प्रदेश में दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दल बीजेपी और कांग्रेस को टिकट बंटवारे के लिए माथापच्ची करनी पड़ रही है। दरअसल, दोनों की दल चाहते हैं कि सिर्फ मजबूत और जिताऊ उम्मीदवारों को ही टिकट दिया जाए। लेकिन ऐसे प्रत्याशियों की पहचान करने में पार्टियों की मशक़्क़त हो रही है। दोनों ही पार्टी पिछला विधानसभा चुनाव लड़ने वाले कई नेताओं के टिकट काट सकती है। बीजेपी चाहती है कि सबसे मजबूत दावेदार को ही प्रत्याशी बनाया जाए। वहीं, पिछले दो चुनाव हार चुके नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाने के मूड में है। इसी बीच प्रदेश में कई जातिगत संगठनों ने टिकट पाने के लिए लड़ाई छेड़ दी है। कम से कम 6 जातिगत संगठनों ने अपनी संख्या के अनुरूप टिकट पाने के लिए इस महीने बैठक की।
अखिल भारतीय मीणा संगठन समेत कई समाजों ने मांगा संख्या के अनुरूप प्रतिनिधित्व
अखिल भारतीय मीणा संगठन के बैनर तले मीणा समाज ने 19 अक्टूबर को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को पत्र लिखकर कम से कम 15-15 टिकट देने की मांग रखी। संगठन के मुताबिक राज्य की कुल 13.5 फीसदी अनुसूचित जनजाति की आबादी में मीणा समुदाय की संख्या 7.5 प्रतिशत है। राज्य में अनुसूचित जनजाति के लिए कुल 25 सीटें आरक्षित है। बता दें, बीजेपी ने 2013 के विधानसभा चुनावों में मीणा समुदाय के 16 उम्मीदवारों को टिकट दिया था जिनमें से 10 ने जीत दर्ज की थी। जबकि कांग्रेस ने मीणा समाज के 17 प्रत्याशियों को अपना उम्मीदवार बनाया था जिनमें से दो लोग जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। इसके अलावा माली समुदाय ने भी 20 विधानसभा सीटों की मांग की है। राजस्थान सैनी महासभा के अध्यक्ष ने कहा कि लोकसभा की 15 सीटों पर माली समुदाय की संख्या 25 हजार से ज्यादा है।
अखिल भारतीय बैरवा महासभा ने भी 21 अक्टूबर को अपने पदाधिकारियों के माध्यम से 11 सीटों पर टिकट देने की मांग की। अनुसूचित जाति में शामिल बैरवा समुदाय ने जयपुर में दो और अलवर, बूंदी, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, दौसा, कोटा, करौली, सवाई माधोपुर और टोंक में एक-एक विधानसभा की सीटों की मांग की। प्रदेश में बैरवा समुदाय की संख्या 17 लाख हैं। 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने बैरवा समाज के आठ लोगों को अपना उम्मीदवार बनाया था जिनमें से चार को जीत मिली थी। इनके अलावा मुस्लिमों ने भी दोनों ही पार्टियों से अपनी संख्या के अनुरूप टिकट देने की बात रखी है। इसमें उन्होंने प्रत्याशियों के नाम और सीटों का भी जिक्र किया है।
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राजस्थान में कुछ ऐसे हैं जातिगत समीकरण
7 करोड़ से ज्यादा आबादी वाले राजस्थान में कुल 272 जातियां हैं। इनमें सर्वाधिक 51 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग, 18 प्रतिशत अनुसूचित जाति, 13 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति, जबकि 18 फीसदी लोग अन्य से ताल्लुक रखते हैं। बता दें, अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी में सबसे ज्यादा 91 जातियां हैं जिनमें जाटों की संख्या 9 फीसदी, गुर्जरों की 5 प्रतिशत और मालियों की संख्या 4 प्रतिशत है। जबकि अनुसूचित जाति में 59 उप-जातियां हैं। इनमें मेघवालों की संख्या 6 प्रतिशत और बैरवा की 3 फीसदी है। वहीं, अनुसूचित जनजाति में 12 उप-जातियां हैं। मीणा समुदाय की संख्या 7 प्रतिशत और भीलों की संख्या 4 प्रतिशत है। इसके अलावा प्रदेश में ब्राह्मणों की संख्या 7 प्रतिशत, राजपूतों की संख्या 6 फीसदी और वैश्यों की संख्या 4 प्रतिशत है।