रखती है। यही कारण है कि सत्ता परिवर्तन राजस्थान की राजनीति का नियम सा बन गया है। भले ही, सत्ता परिवर्तन की इस हवा को भांपकर दोनों ही प्रमुख दल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी समय-समय पर अपनी पीठ थपथपाने लगती है। लेकिन हार-जीत के इस मैदान में सीटों का गणित कुछ ऐसा बैठता है जो कांग्रेस पर कदरदान तो होता है लेकिन मेहरबान नहीं। आइए, नजर डालते हैं पिछले 20 वर्षों के इतिहास पर…
2003 : जादूगर गहलोत पर भारी बाजीगर वसुंधरा
सबसे पहले बात करते हैं वर्ष 2003 के विधानसभा चुनावों की। वसुंधरा राजे के नेतृत्व में चुनावी रण में उतरी भारतीय जनता पार्टी को इन चुनावों में 120 सीटें प्राप्त हुई। जबकि कांग्रेस की तरफ जनता का झुकाव मिला-जुला रहा और उनको 57 सीटें ही मिल सकी। यहां भाजपा ने वसुंधरा राजे के सिर पर जीत का सेहरा बांधकर उन्हें प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनाया।
2008 : हाथी के साथ से मजबूत हुआ कांग्रेस का हाथ
बात वर्ष 2008 के विधानसभा चुनावों की करें तो यहां भाजपा को 42 सीटों के नुकसान के साथ कुल 78 सीटें प्राप्त हुई, वहीं कांग्रेस के खाते में पहुंची कुल 96 सीटें। माना जाता है कि कुछ प्रदेशीय मुद्दों को लेकर जनता भाजपा से नाराज तो थी लेकिन जनता ने अपना विश्वास फिर भी कांग्रेस पर नहीं दिखाया। नतीजतन अशोक गहलोत ने बसपा विधायकों से गठबंधन कर फिर से सरकार बना ली।
2013 : वसुंधरा की लोकप्रियता को मिला मोदी लहर का साथ
अब आते हैं वर्ष 2013 के चुनावों पर। दिल्ली में निर्भया कांड और अन्ना हजारे के लोकपाल आंदोलन का बवंडर कुछ ऐसा मचा कि जयपुर में बैठी गहलोत सरकार की भी जड़ें हिल गई। इसके अलावा इन चुनावों में मोदी लहर के साथ-साथ वसुंधरा राजे की लोकप्रियता का असर कुछ ऐसा रहा कि भाजपा ने 163 सीटें जीतकर एक बार फिर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। जबकि एंबुलेंस, खनन और कई जमीन घोटालों के साथ भंवरी देवी मामले में फंसी गहलोत सरकार 21 सीटों के साथ एक मजबूत विपक्ष भी नहीं बना सकी।
2018 : भाजपा हारी लेकिन कांग्रेस जीत नहीं पाई
अब बात करते हैं हाल ही में संपन्न हुए वर्ष 2018 के विधानसभा चुनावों की। भाजपा के लिए सीएम वुसंधरा राजे तथा कांग्रेस के लिए गहलोत और पायलट के नेतृत्व में लड़ा गया यह चुनाव भी तमाम स्थानीय मुद्दों को पछाड़ एक बार फिर सत्ता परिवर्तन की परंपरा की भेंट चढ़ गया। इन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने विपरित परिस्थितियों के बावजूद 73 सीटें जीतने में सफलता हासिल की। जबकि पूर्ण बहुमत का दंभ भरने वाली कांग्रेस के खाते में गई 99 सीटें। कांग्रेस भले ही बहुमत से एक बार फिर दूर रह गई हो लेकिन मुख्यमंत्री पद के लिए अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच जिस तरह की खींचतान दिखी, उसने राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवालिया भी लगा दिए।
निष्कर्षः
राजस्थान के पिछले 4 विधानसभा चुनावों को हम देखें तो यह स्पष्ट होता है कि भाजपा की जीत हर बार कांग्रेस की जीत से बड़ी होती है। जबकि कांग्रेस हर बार जीत की दहलीज तक ही पहुंच पाती है और अस्पष्ट बहुमत के कारण अन्य दलों का समर्थन पाकर सरकार बनाती है। यानि जब-जब भाजपा जीती है तो कांग्रेस हारी है। लेकिन जब भाजपा हारी है तो कांग्रेस अपनी जीत का जश्न भी नहीं पाई है।
Content: Om