भाजपा का गढ़ कहे जाने वाले मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान में सत्ता परिवर्तन के बाद कांग्रेस की सरकार बन चुकी है। वहीं भारतीय जनता पार्टी अब विपक्ष की भूमिका में हैं। 15 जनवरी को विधानसभा का पहला सत्र भी बुला लिया गया है लेकिन मुख्य विपक्षी दल भाजपा अभी तक नेता प्रतिपक्ष तय नहीं कर पाई है। हालांकि मध्य प्रदेश में गोपाल भार्गव तथा छत्तीसगढ़ में धरमलाल कौशिक को विपक्षी दल का नेता बनाकर केन्द्रीय आलाकमान ने स्थिति साफ कर दी है, लेकिन राजस्थान का पेंच अभी भी वसुंधरा राजे के ही ईर्द-गिर्द घूमता नजर आ रहा है।

राजे ने भरा भाजपा में दम

राजस्थान में भैरोंसिंह शेखावत के बाद वसुंधरा ने जिस कुशलता से प्रदेश की कमान संभाली, उससे राजे की छवि राजस्थान में ही नहीं बल्कि देश में भी एक सधी हुई नेता के रूप में बनीं। यह उनकी कार्यकुशलता का ही प्रमाण है कि वर्ष 2003 के विधानसभा चुनावों की जिम्मेदारी केन्द्रीय नेतृत्व ने राजे को सौंपी तथा उस विश्वास पर खरे उतरते हुए वसुंधरा ने 120 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई। वर्ष 2008 के विधानसभा चुनावों में मामूली हार के बाद वसुंधरा को सर्वसम्मति से नेता प्रतिपक्ष बनाया गया। इसके बाद वर्ष 2013 का विधानसभा चुनाव भी वसुंधरा राजे के नेतृत्व में ही लड़ा गया और पार्टी ने 163 सीटों के साथ प्रचंड बहुमत की सरकार बनाई। आलाकमान ने दोनों चुनावों में जीत का सेहरा वसुंधरा राजे के सिर बांधा और उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में बड़ी जिम्मेदारी सौंपी।

वसुंधरा का नहीं है कोई विकल्प

हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा की हार के बाद केन्द्रीय नेतृत्व अब राजस्थान की कमान नए हाथों में सौंपना चाहता है। लेकिन मोदी-शाह की टीम को वसुंधरा राजे के अलावा प्रदेश में अन्य कोई विकल्प भी नजर नहीं आ रहा है। मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष के रूप में राजे के राजनीतिक अनुभव के सामने बाकि सभी नवनिर्वाचित भाजपा विधायक फीके पड़ते नजर आ रहे हैं। केन्द्र भले ही राजस्थान में वसुंधरा का विकल्प खोजने पर ऊतारू है लेकिन वो इस बात से भी भलिभांति परिचित है कि 2019 का लोकसभा व 2023 का विधानसभा चुनाव वसुंधरा राजे के बिना जीतना संभव नहीं है।

राठौड़-कटारिया का दामन दागदार

मीडिया खबरों की मानें तो नेता प्रतिपक्ष के लिए भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व राजेन्द्र राठौड़ व गुलाबचंद कटारिया के नामों पर भी विचार कर रहा है। लेकिन बहुचर्चित सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में फंसे गुलाबचंद कटारिया व राजस्थान की राजनीति में भूचाल लाने वाले दारां सिंह एनकाउंटर मामले में फंसे राठौड़ पर दांव खेलना मुश्किल लग रहा है। वहीं वरिष्ठ नेता गुलाब चंद कटारिया द्वारा हाल ही में लव जिहाद के मामले पर की गई टिप्पणी की भी खूब आलोचना हो रही है। बताया जाता है कि इन दोनों ही नेताओं की छवि वसुंधरा राजे जितनी स्वच्छ और लोकप्रिय नहीं है।

कैलाश मेघवाल पर भी जताया जा सकता है विश्वास

नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में राजे के बाद विधानसभा अध्यक्ष और पांच बार विधायक रहे कैलाश मेघवाल का नाम भी सबसे आगे है। कैलाश मेघवाल हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में सबसे ज्यादा मतों से जीतने वाले विधायक हैं। उन्होंने शाहपुरा सीट से कांग्रेस के महावीर प्रसाद को 74 हजार 542 वोटों के भारी अंतर से हराकर एक बार फिर केन्द्रीय आलाकमान का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। इन दिनों मेघवाल विधायकों को आवास आवंटित करने व विधानसभा सत्र बुलाने पर आपत्ति जताने के लिए भी चर्चाओं में हैं। वहीं कैलाश मेघवाल के लम्बे राजनीतिक अनुभव व स्वच्छ छवि से भी केन्द्र प्रभावित है।