soni-ji-temple

राजस्थान के अजमेर ज़िलें में स्थित सोनीजी की नसियां दुनियाभर में अपनी शानदार कारीगरी और बेजोड़ निर्माण कला के लिए जानी जाती है। स्वर्ण, कांच और लकड़ी पपर की गई बारीक कारीगरी का सम्मिलित नमूना है सोनीजी की नसियां। यह मंदिर दिगंबर जैन समाज की श्रद्धा एवं आस्था का प्रतीक है। हरदिन यहाँ बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं। इसकी सौंदर्यता को देखकर हर कोई मुग्ध हो जाता है।  इस मंदिर के मुख्य कक्ष को ‘स्वर्ण नगरी’ या भगवान का नगर भी कहा जाता है। इस मंदिर में श्री राम की जन्मस्थली अयोध्या की कलाकृति बनी हुई है।

प्रथम जैन तीर्थकर भगवान ऋषभदेव का मंदिर है:

जैन धर्म के चौबीस तीर्थंकरों में से प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव को समर्पित है सोनीजी की नासियां। इस मंदिर का नाम श्री सिद्धकूट चैत्यालय भी है। साथ ही करौली के लाल पत्थर से निर्मित होने के कारण इसे लाल मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। भगवान ऋषभदेव के मंदिर के तौर पर इसका निर्माण किया गया था। सोनीजी की नसियां का निर्माण राय बहादुर सेठ मूलचंद नेमीचंद सोनी ने करवाया था। इसका निर्माण कार्य साल 1864 में 10 अक्टूबर के दिन प्रारम्भ किया गया था। 26 मई 1865 को भगवान ऋषभदेव और भगवान आदिनाथ की प्रतिमा इस मंदिर के मध्यवेदी में स्थापित की गई थी। इस मंदिर के निर्माण में 25 साल लगे थे।

सोने से वर्क से ढकी हुई है पूरी तरह:

बताया जाता है की मंदिर की समस्त रचना आचार्य जिनसेन द्वारा रचित आदि पुराण के आधार पर की गई। हिन्दू धर्मानुयाइयों के आस्था के केंद्र भगवान श्री राम की जन्मस्थली अयोध्या के समान इसकी रचना की गई है। अयोध्या नगरी की सभी विशेषताएं इसमें सम्मिलित है। इसके अंतर्गत सुमेरू पर्वत का निर्माण कार्य प्रदेश की राजधानी जयपुर में हुआ था। इस मंदिर का आंतरिक भाग सोने के वर्क से ढंका हुआ है। मंदिर का आंतरिक भाग बहुत ही सुंदर रंगों, अनुपम चित्रकारी एवं कांच की बेहतरीन कलाकारी से सुसज्जित है।

भारत के सबसे अमीर मंदिरों में शामिल:

दुनियाभर में शानदार वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है सोनीजी की नसियां। करौली के लाल पत्थर से इसका प्रवेश द्वार बना हुआ है। मंदिर के अंदर जाने पर संगमरमर की पवित्र सफ़ेद सीढ़ियां बनी हुई है। यहाँ जैन धर्म के सभी तीर्थकरों की शिक्षाओं का उल्लेख किया गया है। इस मंदिर की एक और ख़ास बात यह है कि इसे भारत के सबसे धनवान मंदिरों में से एक माना जाता है। 19वीं सदी में बना यह मंदिर पर्यटकों को मनमोहक लगता है। यह एक अलग ही आत्मिक शान्ति की अनुभूति देता है।